Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
७८५
एकेंद्रियार्थ्याप्तं नामबंध स्थान प्रकृति संख्या हेतु पूर्वोक्त "णामस्स णव धुवाणि य" इत्यादि पाठक्रमवोळु नामकर्मनव ध्रुवप्रकृत्याद्यानुपूर्व्यावसानमाद यथायोग्यत्रयोविंशतिप्रकृतिबंघस्थानं स्थावरापर्याप्ततियंग्गत्ये केंद्रियचतुः प्रकृतियुतबंधस्थानमप्पुरमे केंद्रियापर्य्याप्तयुतबंधस्थानमेवकुं | २३ || अ | पंचविंशतिप्रकृतिबंधस्थानं एकेंद्रियपय्यप्तिक | बितिच पनरापय्र्याप्तं । एकेद्रियपय्र्याप्तयुतमागियु द्वींद्रिय त्रींद्रिय चतुरिंद्रिय पंचेंद्रिय मनुष्यापर्य्याप्त युतबंधस्थानमु- ५ मक्कुम' तें दोर्ड एकेंद्रियापर्य्याप्तयुक्तत्रयोविंशतिप्रकृतिस्थानदो अपर्याप्तनाममं कळवु पर्याप्तोच्छ्वासपरघातत्रयमं कूडिदोडी पंचविशतिप्रकृतिबंधस्थानमेकेंद्रियपर्याप्तयुतबंधस्थानमक्कु । मत्तमा पंचविंशतिप्रकृतिस्थानवोळु स्थावरपर्याप्तैकेंद्रियोच्छ्वास परघातंगळे 'ब पंचप्रकृतिगळं कळेदु त्रसापर्य्याप्तद्वींद्रियसंहननांगोपांगंगळे व पंचप्रकृतिगळं कूडिदोडी पंचविशतिप्रकृतिबंधस्थानं द्वींद्रियापर्य्याप्तयुतबंधस्थानमक्कु । मल्लि द्वींद्रियजातिनाममं तेगदु त्रींद्रियजातिनाममं कूडिदोडी १० पंचविशति प्रकृतिबंध स्थानं त्रींद्रियापर्य्याप्त युतबंधस्थानमक्कु । मल्लि त्रींद्रियजातिनाममं कळेदु चतुरिद्रियजातिनाममं कूडिदोडी पंचविशति प्रकृतिबंधस्थानं चतुरिद्रियापर्य्याप्तयुतबंधस्थानमक्कु । मल्लि चतुरिद्रियजातिनाममं कळेदु पंचेंद्रियजातिनाममं कूडियोडी पंचविशति प्रकृतिबंधस्थानं पंचेंद्रियपर्याप्ततबंधस्थानमक्कु । मल्लि तिर्य्यग्गतिनाममं कळेटु मनुष्यगतिनाममं कूडिदोडी पंचविंशति
तन्नवध वाद्यानुपूर्व्यातप्रकृतिबंध त्रयोविंशतिकं । स्थावरापर्याप्त तिर्यग्गत्ये केंद्रिययुतं तदेकेंद्रियापर्याप्तयुतं १५ २३ ए अ । तत्रापर्याप्तमपनीय पर्याप्तोच्छ्वासपरघातेषु निक्षिप्तेषु पंचविशतिकमेकेंद्रियपर्याप्तयुतं । पुनः
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स्थावरपर्याप्तैकेंद्रियोच्छ्वास वरघातान् पंचापनीय सपर्याप्तद्वींद्रियसंहननांगोपांगेषु पंचसु निक्षिप्तेषु तद्वद्रियापर्याप्तयुतं पुनः द्वींद्रियमपनीय श्रींद्रिये निक्षिप्ते तत्त्रींद्रियापर्याप्तयुतं पुनः त्रींद्रियमपनीय चतुरिद्रिये निक्षिप्ते तच्चतुरिद्रियापर्याप्तयुतं पुनः चतुरिंद्रियमपनीय पंचेंद्रिये निक्षिप्ते तत्पंचेंद्रियापर्याप्तयुतं । पुनः २०
नामकर्म एक जीव एक समय में बन्धयोग्य बन्धस्थान कहते हैं
पूर्वोक्त नौ ध्रुवबन्धी आदि आनुपूर्वी पर्यन्त तेईस प्रकृतियाँ। इनमें से स्थावर, अपर्याप्त, तियंचगति, एकेन्द्रिय जाति सहित जो बन्ध है वह एकेन्द्रिय अपर्याप्त सहित तेईसका बन्धस्थान है । २३ ए. अ. । इसमें अपर्याप्त प्रकृति घटाकर पर्याप्त, उच्छ्वास, परघात
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मिलानेपर एकेन्द्रिय पर्याप्तयुत पच्चीसका बन्धस्थान होता है । इनमें से स्थावर, पर्याप्त, २५ एकेन्द्रिय जाति, उच्छ्वास, परघात इन पाँचको घटाकर त्रस अपर्याप्त, दो इन्द्रिय जाति,
पाटिका संहनन, औदारिक अंगोपांग मिलानेपर दो-इन्द्रिय अपर्याप्त सहित पच्चीसका स्थान होता है । इनमें से दोइन्द्रिय जाति घटाकर तेइन्द्रिय जाति मिलानेपर तेइन्द्रिय अपर्याप्त सहित पच्चीसका बन्धस्थान होता है। इनमें से तेइन्द्रिय जाति घटाकर चौइन्द्रिय जाति मिलाने पर चौइन्द्रिय जाति सहित पच्चीसका स्थान होता है । इनमें से चौइन्द्रिय ३० जाति घटाकर पंचेन्द्रिय जाति मिलानेपर पंचेन्द्रिय अपर्याप्त सहित पच्चीसका स्थान होता है । इनमें से तियंचगवि घटाकर मनुष्यगति मिलानेपर मनुष्य अपर्याप्तयुत पच्चीसका स्थान होता है। ऐसे पच्चीस प्रकृतिरूप छह बन्धस्थान हुए ।
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