Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
८५७ पंचेंद्रिय संजिग जनित्यपर्याप्तसासादनरागि पुटुवरु। बतायुष्यरल्लद पक्षदोळल्लिये सासादनरागि तिय्यंगायुष्यंगळं कट्टि मृतरागि बंदु किरिदु पोळ्तु मुंपेळ्व संज्ञिनिर्वृत्यपर्याप्त तिय्यंचरोळ सासावनरप्परु । यो सासावनरुगळं तिय्यंग्गतिमनुष्यगतिपर्याप्त नवविंशत्यादिद्विस्थानंगळं कटुवरु । २९ । बि ति च प । ति । म।३०। बि। ति। च।प। ति।प। रि। उ॥ यो सासावनगळेल्लरुगळं तंतम्म सासावनकालं पोदि बळिक्कल्लरुगळं नियमदिवं मिथ्यादृष्टि- ५ गळागि यावच्छरीरमपूणं तावत्कालं मिथ्यादृष्टिनिवृत्यपर्याप्तरागि मिथ्यादृष्टिगळोळ पेन्दत प्रयोविंशत्यावि यथायोग्यमागि नामप्रकृतिबंधस्थानंगळं कटुवरु । इल्लि चोदकने दपं-सासादनकालमुत्कृष्टदिदं षडावलिकालमक्कु-मायुबंधाद्ध जघन्यदिनुत्कृष्टविनंतम्र्मुहर्तप्रमितमक्कु मदरिने ती सासावनतिर्यग्मनुष्यदेवनारकरोळमुत्तरभववोळं सासादनत्व संभवमें वोर्ड विरोधमिल्लें. ते दोडे जघन्यदिदमंतर्मुहूर्तमेकावलि कालप्रमितमक्कुमवर मेले समयोत्तर क्रमदिदमंतर्मुहूर्त- १. विकल्पंगळागुत्तं पोगि समयोनैकमुहूर्तमुत्कृष्टांतर्मुहूर्तमक्कुमप्पुरिवमंतर्मुहूत्तंगळसंख्यात विकल्पंगळप्पुवापुरिद
२११/२ विक २१ | २७-२।२७-१ मत्तमी नित्यपर्याप्त संजि पंचेंद्रियगर्भजासंयत सम्यग्दृष्टिगोळावाव गतिर्गाळदं बंदु पुटुवरदोर्ड नरकगतिदेवगतिद्वयदिदमे बंदु सम्यग्दृष्टिगळ्पुटुवरेक दोडितरतिर्यग्मनुष्यगतिजरुगळप्प बद्धतिर्यगायुष्यसम्यग्दृष्टिगळी तिर्य- १५ ग्गतियोळपुट्टरवर्गळ्गे भोगभूमिजतियंचरोळे जनन नियममुंटप्पुरिदं । आ नारकामरवेदकसम्यग्दृष्टिगळ बद्धतिर्यगायुष्यरुगळ मरणकालदोळ सम्यक्त्वमं पत्तविडवे स्वस्वलेश्यगलिदं मृतरागि बंदी कर्मभूमि संजिपंचेंद्रिय गर्भज निवृत्यपर्याप्त तिय्यंचासंयतसम्यग्दृष्टिगळोळे
तिकत्रिंशत्के बध्नति । स्वस्वसासादनकालमतीत्य नियमन मिध्यादृष्टयो भूत्वा यावच्छरीरमपूर्ण तावन्नित्यपर्याप्ता: मिथ्यादृष्टयुक्तत्रयोविंशतिकादीनि पंच बहनंति । ननुत्कृष्टः सासादनकालः षडावलिः आयुबंधाद्धा २० जघन्याप्यंतर्महर्तमात्री तहि पूर्वोत्तरभवयोः कथं सासादनत्वमिति ? तन्न, आवलितः समयाधिकक्रमेण सा मुहूर्तपयंतानां कालविशेषाणां अंतर्मुहूर्तत्वेन विरोधाभावात् । तिर्यगसंयते प्रारबद्धतिर्यगायुर्देवनारकवेदकसम्यग
अवस्थामें तियेच या मनुष्यगति पर्याप्त सहित उनतीस अथवा तीसका बन्ध करते हैं।
और अपना-अपना सासादन काल पूरा होनेपर नियमसे मिथ्यादृष्टि होकर जबतक शरीर. पर्याप्ति पूर्ण नहीं होती तबतक निर्वृत्यपर्याप्त रहकर मिथ्यादृष्टि में कहे तेईस आदि पाँच २५ स्थानोंको बाँधते हैं।
शंका-सासादनका उत्कृष्ट काल छह आवली है और आयुबन्धका जघन्य भी काल अन्तर्मुहूर्तमात्र है । तब पूर्व और उत्तर दो भवोंमें सासादनपना कैसे सम्भव है ?
___ समाधान-एक आवलीसे लगाकर एक-एक समय बढ़ते-बढ़ते, एक समयहीन मुहूर्त पर्यन्त जितने कालभेद हैं वे सब अन्तर्मुहूर्त हैं। इससे कोई विरोध नहीं है।
तिर्यच असंयतमें जिन्होंने पहले तिर्यंचायुका बन्ध किया है, ऐसे देव नारकी वेदक
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