Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० कर्मकाण्डे
प्रकृतिगळ नूरतों भत्तेरडुमप्पुवु । गुणकारंगळं चतुविशतिप्रमितंगळप्पुवु । असंयतनोळ नवाद्यष्टादिकूटद्वयवोळ । ७ । ६ । वयस्थानंगळेदु प्रकृतिगळरुवत्तमप्पुवु । अव तन्नुपयोगषट्कदिवं
गुणिसिदोडे नाल्वतेंट स्थानंगळ मूनूररवत्तु प्रकृतिगळप्पुवु । गुणकारंगळुमिप्पत्तनाल्कप्पुवु । देशसंयतंर्ग अष्टाविसमावि कूटद्वयवोळे टु स्थानंगळुमय्वत्त रडु प्रकृतिगळप्पु । ६ [ ५ | ववं
|२८२४ ५ तन्नुपयोगषट्कवि गुणिसिदोर्ड नाल्वत दुदयस्थानंगळं मूनूरहन्नेरहु प्रकृतिविकल्पंगळुमप्पु
वल्लियुं गुणकारंगळिप्पत्तनाल्कप्पुवु । प्रमत्तसंयतंगे सप्तादिषडादिकूटद्वयवोळेट स्थानंगळ नाल्वत्तनाल्कुप्रकृतिगळप्पुवु५.४इवं तन्नुपयोगसप्तकविवं गुणिसिवोडवयस्थानंगळवत्तार.
प्पुवु । प्रकृतिगर्छ मूनूरेंटप्पुवु । गुणकारंगळ मिप्पत्तनाल्कुमप्पुवु । अप्रमत्तंगेयुं प्रमत्तनत सप्तादियोगर्गुणिताश्चतुर्विंशतिः, द्वानवत्यग्रशतं । असंयते | ७ | ६ | अष्टचत्वारिंशत् षष्टयनत्रिशती। देशसंयते
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| ३२ । २८ ६ । ५ । अष्टचत्वारिंशत् द्वादशाग्रत्रिशती । प्रमत्तेप्रमत्ते च | ५ । ४ षट्पंचाशत् अष्टाग्रत्रिशती
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मिश्रमें एक नौरूप, दो आठ-आठ रूप, और एक सातरूप ये चार स्थान हैं। उनकी बत्तीस प्रकृतियां हैं। उन्हें छह उपयोगोंसे गुणा करनेपर चौबीस स्थान और एक सौ बानबे प्रकृतियां होती हैं।
असंयतमें पहले कूटोंमें नौरूप एक, आठरूप दो और सातरूप एक स्थान है। उनकी १५ प्रकृतियां बत्तीस । पिछले कूटोंमें आठरूप एक, सातरूप दो और छहरूप एक, ये चार
स्थान हैं। उनकी प्रकृतियां अट्ठाईस । दोनोंको मिलानेपर आठ स्थान और साठ प्रकृतियाँ होती हैं। उनको छह उपयोगोंसे गुणा करनेपर अड़तालीस स्थान और तीन सौ साठ प्रकृतियां होती हैं।
देशसंयतमें पहले कूटोंमें एक आठरूप, दो सातरूप, एक छहरूप ऐसे चार स्थान हैं, २० प्रकृतियां अठाईस । पिछले कूटोंमें एक सातरूप, दो छहरूप और एक पांचरूप ये चार स्थान हैं। चौबीस प्रकृतियां हैं। दोनोंको मिलाकर आठ स्थान बावन प्रकृतियां होती हैं । उनको ह उपयोगोंसे गुणा करनेपर अड़तालीस स्थान और तीन सौ बारह प्रकृतियाँ हैं।
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