Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्वप्रदीपिका
स्थितिनिषेकंगळं सत्वमुंटागुत्तमिद्दडमवक्के अविवक्षा स्यात् अविवक्षेयक्कुं । इंतनिवृत्तिकरणनोळुपशमश्रेणियोळष्टाविंशतिचतुव्विशत्येकविंशति ॥ त्रिस्थानगळ त्रिस्थानंगळोळु । २८ । २४ । २१ । क्षपकश्रेणिय एकविंशतिप्रकृतिसत्वस्थानमुं त्रयोदशद्वादशैकादश पंचचतुस्त्रिद्वधेकप्रकृतिसत्व स्थानंगळो भत्तप्पुव वरोळेकविंशतिस्थानं पुनरुक्तर्म दु बिट्टेकादशसत्वस्थानंगळे दु पेळल्पट्टुवु । क्षपक । १३ । १२ । ११ । ५ । ४ । ३ । २ । १ । उप । २८ । २४ । २१ । कूडि ११ ।। सूक्ष्मसांप- ५ रायनोळु अष्टाविंशति चतुव्विशत्येकविंशति त्रिस्थानंगळ पशमश्रेणियोळवु । क्षपकश्रेणियोळु सूक्ष्मलोभप्रकृतिस्थानं सत्वमों देयक्कुं । १ । कूडि चतुःस्थानंगळवु । २८ । २४ । २१ । १ । इल्लि सूक्ष्मपरायंगे सूक्ष्मलोभसत्वर्म ते बोर्ड बादर संज्वलनलोभक्कश्वकर्णकरणसहचारितापूर्ध्वस्पर्द्धककरणमुमवर्क बादरकृष्टिकरणमुमवर्क मर्त्त सूक्ष्मकृष्टिकरणमुमनिवृत्तिकरणनोळनंतैकभागानुभागक्रर्मादिदं माडल्पटुवपुर्दार ना सूक्ष्म कृष्टिगळ्गनिवृत्तिकरणनोळनुदयसत्वमक्कुमी १० सूक्ष्मसांपराय संयमियोदयसत्वमक्कुमी सूक्ष्मलोभकषायोदयानुरंजित संयमं सूक्ष्म सांप रायसंयमदन्वर्थं नाममक्कुमदे ते दोडे सूक्ष्मः सांपरायः कषायो यस्याऽसौ सूक्ष्मसां परायः एंदितु । दयारूढानां त्रिद्वयेकबंषभागेषु यथाक्रमं त्रिकं द्विकमेककमस्ति । अत्र प्राग्वन्नव कबंध समयोनद्वय । वलिमात्रसमयप्रबद्धा उच्छिष्टावलिमात्रोदयावशेष प्रथम स्थितिनिषेकाश्न संत्यपि ते न विवक्षिताः । एवमनिवृत्तिकरणे उपशमश्रेण्यामष्टाविंशतिचतुर्विंशतिकैकविंशतिकानि क्षपकश्रेण्यामेकविंशतिकत्रयोदशकका दशकपंचकचतुष्कत्रिद्विकैकानि । एतेषु एकमेकविंशतिकं पुनरुक्तमित्येकादशेत्युक्तं । सूक्ष्मसांपराये उपशमश्रेण्यामष्टाविशति चतुर्विंशतिकै कविंशतिकानि । क्षपकश्रेण्यां सूक्ष्मलोभरूपकमिति चत्वारि । तल्लोभसत्त्वं कीदृशं ? अनंतैकभागानुभागक्रमेणानिवृत्तिकरणे बादरसंज्वलन लोभस्याश्वकर्णकरण सहचरितापूर्वस्पर्धककरणं तेषां च बादरकुष्टिकरणं तासां च सूक्ष्मकृष्टिकरणमिति तत्र सूक्ष्मकृष्टिरूपमनुदयगतमत्रोदयगतमिति ज्ञातव्यं ।
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क्षपणाकाल में क्रोधरूप होकर नष्ट हो जाता है उसी प्रकार क्रोध, मान, मायाके भी अवशेष २० रहे नवक समयप्रबद्धका सत्त्व क्रमसे मान, माया, लोभके क्षपणाकालमें परमुख होकर नष्ट हो जाता है । परन्तु उनकी विवक्षा नहीं की। यदि उनकी विवक्षा होती तो जैसे चार के सत्त्वके स्थान में पाँचका सत्त्व कहा उसी प्रकार तीन, दो, एकके स्थानमें चार, तीन, दोका भी सत्त्व कहते । किन्तु विवक्षा न होनेसे तीन, दो, एकका ही सत्त्व कहा ।
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इस प्रकार अनिवृत्तिकरण में उपशम श्रेणिमें तो अठाईस, चौबीस, इक्कीसरूप तीन सत्त्वस्थान हैं । क्षपक श्रेणिमें इक्कीस, तेरह, बारह, ग्यारह, पाँच, चार, तीन, दो और एकरूप नौ स्थान हैं । इनमें इक्कीसरूप स्थान उपशमक और क्षपक दोनोंमें कहा है इससे पुनरुक्त है । इसीसे ग्यारह सन्त्वस्थान कहे हैं ।
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सूक्ष्म साम्परायमें उपशमश्रेणिमें अठाईस, चौबीस, इक्कीस तीन स्थान हैं। क्षपकश्रेणिमें सूक्ष्म लोभरूप एक स्थान है। इस तरह चार स्थान हैं । वह लोभका सत्व किस रूप ३० है यह कहते हैं
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अनिवृत्तिकरण में क्रम से अनन्तवें - अनन्तवें भाग बादर संज्वलन लोभका अश्वकर्णकरण सहित अपूर्वस्पर्धक करण होता है । फिर उन स्पर्धकोंका स्थूलखण्डरूप बादरकृष्टिकरण होता है । फिर उन बादरकृष्टियोंका सूक्ष्मखण्डरूप सूक्ष्मकृष्टिकरण होता है । उन
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