Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
८०५ अनंतरं नामकर्मबंधस्थानंगळं चतुर्दश मार्गणगळोळ गाथाष्टकदिदं योजिसिदपरु :
णामस्स बंधठाणा णिस्यादिसु णव य वीस तीसमदो ।
आदिमछक्कं सव्वं पण छण्णव वीस तीसं च ।।५४४।। नाम्नो बंधस्थानानि नारकादिषु नव विशतिस्त्रिशदत-। आदितनषट्कं सर्व पंच षड् नव विशतिस्त्रिशच्च॥
नामकर्मबंधस्थानंगळु नरकादिचतुर्गतिगळोळ क्रमदिदं नरकगतियोल नव विंशतिप्रकृतिस्थानमुं त्रिंशत्प्रकृतिस्थानमुमेंबरडं स्थानंगळने हुं नरकंगळ नारकार्कळु कटुवरु । नारकगति २९ । ३० । अल्लि नवविंशतिप्रकृतिस्थानमं पंचेंद्रियपर्याप्ततिय॑ग्गतियुतमागियु पर्याप्तमनुष्यगतियुतमागियु माघविषय्यंतमाद नारकर कटुवरु। त्रिंशत्प्रकृतिस्थानमं पंचेंद्रियपर्याप्ततियंग्गतियुमुद्योतनामयुतमागियु माघविपश्यंतमाद नारकरु कटुवरु । पर्याप्तमनुष्यगति- १० तीर्थयुतमागियु मेघे पर्यंतमाद नारकर कटुवरु । २९ । ति ।म। ३० । ति । उ।म। ति ॥ यिल्लि नरकगत्यादिमागणेगळोळ गुणस्थानविवक्षे इंदं बंधस्थानंग लु ग्रंथगौरवभयदिदं योजिसल्पडवा योजनिकयु सुगममेयककुमते दोडे गतींद्रियपर्याप्तादिविशेषंगळु प्रतिस्थानं पेळल्पडुगुमप्पुरिंदमंतु पेळल्पडुत्तिरलु मिथ्यादृष्टिनारकरुं सासादननारकरुंगळु तिर्यग्गतियुतमागियु मनुष्यातियुतमागियु नवविंशतिस्थानमं कटुवरु। सम्यग्मिथ्यादृष्टि नारकरनिबरु मनुष्य. १५ गतियुत नवविंशतिप्रकृतिस्थानमनोंदने कटुवरेक दोडे सासादननोळु तिर्घग्गतिद्वयमुमुद्योतमुं एवं चतुर्गतिजानां च्यवनोपपादान् संक्षेपेणोक्त्वाधुना तानि बंघस्यानानि चतुर्दशमार्गणासु गाथाष्टके नाह
नामबंधस्थानानि नरकादिगतिषु क्रमेण नरकगतो नवविंशतिकं त्रिंशत्कं च। तत्र नवविंशतिक पंचेंद्रियपर्याप्त तिर्यग्गतियुतं पर्याप्तमनुष्यगतियुतं च मववोपर्यंता बध्नति । त्रिंशत्कं पंचेंद्रियपर्याप्ततिर्यग्गतियतमद्योतयतं च माधवीपयंताः बंध्नंति । पर्याप्तमनुष्यगतितीर्थयुतं मेघा यंता बघ्नंति । मार्गणासु गुणस्थान- २० विवक्षया तद्योजनिका सुगमा, गतींद्रियपर्याप्तादिविशेषाणां प्रतिस्थानं प्राक् प्रतिपादनात् । तत्र नारका मिथ्यादृष्टयः सासादनाश्च तिर्यग्गतियुतं मनुष्यगतियुतं च नवविंशतिकं बघ्नंति । सम्यग्मिथ्यादृष्टयः मनुष्यगतियुतमेव ।
इस प्रकार चारों गति के जीवोंका जन्ममरण संक्षेपसे कहकर अब उन नामकर्मके बन्धस्थानोंको चौदह मार्गणाओंमें आठ गाथाओंसे कहते हैं
नामकर्मके बन्धस्थान नरकादि गतियोंमें-से क्रमसे नरकगतिमें उनतीस और तीस दो ३० बँधते हैं। उनमें से पंचेन्द्रिय पर्याप्त तियं चगति सहित और मनुष्यगति सहित उनतीसको मघवी पर्यन्त नारकी बाँधते हैं। और पंचेन्द्रिय पर्याप्त तियंचगति सहित उनतीसको व उद्योत सहित तीसको माधवी पर्यन्त नारकी बाँधते हैं। और पर्याप्त मनष्यगति तीर्थकर सहित तीसके स्थानको मेघा पृथ्वी पर्यन्त ही बाँधते हैं।
मार्गणाओंमें गुणस्थानोंकी विवक्षासे बन्धस्थानोंका लगाना सुगम है; क्योंकि गति, ३५ इन्द्रिय, पर्याप्त आदि विशेषोंको पहले प्रत्येक स्थानके साथ कहा है। उनमें से मिथ्यादृष्टि और सासादन सम्यग्दृष्टी नारकी तिर्यंचगति सहित और मनुष्यगति सहित उनतीस के स्थानको बाँधते हैं। सम्यक् मिथ्यादृष्टि नारकी मनुष्यगति सहित ही उनतीसका स्थान बाँधते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org,