Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० कर्मकाण्डे
इदि चदुबंधं खवगे तेरस वारस एगार चउसत्ता ।
तिदु इगिबंधे तिदु इगि णवगुच्छिट्ठाणवविवक्खा ॥५१५॥ इति चतुब्बंधक्षपके त्रयोदशद्वादशैकादशचत्वारि सत्वानि । त्रिद्वचेकबंधे त्रिद्वयेकं नवको च्छिष्टानामविवक्षा॥ ५ इंतुक्तप्रकारदिदं चतुब्बंधक्षपके नपुंसकवेदोदयारूढ सवेदानिवृत्तिकरणचरमसमयचतुबंध. कनोळ त्रयोदशत्रयोदशप्रकृतिसत्वस्थानमक्क द्वादशस्त्रीवेदोदयारूढसवेदानिवृत्तिकरणचरमसमयचतुबंधकनोळु द्वादशप्रकृतिसत्वस्थानमक्कुं। एकादशषंडवेदस्त्रीवेदोदयारूढापगतवेदोदयानिवृत्ति. करणक्षपकचतुब्बंधकरोळेकादशप्रकृतिसत्वस्थानमक्कं । चत्वारि सत्वानि मत्तमा पंडवेद स्त्रीवेद
पुंवेदोदयारूढापगतवेदोदयानिवृत्तिकरण चतुबंधकक्षपकरोळु चतुःप्रकृतिसत्वस्थानमक्कुमल्लिये १० मत्तमा पुवेदोदयारूढापगतवेदोदयानिवत्तिकरणप्रथमभागचतुब्बंधकनोळु पंचप्रकृतिस्थानमुं सत्व
मक्कुमेके दोडे गुणस्थानविषयसत्वस्थानसंख्याप्ररूपणयोळनिवृत्तिकरगनोळु सत्वस्थानंगळु पन्नों दु। पुवेदनवकबंधसत्वं चतुब्बंधकानिवृत्तिकरणनोळु विवक्षिसल्पटुरिदं।
अल्लिदं मेले नपुंसकवेदस्त्रीवेदपुंवेदत्रितयोदयारूढापगतवेदोदयानिवृत्तिकरणक्षपकरुगछु त्रिद्वयेकबंधे त्रिबंध द्विबंध एकबादरलोभकषायबंधभागेगळोळु यथाक्रमदिदं त्रिद्वयेकं त्रिबंधकनोळु १५ त्रिप्रकृतिसत्वस्थानमुं द्विबंधकनोळु द्विप्रकृतिसत्वस्थानमुं संज्वलनलोभैकप्रकृतिबंधकनोळु
संज्वलनलोभैकप्रकृतिसत्वस्थानमक्कुमा त्रिद्वये कबंधकस्थानकंगळोळु पुंवेदबंधदोळ्पेळदंते नवको. च्छिष्टानां नवकबंधसमयोनद्वयावळिमात्रसमयप्रबद्धंगळ सत्वमुं उच्छिष्टावळिमात्रोदयावशेषप्रथम
इति उक्तप्रकारेण षंढोदयारूढस्य सवेदानिवृत्तिकरणचरमसमयचतुबंधके सत्त्वं त्रयोदशकं । स्त्रीवेदोदयारूढस्य द्वादशकं । षंढस्त्रीवेदोदयारूढापगतवेदोदयचतुबंधके एकादशक। पुनः षंढस्त्रीवेदोदयानां तत्र २० चतुष्कं पुंवेदोदयारूढस्य पंचकमपि तदेकादशस्थानेषु पुंवेदनवकसत्त्वस्य विवक्षितत्वात् । तत उपरि त्रिवेदो
इस कहे विधानके अनुसार जो नपुंसक वेद सहित श्रेणि चढ़ता है उसके वेद सहित अनिवृत्तिकरणके अन्तिम समयमें, जिसमें मोहनीयकी चार प्रकृतियोंका बन्ध होता है, तेरह प्रकृतियोंका सत्त्व है। जो स्त्रीवेदके उदय सहित श्रेणी चढ़ता है उसके उसी समयमें बारह
प्रकृतियोंका सत्त्व है। जो नपुंसकवेद या स्त्रीवेदके उदयके साथ श्रेणी चढ़ता है उसके वेदके २५ उदयसे रहित तथा चार प्रकृतियोंके बन्धवाले भागमें ग्यारहका सत्त्व है। पुनः नपुंसकवेद
या स्त्रीवेद सहित श्रेणि चढ़नेवालेके सात नोकषायोंका क्षय होनेपर चार प्रकृतिरूप सत्त्वस्थान होता है। पुरुषवेदके उदयके साथ श्रेणि चढ़नेवालेके पाँच प्रकृतिरूप भी सत्त्वस्थान होता है। क्योंकि उसके ग्यारहके सत्त्वस्थानमें पुरुषवेदके नवक समयप्रबद्धकी विवक्षा
है। उससे ऊपर तीनों ही वेदोंके उदय सहित श्रेणी चढ़नेवालोंके.जहाँ तीन, दो और एक ३० प्रकृतिका बन्ध पाया जाता है ऐसे तीन भागोंमें क्रमसे तीनरूप, दोरूप और एकरूप सत्त्व
स्थान होता है । यहाँ पूर्ववत् नवक बन्धके एक समय कम दो आवली प्रमाण समयप्रबद्ध
और उच्छिष्टावली मात्र उदयसे अवशेष प्रथम स्थितिके निषेक यद्यपि हैं तथापि यहाँ उनकी विवक्षा नहीं है। जैसे पुरुषवेदके नवक समयप्रबद्धका सत्व अवशेष रहनेपर वह क्रोध
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