Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० कर्मकाण्डे
गर्ग सप्तानां समच्छित्तिः सप्तनोकषायंगळगे युगपत्क्षपणा प्रारंभ मुमवक्के तच्चरमखंड चरमसमय दो युगपत्सत्यव्युच्छित्तियुमक्कुमल्लि पुरुषे पुरुषवेदोदयारूढनोलु षण्णां च षष्णोकषायंपर्य 'सत्वच्छित्तियककुमेके दोर्ड नवकमस्तीति पुंवेदनवकबंध समयप्रबद्धंगळ क्षपितावशेषंगळु समयोनावळ प्रमितंगळं संपूर्ण समयबद्धंग संपूर्णावलिप्रमितंगळमंतु समयोनद्वयावलिमात्र५ नवकबंधसमयप्रबद्धंगळु सत्वमंटप्युर्दारदम देतें दोडे पुंवेदनवप्रश्नाधिकारदोलु समानबंधोदयव्युच्छिति प्रकृति मुत्तों वरो पठितमप्पुदरिदमद के बंधोदयंग युगपदव्युच्छित्तिगळप्पुवपुर्दारदं पुंवेदोदयचरमसमयदो समयोनद्वयावळिमात्रंगळप्पुववक्के संदृष्टि
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કાજ ५
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११२|३|४|४|४|४|४ आ००००बाधा
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कषायचतुस्संज्वलना इत्येकादश सत्त्वमस्ति । त्रिवेदोदयारूढानां समनोकषायक्षपणाप्रारंभः चरमखंड, चरमसमये सत्त्वव्युच्छित्तिश्च युगपदेव । तत्र पुंवेदोदवाल्दे तु समयोनावलिमात्रक्षपितावशेषा आवलीमात्र संपूर्णाश्त्र १० पुंवेदस्य नवकबंध समयप्रबद्धाः संतीति पण्णोकषायाणामेव सत्त्वव्युच्छित्तिः । ते च नवकसमयप्रबद्धाः स्वस्वबंधसमयादचलावली गतायां प्रतिसमयमेकैककालि परमुखेनवोदयंतः, आवलिकाले क्षीयमाणाः समयोनद्वयावलिकाले सर्वे उच्छिष्टावलिमात्रनिषेकैः सह क्षीयते । गलितावशेषास्तु समयप्रबद्धांशत्वात्समय प्रवद्धा इत्युच्यते ।
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नपुंसक वेदके उदय के साथ श्रेणि चढ़नेवाले के स्त्रीवेद नपुंसकवेद के उदयका अभावरूप दो स्थानों में पुरुषवेद सहित छह नोकषाय और चार संजलन इन ग्यारह प्रकृतिरूप स्थान होता १५ है । तीनों में से किसी भी एक वेदके उदय के साथ श्रेणि चढ़नेवालोंके सात नोकषायों की क्षपणाका प्रारम्भ और अन्तिम खण्डके अन्तिम समय में उन सात कषायोंकी सत्त्व व्युच्छित्ति एक साथ होती है । उसके होनेपर चारका हो सत्व रहता है । किन्तु इतना विशेष हैजो पुरुषवेद के उदय के साथ श्रेणी चढ़ा है उसके एक समय कम दो आवली प्रमाण समयप्रबद्धों में से एक समय कम आवली प्रमाण क्षय होनेके पश्चात् सम्पूर्ण शावली प्रमाण २० पुरुषवेदके नवक समयप्रबद्ध पाये जाते हैं । अतः उसके छह नोकषायों की ही सत्त्व व्युच्छित्ति होती है। इससे पुरुषवेद सहित श्रेणि चढ़नेवाले के पाँचका सत्त्व रहता है । जिनका बन्ध हुए थोड़ा समय हुआ हो और जो संक्रमण आदि करनेके योग्य न हों ऐसे नूतन समयबद्ध के निषेकोंको नवक समयप्रबद्ध कहा है। वे नवक समयबद्ध अपने-अपने बन्धके प्रथम समय से लेकर आवली प्रमाण कालमें अन्य अवस्थाको प्राप्त नहीं होते, इससे २५ इस आवलीकाको अचलावली कहते हैं । उस अचलावलीके बीतने पर प्रति समय वे नवक समयबद्ध एक-एक फालि परमुखरूपसे उदय होकर आवलीकालमें क्षय होते हुए एक समय कम दो आवली कालमें सब उच्छिष्टावली मात्र निषेकोंके साथ क्षयको प्राप्त होते हैं । 'गलितावशेष' अर्थात् गलनेके पश्चात् अवशेष समयप्रबद्ध के जो निषेक रहते हैं वे समयप्रबद्ध के अंश हैं, इससे उनको भी समयप्रबद्ध कहा है ।
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