Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० कर्मकाण्डे
डुत्तिरलु पन्नों दुं प्रकृतिसत्वस्थानंगळप्पुबु । स्त्रीवेदिपंचबंधकानिवृत्तिकरणनोळमते अष्टकषायंगळ क्षपियिसल्पडुत्तिरलु पदिमूलं षंढवेदं क्षपियिसल्पडुत्तिरलु पन्नेरडं प्रकृतितत्वस्थानंगळप्पुवु । षंडवेदिपंचबंधकानिवृत्ति अष्टकषायक्षपणानंतरं स्त्रीवेदक्कं पुंवेदक्कं युगपत्क्षपणाप्रारंभमकुमप्पु. दरिदं त्रयोदशप्रकृतिसत्वस्थानमेयक्कु । संदृष्टि रचना विशेषमिदु :
इदर विवरणं मोहनीयत्रिसंयोगदोलु द्वयाधिकरण एकादेय त्रिप्रकारदोलुयोजिसिको बुदुबंधोदयसत्व
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पुरिसोदयेण चडिदे अंतिमखंडंतिमोत्ति पुरिसुदओ।
तप्पणिधिम्मिदराणं अवगदवेदोदयं होदि ॥५१३॥ पुरुषोदयेन चटिते चरमखंडचरमसमयपर्यंतं पुरुषोदयः । तत्प्रणिधावितरयोरपगतवेदोदयो भवति ॥
पुरुषोंदयेन पुंवेदोददिदं चडिदे क्षपकण्यारूढनो अंतिमखंडंतिमोत्ति चरमखंड चरम१. समयपयंतं पुंवेदोदयप्रथमस्थित्यायामदाळ नपुंसकवेदक्षपणाखंडमुं स्त्रीवेदक्षपणाखंडमुं पुंवेद
क्षपणाखंडमुमेंब त्रिखंडंगळोळु चरमपुंवेदक्षपणाखंडचरमसमयपयंतं पुरुषोदयः पुवेदोंदयमुं
नंतरं तत्र पंढस्त्रीवेदयोः क्रमशः क्षपणात् । स्त्रीवेदोदयारूढस्य तत्र त्रयोदशकं षंढे क्षपिते च द्वादशकं पंढोदयारूढस्य तत्र त्रयोदशकमेव स्त्रोवेदयोर्युगपत्क्षपणाप्रारंभात् ॥ संदृष्टिः
तो तेरह प्रकृतिरूप सत्त्वस्थान हैं और नपुंसक वेदका क्षय होनेपर बारह प्रकृतिरूप सत्त्व १. स्थान हैं। जो जीव नपुंसकवेदके उदयके साथ श्रेणि चढ़ता है उसके तेरह प्रकृतिरूप ही
सत्त्वस्थान हैं। क्योंकि वह नपुंसकवेद और स्त्रीवेदका क्षपण एक साथ प्रारम्भ करता है ॥५१२॥
जो पुरुषवेदसे झपकश्रेणिपर चढ़ता है उसके अन्तिम खण्डके अन्तिम समय पर्यन्त पुरुषवेदके उदयकी प्रथम स्थितिके कालमें नपुंसक वेद क्षपणाखण्ड, स्त्रीवेद क्षपणाखण्ड और पुरुषवेद क्षपणाखण्डोंमें-से अन्तिम खण्डके अन्तिम समय पर्यन्त पुरुषवेदका उदय और
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