Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
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येनात्मना भूतस्तेने वाध्यवसाययतीत्येवंभूतः । स्वाभिधेयक्रियापरिणतिक्षणबोळे तच्छवं युक्तमक्कुमन्यकालदोळु युक्तमल्तु । एते दोर्डयदैवें दति तदैवेंद्र: नाभिषेचको नापि पूजकः दितु । यदैव गच्छति तदैव गौः न स्थितो न शयितः एंदितु । अथवा एनात्मना येन ज्ञानेन भूतः परिणतः तेनैवाध्यवसाययति । यर्थेद्राग्निज्ञानपरिणत आत्मा इंद्रोऽग्निः एंवितु एवंभूतनयमरियल्प ॥
इंतु पेल्पट्ट नैगमादिनयंगळुत्तरोत्तर सूक्ष्म विषयत्वदिदमी क्रमं पूव्वं पूर्वहेतुकत्वविवमरियल डुवुविति नयंगळ पूर्वपूर्व्वं विरुद्ध महाविषयंगळ मुत्तरोत्तरानुकूलाल्पविषयंगळुमपूर्व तेदोर्ड douria क्तिणिदं प्रतिशक्तिभिद्यमानंगळागि बहुविकल्पंगळप्पुवु । अविवेल्ला नयंगळ गौणमुख्यते यदं परस्परतंत्रंगळ पुरुषार्थंक्रियासाधनसामर्थ्यवर्त्तार्णवं सम्यग्दर्शनहेतुगळु । इंतु तद्भवसामान्य सादृश्यसामान्यंगळनाश्रयिसि जीववर्क पंचेंद्रियत्वदोळु प्रमाणनयविषयत्वदिदमनेकांतत्वमुमेकांतत्वमं सिद्धमादुदिदुपलक्षणमते सर्व्वमुक्तजीवद्रथ्यंगळगे सव्वं कम्विप्रमोक्षलक्षणमोक्षदोळु संसारिजीवंगळगमेकेंद्रियादिजातिनामकम्र्मोदयजनित एकेंद्रियादि- १० पर्य्यायंगळोळं तत्सामान्यद्वयविवक्षेयवं प्रमाणनयविषयत्वदिवमनेकांतत्व मुमेकांतत्वमुमरि
पडुगुं ।
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जो जिस रूप है उसको उसी रूप जानना एवंभूत है, शब्दका जो वाच्यार्थ है उस क्रियारूप परिणमनके समय ही उस शब्दका प्रयोग युक्त है, अन्य समय में नहीं । जैसे जिस समय इन्दन क्रियाशील है उसी समय इन्द्र है अभिषेक या पूजा करते समय नहीं । जब तभी गो है बैठा या सोते हुए नहीं । अथवा जिस आत्मा अर्थात् ज्ञानरूपसे परिणत हो उसी रूप जानना एवंभूतं नय है जैसे 'इन्द्रके ज्ञानरूप परिणत आत्मा इन्द्र है' आगको जाननेवाला आत्मा आग है ।
गम आदि नयका विषय उत्तरोत्तर सूक्ष्म होता है इसीसे उनका यह क्रम रखा गया है । इनका विषय पूर्व-पूर्व में महान है और विरुद्ध है किन्तु उत्तरोत्तर अनुकूल और अल्प विषय है । क्योंकि द्रव्य अनन्त शक्तिवाला है अतः प्रत्येक शक्तिके भेदसे बहुत विकल्प होते हैं । ये सब नय गौणता और मुख्यता में परस्परसे सम्बद्ध हैं, उनमें पुरुषार्थ की क्रियाको साधनेकी सामर्थ्य है तभी वे सम्यग्दर्शनमें निमित्त होते हैं ।
इस प्रकार तद्भव सामान्य और सादृश्य सामान्य को लेकर जीवका पंचेन्द्रियत्व
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येनात्मना भूतस्तेनैवाध्यवसाययतीत्येवंभूतः । स्वाभिधेयक्रियापरिणतिक्षणे एव तच्छब्दो युक्ता नान्यकाले यदा इदंति तदैवेंद्र: नाभिषेत्रको नाभिपूजकः । यदैव गच्छति तदैव गौः न स्थितो न शयित इति । अथवा येनात्मना ज्ञानेन भूतः परिणतस्तेनैवाभ्यवसाययति यर्थेद्राग्निज्ञानपरिणत आत्मा इंद्राग्निः । नैगमादीनामुत्तरोत्तरसूक्ष्मविषयत्वेनायं क्रमः । पूर्वपूर्वहेतुका अमी पूर्वपूर्वविरुद्ध महाविषया उत्तरोत्तरानुकूलालयविषयाः स्युः । कुतः ? द्रव्यस्यानंतशक्तितः प्रतिशक्तिभिद्यमानत्वे बहुविकल्पाः स्युः । ते सर्वे नया गौणमुख्यतया परस्परतंत्रा : ३० पुरुषार्थक्रियासाधनसामर्थ्यात्सम्यग्दर्शन हेतवः ।
एवं तद्भवसामान्यसादृश्यसामान्ये आश्रित्य जीवस्य पंचेंद्रियत्वे प्रमाणनयविषयत्वेनानेकांतत्वमेकां तत्वं
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