Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० कर्मकाण्डे
वपुर्दारवं एकं चतुःप्रकृतिस्थानमो देयक्कु में तें बोर्ड अवेदकरोळु चतुःप्रकृतिस्थानद्वयं पुनरुक्तंगळे दुकळे दुवप्पुरिदं । इंतु अपुनरुक्तस्थानंगळु नाल्वर्त्तयप्पु ४० वी नात्वत्तुं स्थानंगळं प्रत्येकं चतुव्विशतिभेवंगळप्पुवप्पुदरिदमा नात्वत्तनिष्पत्तनात्करिदं गुणिसिदो ४० । २४ । डो भइनूररुवत्त मोहनीयोदयस्थानंगळप्पु ९६० विवरोळ द्वादश द्विके द्विप्रकृत्युदयस्थानदोळु द्वादशस्थानभेदभंगं५ गळपुर्व ते बोर्ड पुनरुक्तद्वादशस्थानभेबंगळु कळेदु वपुर्दारदं पंचैकस्मिन् एकप्रकृत्यु वयस्थानदोळपुनरुक्तस्थानविकल्पंगळे देयपूर्व ते बोर्ड संज्वलनक्रोधाविचतुष्टयमुं ' सूक्ष्मलोभमुमिते स्थानंगळपवु । शेष षट्स्थानंगळु पुनरुक्तंगळे 'दु कळे दुवपुर्दारदं । इंतु द्वयेक प्रकृत्युदय स्थानंगळे रेडरोलं कूडि पदिनेछु स्थानंगळ १७ । विवं कूडिदोडे अपुनरुक्त सर्व्वस्थानंगळो' भैनूरप्पत्तेळप्पु ९७७ व दु मंदण सूत्रदो पेपर । संदृष्टि
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१० पूर्वकरणषट्केन च पुनरुक्तत्वात् । पंचकानि चत्वार्येव सवेदकप्रमत्ताप्रमत्तयोस्तद्वये एकस्य अवेदकतत्सप्तसु चतुर्णां च पुनरुक्तत्वात् । चतुष्क्रमेकमेव अवेदकं तद्वयस्यापूर्वकरणस्य तेन पुनरुक्तत्वात् । एतानि चत्वारिंशत् प्रत्येकं चतुर्विंशतिभेदानीति तावता गुणयित्वा द्विप्रकृतिकस्य द्वादशभिरेक प्रकृतिकस्य पंचभिश्चापुनरुक्तैर्युतानि
भूत्वा ॥४८८||
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उनमें समानता होने से दो पुनरुक्त हुए । तथा वेदक रहित पिछले कूटों में छह प्रकृतिरूप १५ स्थानको लिये एक कूट प्रमत्तका और एक कूट अप्रमत्तका था । ये दोनों कूट अपूर्वकरणके छह प्रकृतिरूप कूट के समान हैं। अतः दो कूट पुनरुक्त हुए । इस प्रकार चार कूटोंके चार स्थान पुनरक्त होनेसे घटा दिये ।
पाँच प्रकृतिरूप चार ही स्थान हैं। पहले नौ कहे थे। उनमें वेदक सहित पहले कूटों में एक प्रमत्तका कहा था और एक अप्रमत्तका कहा था। वे दोनों समान हैं । अतः उनमें एक २० पुनरुक्त है । वेदक रहित पिछले कूटोंमें एक देशसंयतका, दो-दो प्रमत्त अप्रमत्त और अपूर्वकरणके, इन सात में से प्रमत्त, अप्रमत्त अपूर्वकरणके समान है । अत: चार पुनरुक्त हुए । इस प्रकार पाँच स्थान पुनरुक्त कम किये ।
चार प्रकृतिरूप एक ही स्थान है। पहले तीन कहे थे । वे तीनों ही समान होने से दो पुनरुक्त घटा दिये । इस प्रकार जिनमें प्रकृतियोंकी समानता है ऐसे पुनरुक्त स्थान घटाने२५ पर चालीस शेष रहते हैं। एक-एक स्थानके चौबीस चौबीस भंग होनेसे चौबीससे गुणा करनेपर नौ सौ साठ हुए ।
पहले दो प्रकृतिरूप स्थानके चौबीस भंग कहे थे । उनमें से बारह पुनरुक्त छोड़े बारह रहे। और एक प्रकृतिरूप स्थानके ग्यारह भंग कहे थे । उनमें से छह पुनरुक्त छोड़े पाँच रहे । इन सतरहको नौ सौ साठ में जोड़नेपर नौ सौ सत्तहत्तर हुए ||४८८||
३० १. क्रोधमानमायाबादर लोभसूक्ष्मलोभ अंतु ५ ॥
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