Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
८७४
गो० कर्मकाण्डे चरया य परिव्वाजा बम्मों तच्चुद पदोत्ति आजीवा । अणुदिस अणुत्तरादो चुदा ण केसवपदं जांति ॥ सोहम्मो वर देवी सलोगवाला य दक्षिणमरिंदा । लोयंतियसव्वट्ठा तदो चुदा णिब्बुदि जांति ॥ णरतिरियगदोहितो भवतियादो य णिग्गया जीवा । ण लहंते ते पदवि तेसट्टि सलागपुरिसाणं ॥ सुहसयणग्गे देवा जायंते दिणयरोव्व पुवणगे। अंतोमुहत्तपुण्णा सुगंधि सुहफास सुचिदेहा ॥ आणंदतूर जयथुदिरवेण जम्मं विबुज्झ संपत्तं । दटठण सपरिवारं गयजम्मं ओहिणा णच्चा ॥ धम्मं पसस्सिदूण ण्हादूण दहेभिसेयलंकारं। लद्धा जिणाभिसेयं पूजं कुव्वंति सद्दिट्ठी ॥
सव्वट्ठोत्ति सुदिट्ठी महव्वई भोगभूमिजा सम्मा । सोहम्मदुर्ग मिच्छा भवणतियं तावसा य वरं ॥५४६॥ चरया य परिव्वाजा बह्मोत्तरचुदपदोत्ति आजीवा । अणुदिसमणुत्तरादो चुदा ण केसवपदं जंति ।। सोहम्मो वरदेवो सलोगवाला य दक्षिणमरिंदा । लोयंतिय सम्वट्ठा तदो चुदा णिव्वुदि जति ॥ णरतिरियगदीहितो भवणतियादो य णिग्गया जीवा । ण लहंते ते पदवि तेसठिसलागपुरिसाणं ॥ सुहसयणग्गे देवा जायते दिणयरोव्व पुव्वणगे । अंतोमुहत्तपुण्णा सुगंधिसुहफाससुचिदेहा ॥ आणंदतूरजयथुदिरवेण जम्म विबुज्झ संपत्तं । दळूण सपरिवारं गयजम्मं ओहिणा णच्चा ॥
धम्मं पसंसिदूर्ण पहादूण दहेभिसेयलंकारं । लद्धा जिणाभिसेयं पुज्जं कुव्वंति सुद्दिट्ठी ॥८॥ २० होते हैं । सम्यग्दृष्टी महाव्रती सर्वार्थसिद्धि पर्यन्त उत्पन्न होते हैं। भोगभूमिया सम्यग्दृष्टी
ठमें और मिथ्यादष्टी भवनत्रिकमें जन्म लेते हैं। उत्कृष्ट तापसी भवनत्रिकमें जन्म लेते हैं । चरक और परिव्राजक ब्रह्मोत्तर पर्यन्त जन्म लेते हैं। आजीवक अच्युतपर्यन्त जन्म लेते हैं । अनुदिस अनुत्तरसे च्युत हुए जीव नारायण-प्रतिनारायण नहीं होते।
. सौधर्मदेवकी इन्द्राणी शची, लोकपाल सहित दक्षिण दिशाके सौधर्म आदि इन्द्र, २५ लौकान्तिक देव और सर्वार्थ सिद्धिके देव च्युत होनेपर मनुष्य होकर मोक्ष प्राप्त करते हैं।
मनुष्यगति, तियंचगति, और भवनत्रिकसे निकले हुए जीव तरेसठ शलाका पुरुषोंकी पदवीको प्राप्त नहीं करते।
सुख शय्या पर-उपपाद शय्याको प्राप्त हुए देव ऐसे जन्म लेते हैं जैसे पूर्व दिशामें उदयाचलपर सूर्य उगता है। अन्तर्मुहूर्तमें ही उनका शरीर पूर्ण होकर सुगन्ध, शुभ स्पर्शसे ३० पवित्र हो जाता है।
आनन्दके वादित्र और जयकारकी ध्वनिके शब्दसे अपने प्राप्त जन्मको जान परिवार सहित सबको देख अवधिज्ञानके द्वारा अपने विगत जन्मको जानता है। तब धर्मकी प्रशंसा करके सरोवरमें स्नान कर और वस्त्राभूषणसे भूषित हो सम्यग्दृष्टी देव जिनदेवके
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org