Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
७२५ सर्वगुणस्थानंगळोळं कूडि दशप्रकृतिस्थानमो देयक्कुं। नवप्रकृतिस्थानंगळु षट्प्रमितं. गळप्पुवु । अष्टप्रकृतिस्थानंगळेकादशप्रमितंग ठप्पुवु । समप्रकृतिस्थानंगळुमेकादशप्रमितंगळेयप्पुवु । षट्प्रकृतिस्थानंगळुमेकादशमात्रंगळेयप्पुवु। पंचप्रकृतिस्थानंगळु नवप्रमितंगळप्पुबु । चतुःप्रकृतिस्थानंगळु त्रिसंख्यातयुतंगळप्पुवितिनितुं स्थानंगळनितुं प्रत्येकं चतुग्विशति चतुविशति भंगयुतंगर्छ । द्विप्रकृतिस्थानमो दुं चतुविशतिभंगमनुकदु । एकप्रकृतिस्थानमा दु एकादशभंगयुतमक्कु। ५ संदृष्टि :
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सर्वगुणस्थानेषु मिलित्वा दशकं स्थानमेकं नवकानि षद्, अष्टकानि सप्तकानि षट्काणि चैकादशैकादश, पंचकानि नव, चतुष्काणि त्रीणि । एतानि प्रत्येकं चतुर्विशतिभंगगतानि द्विकमेकं भंगाश्चतुर्विंशतिः, एकैकमेकं
सब गुणस्थानों में मिलकर दस प्रकृतिरूप स्थान तो एक ही है जो मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में है। नौ प्रकृतिरूप छह स्थान हैं-मिथ्यादृष्टि में तीन, दो प्रथम कूटोंमें और एक पिछले कूटोंमें। तथा सासादन मिश्र असंयतमें पहले कूटोंमें एक-एक । इस तरह १० छह हैं। तथा आठ प्रकृतिरूप, सात प्रकृतिरूप, छह प्रकृतिरूप ग्यारह-ग्यारह स्थान हैं। उनमें से मिथ्यादृष्टि में पहले कूटोंमें एक, पिछले कूटोंमें दो इस प्रकार तीन । सासादन और मिश्रमें दो-दो। असंयतमें पहले कूटोंमें दो, पिछले कूटोंमें एक, इस तरह तीन । देशसंयतमें पहले कूटोंमें एक । इस तरह आठ प्रकृतिरूप ग्यारह स्थान हैं। तथा पिछले कूटोंमें एक मिथ्यादृष्टिमें, एक-एक सासादन और मिश्रमें, तीन असंयतमें, एक १५ पहले और दो पिछले कूटोंमें । देशसंयतमें तीन-दो पहले और एक पिछले कूटोंमें । प्रमत्त
और अप्रमत्तके पहले कूटोंमें एक-एक । इस तरह सात प्रकृतिरूप ग्यारह स्थान हैं। तथा असंयतके पिछले कूट में एक, देशसंयतके पहले कूट में एक, पिछले कूट में दो इस तरह तीन, प्रमत्त-अप्रमत्तमें दो पहले कट में एक पिछले कट में इस तरह तीन-तीन, एक अपर्वकर इस तरह छह प्रकृतिरूप ग्यारह स्थान होते हैं ।
पाँच प्रकृतिरूप नौ स्थान हैं। उनमें से एक देशसंयतके पिछले कूटमें, एक पहले दो पिछले कूट में इस तरह तीन-तीन प्रमत्त और अप्रमत्तमें और दो अपूर्वकरणमें है। चार प्रकृतिरूप तीन स्थान हैं। एक-एक प्रमत्त-अप्रमतके पिछले कूट में और एक अपूर्वकरणमें । ये सर्वस्थान जानना। इनमें से एक-एक स्थानमें चौबीस-चौबीस भंग हैं। जैसे दस प्रकृतिरूप स्थानमें चार क्रोधादि कषायोंका उदय एक-एक वेदमें होनेसे बारह भंग हुए । वे बारह २५ भंग हास्य-रति सहित और बारह भंग अरति-शोक सहित होनेसे चौबीस हुए। इसी प्रकार
त
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