Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
७३५
इंतुपयोगंगळदं गुणिसल्पवयस्थानंगळमं तत्प्रकृतिगळमं तंतम्मगुणस्थानदोळु स्थापिस - पटुवं भाविसिवातंगनंतरमवरोळालापं पेळल्पडुगुमर्द र्त दोडे मिथ्यादृष्टियोळु कूटद्वयवो दशादिचतुःस्थानंगळं तत्रादिचतुःस्थानंगळ मंतुदयस्थानं गळे दुमं तन्नुपयोगंगळदरिदं गुणिदोडुदयस्थानंगळु नाल्वत्तप्पुववर प्रकृतिगळं प्रथमकूटदो मुवत्तारु ३६ । द्वितीयकूटदोळ ६८ वयंत तुपयोगपंचकदिदं गुणिसिदोडे मूनूरनाल्वत्तु प्रकृति
मूत्रतरुवते. टप्पु ८ ७
९१९ ८1८
१० ९
३६
३२
विकल्पंगळवा स्थानविकल्पंगळामी प्रकृतिविकल्पंगळां प्रत्येकं चतुविंशति भेदंगळप्युवदरिवं गुणका रंगळु मिप्पत्तनात्कधुवु ।
सासादननो नवाद्ये रुकट दोछु चतुःस्थानंगळप्प | प्रकृतिगळ मूवतेरडपु ७
वयं
८८
९
३२
तन्नुपयोग पंचकविदं गुणिसिवोर्ड उदयस्थानंगळ विशतिप्रमितंगळप्पूवु । प्रकृतिगळु नूररुवतप्पुववक्कं चतुव्विशतिगुणकारमक्कु । मिश्रनोळु नवायेककूटवळ चतुरुवयस्थानंगळं द्वात्रिंशत् - १० प्रकृतिगळ मप्पुवि ७ वं तन्नुपयोगं गळार गुणिसुतं विरलुदवस्था विकल्पंग लिप्यत्तनालकुं
टाट
९ ३२
प्रमत्ता दिसप्तके चतुर्ज्ञानं त्रिदर्शन मिति सप्त । जिने सिद्धे च केवलज्ञानदर्शने इति द्वौ द्वौ । तत्र मिथ्यादृष्टी स्थानानि प्रकृतयश्च अ ८ ७ स्वोपयोगैर्गुणिते सति स्थानानि चत्वारिंशत्, प्रकृतयश्चत्वारिशदग्रत्रिश
९९ ८८
१० ९
३६ ३२
तानि । सासादने स्थानप्रकृतयः
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७ स्वयोर्गुणिताविंशतिः षष्टयुत्तरशतं । मिश्र
ረረ
९
३२
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८८
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५
स्वोप
१५
मिथ्यादृष्टि में पहले कूट में एक दस प्रकृतिरूप, दो नौ-नौ प्रकृतिरूप, एक आठरूप ये चार स्थान हैं। इनकी प्रकृतियोंका जोड़ छत्तीस हुआ। पिछले कूट में एक नौरूप, दो आठआठ रूप, और एक सातरूप ये चार स्थान हैं। इनका जोड़ बत्तीस । दोनोंको मिलानेपर आठ स्थान और अड़सठ प्रकृतियाँ हुई । उनको पाँच उपयोगसे गुणा करनेपर चालीस स्थान और तीन सौ चालीस प्रकृतियाँ हुई ।
सासाद्दनमें एक नौरूप, दो आठ-आठरूप और एक सातरूप ये चार स्थान और बत्तीस प्रकृतियाँ हैं । उनको पाँच उपयोगोंसे गुणा करनेपर बीस स्थान और एक सौ साठ प्रकृतियाँ होती हैं ।
क - ९३
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