Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका इल्लि चतुर्गत्यायुबंधनिबंधनंगळप्प लेश्यामध्यमाष्टांशंगळाउर्व बोर्ड तेजोजघन्यस्थानानंतर स्वमध्यमानंतगुणवृद्धिस्थानं मोदल्गोंडु कपोतलेश्याजघन्यस्थानानंतर स्वमध्यमानंतगुणवृद्धिस्थानपयंतमथवा कपोतलेश्याजघन्यस्थानानंतर स्वमध्यमानंतगुणवृद्धिस्थानं मोदल्गोंड तेजोलेश्याजघन्यस्थानानंतर स्वमध्यमानंत गुणवृद्धिस्थानपय्यंतमप्प पाशुक्लकृष्णनीललेश्याजघन्यांशंगळु नाल्बु शेषचतुर्गत्यायुबंधनिबंधनंगळप्प मध्यमांशंगळ नरकायुजितायुस्त्रितयबंधनिबंधनंगळप्प मध्यमांशंगळ नरकतिर्म्यगायुद्धज्जितायुद्वयबंधनंगळप्पमध्यमांशंगळ केवलं देवायुबंधनिबंधनंगळप्प मध्यमांशंगळ मितु मध्यमांशंगळ नाल्कुंकूडियष्टांशंगळप्पुव । यिल्लि पद्मशुक्लकृष्णनोलजघन्यांशंगळगे मध्यमत्वमे ते बोर्ड शुभाशुभलेश्यगळविभागापेोइनवाके मध्यमांशत्वं पेळल्पटुदु। शेषाष्टादशांशंगळ चतुर्गतिगमनकारणंगळप्पुववरोळ अशुभलेश्यात्रयनवांशंगळु नरकगतियोळं तिय॑ग्गतियोळमुत्पादकंगळु पेळल्पटुवु । मुंद तिय्यंग्मनुष्य- १० देवगतिगमनकारण शुभाशुभांशंगळ पेळल्पट्टवु । इल्लि लेश्यासंक्रमणं पेळल्पडुगुमेके दोडे मोहो
ते मध्यमांशास्तु तेजोलेश्याजघन्यस्थानानंतरस्वमध्यमानंतगुणवृद्धिस्थानमादि कृत्वा कपोतलेश्याजघन्यस्थानानंतरस्वमध्यमानंतगुणवृद्धिस्थानपर्यतं वा कपोतलेश्याजघन्यस्यानानंतरस्वमध्यमानंतगुणवृद्धिस्थानमाचं कृत्वा तेजोलेश्याजघन्यस्थानानंतरस्वमध्यमानंतगुणवृद्धिस्थानपयंतं पद्मशुक्लकृष्णनोलजघन्यांशाश्चत्वारः चतुगंत्यायुबंधनिबंधननरकवर्जितव्यायुबंधनिबंधननरकतिर्यग्वजिततवयायुबंधनिबंधनकेवलदेवायुबंधनाश्चत्वारः १५ एवमष्टौ । अत्र पद्मशुक्लकृष्णनीलजघन्यांशानां मध्यमत्वं तु शुभाशुभलेश्याविभागापेक्षं शेषाष्टादशांशाः चतुर्गति
गुणस्थानमें सूक्ष्मकृष्टि नामवाली शक्तियाँ हैं । इस प्रकार समस्त क्रोधकषायके अनुभागरूप उदयस्थान असंख्यात लोकमात्र षट्स्थान पतित वृद्धि हानिको लिये असंख्यात लोकप्रमाण हैं। उनमें असंख्यात लोकका भाग देनेपर एक भाग बिना बहुभाग प्रमाण तो संक्लेश स्थान हैं और एक भाग प्रमाण विशुद्धिस्थान हैं। उनमें लेश्यापद चौदह हैं और लेश्याके अंश
२० छब्बीस हैं। उनमेंसे मध्यके आठ अंश आयुके बन्धके कारण हैं । ( यहाँ संदृष्टि आदि जीवकाण्डके कषायमार्गणा अधिकार में पहले कहा है वही जानना।)
__ वे मध्यम अंश तेजोलेश्याके जघन्यस्थानके अनन्तर अपने अनन्त गुणवृद्धिरूप मध्यमस्थानसे लगाकर कपोतलेश्याके जघन्यस्थानके अनन्तर अनन्तगणवृद्रियक्त उसीके स्थान पर्यन्त जानना । अथवा कपोतलेश्याके जघन्यस्थानके अनन्तर उसीके अनन्तगुणवृद्धि- २५ रूप मध्यमस्थानसे लगाकर तेजोलेश्याके जघन्यस्थानके अनन्तर उसीके अनन्तगुणवृद्धिरूप मध्यमस्थान पर्यन्त पद्म, शुक्ल, कृष्ण, नीलके जघन्य अंश चार और चार गति सम्बन्धी आयुके कारण अथवा नरक बिना तीन आयुके अथवा नरकतियंच बिना दो आयुके या केवल देवायुके बन्धके कारण चार अंश इस प्रकार आठ मध्यम अंश आयुबन्धके कारण हैं।
___ यहाँ जो पद्म, शुक्ल, कृष्ण, नील लेश्याके जघन्य अंशोंको मध्यम अंश कहा है उसका कारण यह है कि शुभ-अशुभ लेश्याके भेदकी अपेक्षा ये बीचके अंश हैं इसलिए इन्हें मध्यम अंश कहा है। शेष अठारह अंश, जो कृष्णादिके जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट भेदरूप हैं, चारों गतियोंमें गमनके कारण हैं। इन अठारह अंशोंमें मरण होता है। उनमेंसे तीन अशुभ
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