Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० कर्मकाण्डे
देववीस णरदेउगुतीस मणुस्स तीस बंधयदे |
ति छ णव णव दुग भंगा तित्थविहीणा हु पुणरुत्ता ॥५७२ || देवाष्टाविंशति नरदेवैकान्नत्रिंशन्मनुष्य त्रिशद्बंधासंयते । त्रिषनवनवद्विभंगास्तोत्र्त्य विहीनाः खलु पुनरुक्ताः ॥
देवाष्टाविशति नरदेवैकान्नत्रिंशत् मनुष्यत्रिंशद्बंधा संयतनोळ २८ २९ २९ ३० त्रिषड्दे म दे म
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नव नवद्वि ३६९९२ । प्रमित भुजाकारंगळप्पुवर्द ते दोर्ड :देवgarसबंधे देउगुती संमि भंग चउसट्ठी । देउगुती से बंधे मणुवत्तीसे वि चउसट्ठी ||५७३ ॥
देवाष्टाविशति बंधे देवैकाशत्प्रकृतौ भंग चतुःषष्टिः । देवैकासत्रिशद्बंधे मनुष्य १० त्रिशत्प्रकृतावपि चतुःषष्टिः ॥
देवाष्टाविंशति प्रकृतिस्थानबंधमं माडुत्ति मनुष्यासंयत सम्यग्दृष्टि तीर्थकर पुण्यबंध मं प्रारंभिसि तोर्थयुत देवैकान्न त्रिशत्प्रकृतिस्थानमं कट्टुत्तिरलल्लि चतुःषष्टि भंगंगळप्पुवु । मत्तं मनुष्यासंयत सम्यग्दृष्टितीर्थयुत देवैकान्नत्रिशत्प्रकृतिस्थानमं कट्टुत्तिर्बु मरणमाबोर्ड देवासंयतं मे नारकासंयतनुमागि तीथंयुतमनुष्य त्रिशत्प्रकृतिस्थानमं कट्टुतं विरलल्लियुं चतुष्वष्टि १५ भंगंगळप्पुवु । मत्तं :
देवाष्टाविंशतिकनरदेव कान्नत्रिंशत्क मनुष्यत्रिशत्कबन्धासंयते २८|२९|२९| ३० त्रिषट्नवनवद्वि ३६९९२ दे म दे म
मात्रभुजाकारा भवन्ति ॥ ५७२ ॥ तद्यथा -
देवाष्टाविंशतिकं बध्वा मनुष्यासंयतः तीथंबन्धं प्रारभ्य तद्युतदेवैकान्नत्रिशत्कं बध्नाति तदा चतुःषष्टिः । पुनः तीर्थयुतदेवं कान्नत्रिंशत्कं बध्वा मनुष्यासंयतो देवासंयतो नरकासंयतो वा भूत्वा तीर्थंयुतमनुष्यत्रिंशत्कं २० बध्नाति तदापि चतुष्षष्टिः ||५७३ ॥ पुनः
देवगति सहित अठाईस, मनुष्यगति सहित उनतीस, देवगति सहित उनतीस और मनुष्यगति सहित तीस में तीन छह नौ नौ दो इन अंकोके अनुसार छत्तीस हजार नौ सौ Marna भुजाकार होते हैं ||५७२ ||
इनमें तीर्थंकर रहित भंग पुनरुक्त हैं वे मिथ्यादृष्टिके भंगोंमें आ जाते हैं। यही आगे कहते हैं
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देवगति सहित अठाईसको बाँधकर असंयत मनुष्य तीर्थंकरके बन्धका प्रारम्भ करे तो तीर्थंकर सहित उनतीसको बाँधता है। तब दोनोंके आठ आठ भंगको परस्पर में गुणा करने पर चौसठ भंग हुए । पुनः तीर्थंकर और देवगति सहित उनतीसको बांधकर मनुष्य असंयत पीछे देव या नारकी असंयत होकर वहाँ तीर्थंकर और मनुष्यगति सहित तीसको बांधता ३० है । वहाँ भी दोनोंके आठ आठ भंगोको परस्पर में गुणा करनेपर चौसठ होते हैं ॥५७३ ॥
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