Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
मत्तमनेकांतात्मकमप्प वस्तुविनोळ विरोधविदं हेत्वपर्णयिवं साध्यविशेषयाथात्म्यप्रापणप्रवणप्रयोगं नयमे वितु सामान्यलक्षणमनुळ्ळ नयं नैगमादिभेदविदं सप्तविधमक्कुमल्लि द्रव्यं सामान्यमुत्सर्गमकुं । तद्विषयं द्रव्यात्थिकनयमक्कुं । पर्य्यायं विशेष में बुदत्थं मदुकुं व्यावृत्तिर्य बुबुवत्थं । तद्विषयं पर्य्यायात्थिकनयमक्कु । मा येरेडर भेदंगळ नैगमादिनयंगळक्कुमवर्क विशेषलक्षणं पेळल्पडुगुर्मतें बोडभिनिर्वृतात्थं संकल्पमात्रग्राही नैगमः । अनिष्पन्नात्थं संकल्पना हि नैगमनयम तर्न कैयो कोडलियं पिडिवु पोप पुरुषनोव्वं कंडु बेसगोळगु 'मेनुनिमित्तं पोपे' येदितु बेसगो डोडातं नां बळळमं तरल्पोंपेर्न गु मागळा बळम निष्पन्न मक्कुमादोडमदर निष्पत्तिनिमित्तं संकल्पमात्र बळळद व्यवहरणमक्कुमंते कट्टिर्गपुं नीरुमं कोड बप्पंननोयं बेसगोगु मेनं माडिदपे नी वितु बेसगो डोडातं पेगुमोगरमनदृपेने बितागळा ओगरव पर्य्यायमनिष्पन्नमादोर्ड तन्निमित्तमुद्युक्तनक्कुमी प्रकारदिवं लोकव्यवहारममनिष्यन्नार्थ संकल्पमात्रविषयं नैगमऩयगोचरमक्कुं ॥ स्वजात्यविशेषवंदं मेकत्वमनाश्रयिसि पर्य्यायंगळनु आक्रांत भेववर्त्तार्णवं । समस्तग्रहणात्संग्रहः । एंवितु संग्रहनयमवकुं । सत् द्रव्यं घट इति ये वितु संग्रहनयमक्कुं । मल्लि सत्
अनेकान्तात्मक वस्तुमें विरोध के बिना हेतुकी अपेक्षासे साध्यविशेषके यथार्थ स्वरूपको प्राप्त कराने में समर्थ प्रयोगको नय कहते हैं । यह नय सामान्यका लक्षण है । नैगम आदि के भेदसे उसके सात भेद हैं । द्रव्य अर्थात् सामान्य या उत्सर्गको विषय करनेवाला द्रव्यार्थिक नय है और पर्याय अर्थात् विशेष या व्यावृत्तिको विषय करनेवाला पर्यायार्थिकनय है। उन दोनोंके भेद नैगम आदि हैं। उनका लक्षण कहते हैं
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अनिष्पन्न अर्थके संकल्प मात्रको ग्रहण करनेवाला नैगमनय है । जैसे हाथमें कुठार लेकर जाते हुए से किसीने पूछा- किस लिए जाते हो ? वह बोला - रस्सी लाने जाता हूँ । उस समय रस्सी बनी नहीं है फिर भी रस्सी बनानेके संकल्प मात्र में रस्सीका व्यवहार करता है । इसी प्रकार पानी लेकर आते हुए पुरुषसे किसीने पूछा- क्या करते हो ? वह बोलाभात पकाता हूँ । उस समय भात तैयार नहीं हुई है। फिर भी उसीके लिए उसका प्रयत्न है । इस प्रकार अनिष्पन्न अर्थके संकल्प मात्रको ग्रहण करनेवाला लोक व्यवहार नैगम नयका विषय है । अपनी जातिका अविरोधपूर्वक सब भेदसहित पर्यायों में एकत्व लाकर सबको ग्रहण करनेवाला संग्रहनय है। इसके तीन उदाहरण हैं-सत्, द्रव्य और घट । 'सत्' कहने पर 'सत्' इस प्रकार वचन और विज्ञानकी प्रवृत्तिरूप लिंगसे अनुमित सत्ताके आधारभूत सब
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पुनः - अनेकांतात्मके वस्तुन्यविरोधेन हेत्वर्पणया साध्यविशेषयाथात्म्यप्रापणप्रवणप्रयोगो नय इति सामान्यलक्षणम् । स च नेगमादिभेदात्सप्तधा । तत्र द्रव्यं सामान्यमुत्सर्गः तद्विषयः द्रव्यार्थिकः । पर्यायः विशेषः व्यावृत्तिरित्यर्थः । तद्विषय: पर्यायार्थिकः । तयोर्भेदा नैगमादयः तेषां लक्षणमुच्यते । तद्यथा— अभिनिर्वृतार्थसंकल्पमात्रग्राही नैगमः, यथा हस्ते कुठारं गृहीत्वा गच्छन् केनचिद् दृष्ट्वा पृष्टः - 'किमर्थं यासि ? रज्जुमानेतुं' ३० तदा रज्जुरनिष्पन्ना तथापि रज्जुनिष्पत्तिनिमित्तं संकल्पमात्र रज्जोर्व्यवहरणम् । तथा एवं नीरं च गृहीत्वा समागच्छन् कश्चित्पृष्टः 'कि करोषि ?' ओदनं पचामीत्युक्तवांस्तदौदनपर्यायोऽनिष्पन्नस्तथापि तन्निमित्तमुद्युक्तो भवेत् । एवं लोकस्य व्यवहारः अनिष्पन्नार्थसंकल्पमात्रविषयो नैगमनयगोचरः स्यात् ।
स्वजात्य विरोधेनैकत्वमाश्रित्य पर्यायाक्रांतभेदात्समस्तग्रहणात्संग्रहः । सत् द्रव्यं घटः इति । अत्र क- १०३
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