Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जोवतत्त्वप्रदीपिका षडादिकूटद्वयदोळेट स्थानंगळं नाल्वत्तनाल्कुं प्रकृतिगळप्पुवु | ५ ४ इवं तन्नुपयोगसप्तकविदं
२४ २०० गुणिसिदोडय्वत्तारुदयस्थानंगळ मूनूरेंटु प्रकृतिगळुमप्पुवु गुणकारंगळमिप्पत्तनाल्कुम पुत् ॥ अपूर्वकरणंगे षडादिचतुःस्थानंगळं विंशतिप्रकृतिगळुमप्पुव । अवं तन्नुपयोगसप्तकदि गुणिसिदोडे मोहनीयोदयस्थानंगळिप्पत्ते टु प्रकृतिविकल्पंगळ्नूरनाल्वत्तुमप्पुव । गुणकारंगळुमिप्पत्तनाल्कप्पुषु । इंतिल्लिगे चतुविशतिगुणकारमनुळ्ळ मोहनीयोदयस्थानंगळ पयोगाश्रितंगळ मूनूरिप्पत ३२०। ५ प्पुवु । प्रकृतिविकल्पंगळ येरडुसासिरद नूरिप्पत्तप्पुव २१२०॥ इवं चतुम्विशतिगुणकारविवं गुणिसिदोडे स्थानविकल्पंगळ येळ सासिरदरुनूरेभत्तप्पुवु ७६८०। प्रकृतिविकल्पंगळुमय्वत सासिरदेण्टुनूरेभत्तप्पुवु ५०८८० । अनिवृत्तिकरणंगे उदयस्थानमो दु प्रकृतिगळेरडवं तन्नुपयोगसप्तदिदं गुणिसिदोडे स्थानविकल्पंगळेळु प्रकृतिविकल्पंगळ पदिनाल्कप्पुवु। अवं द्वादश विकल्पदिदं गुणिसिदोंडुदयस्थानंगळे भत्तनाल्कु ८४ । प्रकृतिविकल्पंगळु नूररुवत्तेंदु १६८ । मतम- १० निवृत्तिकरणन अवेंदभागयोळुदयस्थानमो दु प्रकृतियुमोंदु । अवं तन्नुपयोगसमकदिदं गुणिसिवोर्ड अपूर्वकरणे । ४ । अष्टाविंशतिः चत्वारिंशदाशतं । अनिवृत्तिकरणस्य स्थान प्रकृती, १ उपयोगैगुंगिते
६ २० ।
सप्त चतुर्दश पुनर्वादश भंगैर्गुणिते चतुरशांतिः अष्टपष्टय प्रशतं । अवेदभागे स्थान प्रकृतिः १ उपयोगैर्गुणिते
प्रमत्त और अप्रमत्तमें पहले कूटोंमें एक सातरूप, दो छहरूप, एक पांचरूप ये चार स्थान हैं, चौबीस प्रकृतियां हैं। पिछले कुटोंमें एक-एक छहरूप, दो पांच-पांच रूप, एक चार- १५ रूप ये चार-चार स्थान और बीस-बीस प्रकृतियां हैं। दोनोंको मिलानेपर दोनोंमें आठ-आठ स्थान और चवालीस-चवालीस प्रकृतियां हैं। उनको सात उपयोगसे गुणा करनेपर छप्पनछप्पन स्थान और तीन सौ आठ-तीन सौ आठ प्रकृतियां होती हैं। ____ अपूर्वकरणमें छह रूप एक, पांचरूप दो और चाररूप एक ये चार स्थान और बीस प्रकृतियाँ हैं। उनको सात उपयोगोंसे गुणा करनेपर अठाईस स्थान और एक सौ चालीस २० प्रकृतियां होती हैं। इन सब गुणस्थानोंको जोड़नेपर ४०+२० + २४+४८+ ४८+५६ + ५६ + २८= तीन सौ बीस स्थान हुए । और सबकी प्रकृतियोंको जोड़नेपर ३४० + १६० + १९२ + ३५० + ३१२ + ३०८ + ३०८+१४० = इक्कीस सौ बीस प्रकृतियां हुई। उनको चौबीस भागोंसे गुणा करनेपर पचास हजार आठ सौ अस्सी प्रकृतियां हुई।
___ अनिवृत्तिकरणमें दो प्रकृतिरूप एक स्थान है। ननको सात उपयोगोंसे गुणा करनेपर २५ सात स्थान चौदह प्रकृतियाँ हुई। उनको बारह भंगोंसे गुणा करनेपर चौरासी स्थान, एक सौ अड़सठ प्रकृतियाँ होती हैं। अनिवृत्तिकरणके अवेद भागमें एक प्रकृतिरूप एक स्थान । उनको सात उपयोगोंसे गुणा करनेपर सात स्थान सात प्रकृतियाँ हुई। उनको चार भंगोंसे
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