Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
७४१ पर्याप्तापर्याप्तयोगंगळ त्रयोदशंगळक्कुमदु। १३ । ४ । १३ । ३६ । गुणिसुत्तं विरलु द्विपंचाशत्स्थानंगळ ५२ मष्टषष्टयुत्तर चतुःशतप्रकृतिगळमप्पुवु । ४६८। मत्तमा मिथ्यादृष्टियोळ अनंतानुबंधिकषायोदयरहित चतुःस्थानंगळुमं द्वात्रिंशत्प्रकृतिगळुमं ७ मनोयोग चतुष्क, वाग्योग
चतुष्क मुमौवारिककाययोग, वैक्रियिककाययोगमुमेंब पर्याप्तदशयोगंगळप्पुवेंदु गुणिसुतं विरलु। नुबंधिन्यंतर्मुहुर्ते मरणाभावात्तत्पर्याप्तदशयोगर्गुणिताः स्थानप्रकृतयः | ७ | चत्वारिंशत् विंशत्यत्रिशती ५
| ३२ मिलित्वा स्यानानि द्वानवतिः प्रकृतयोऽष्टाशोत्यग्रसप्तशती । सासादने स्थानप्रकृतयः |४वैक्रियिकमिश्रस्य
३२/
पयग्वक्ष्यतीति द्वादशभिर्गणिता अष्टचत्वारिंशत चतुरशीत्यत्रिशतो। मित्र। दशभिर्गुणिताश्चत्वारिंशत्
८८
३२
विंशत्यनत्रिशती । असंयते । ७ । ६ । कार्मणौदारिकमिश्रवैक्रियिकमिश्राणां पृथग्वक्ष्यतीति दशभिर्गुणिता
८.८] ७७
३२ | २८ अशीतिः षट्छती । देशसंयते |८| नवभिर्गुणिता द्वासप्ततिरष्टषव्यग्रचतुःशती । प्रमत्तेऽप्रमत्ते च
| ५ | ४ | आहारकद्वयस्य पृषग्वक्ष्यतीति नवभिर्गुणिता द्वासप्ततिः षण्णवत्यपत्रिशती। अपूर्वकरणे १०
स्थान और तीन सौ बत्तीस प्रकृतियाँ हैं। सब मिलकर बानबे स्थान और सात सौ अठासी प्रकृतियाँ होती हैं । सासादनमें चार स्थान, बत्तीस प्रकृति ९+८+८+ ७ हैं । चूंकि वैक्रियिक मिश्रयोगको अलगसे कहेंगे, इसलिए बारह योगोंसे गुणा करनेपर अड़तालीस स्थान और तीन सौ चौरासी प्रकृतियाँ होती हैं।
मिश्रमें स्थान चार और प्रकृति ९+८+८+७== बत्तीस । उनको दस योगोंसे गुणा । करनेपर चालीस स्थान और तीन सौ बीस प्रकृतियाँ होती हैं।
असंयतमें आठ स्थान और ९+ ८+ ८+७=३२ । ८+७+७+ ६ = २८ । साठ प्रकृतियाँ हैं । चूंकि कार्माण, औदारिक मिश्र और वैक्रियिक मिश्रका कथन पृथक करेंगे अतः दस पर्याप्त योगोंसे गुणा करनेपर स्थान अस्सी और प्रकृतियाँ छह सौ होती हैं।
देशसंयतमें स्थान आठ और प्रकृतियाँ ८+७+७+६=२८ । ७+६+६+५% २४ २. बावन । उनको नौ योगोंसे गुणा करनेपर बहत्तर स्थान और प्रकृति चार सौ अड़सठ होती हैं।
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