Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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२०
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गो० कर्मकाण्डे
युन प्रकृतिस्थामं कट्टुत्ति द्विभंगयुतत्रयोदशप्रकृतिस्थानमं कट्टुवागळु द्विभंगयुतनव प्रकृतिस्थानमं कट्टिबोर्डनितु भुजाकारंगळपुर्व दितु त्रैराशिकमं माडिमत्तमंते द्विभंगयुत सप्त दशप्रकृतिस्थानमुमं चतुभंगयुतैकविंशतिप्रकृतिस्थानमुमं षड्भंगयुतद्वाविंशतिप्रकृतिस्थान मुमं फलराशिगळं
तु त्रैराशिक चतुष्टयदिदं -
२५
प्रफइ लब्ध ९ | १३ | ९ ४
१ / २ /२
|२| अनुकरणंगमंते एकभंगयुतनव प्रकृतिस्थानमं कट्टुत्ति द्विभंगयुतसप्तदशप्रकृतिस्थानमं देवासंयतनागि कट्टिदोडेरड भुजाकारंगळप्पुवु । २ । अनिवृत्तिकरणं एकभंगयुतपंचप्रकृतिस्थान कट, टुत्तिद्दिदिपूर्ध्वकरणनागि एकभंगयुतनवप्रकृतिस्थानमं कट्टिदोडों तु भुजाकारमकुं । मत्तमायेकभंगयुत पंचप्रकृतिस्थानमं कट्टुत्ति देवासंयतनागि द्विभंगयुत सप्त दशप्रकृतिस्थान मं कट्टुमंतु पंचबंधक नर्त्तार्णदं भुजाकारभंगंगळ मूरप्पुवु । मतं चतुब्बंध कनेकभंगयुत पंचप्रकृति स्थान कट्टिदोडों भुजाकारमा चतुब्बंधकं देवासंयतनागि द्विभंगयुत सप्तदशप्रकृतिस्थानमं कट्टि - दोडेर भुजाकारंगलंतु चतुब्बंधकन तणिदं भुजाकारंगळ सूरवु । मत्तं त्रिप्रकृतिस्थान कटुतमनिवृत्तिकरणंचतुःप्रकृतिस्थानमं कट्टिदोडों दु भुजाकारमक्कु । मत्तं त्रिप्रकृतिस्थानबंधकं देवासय१५ तनागिद्विभंगयुत सप्तदशप्रकृतिस्थानमं कट्टिदोर्डरड भुजाकारंगळप्पुवंतु प्रकृतिस्थानबंधक ताण दं
प्र फ | इ | लब्ध प्र फ इ ९ १७ ९ ४ ९ २१ ९ १ २ २ १ ४ २
लब्ध Я फ इ लब्ध ८ ९ २२ ९ १२ १ ६ २
बंद लब्ध भुजाकारंगळु इप्पत्ते दु २८ । अप्रमत्तसंयतनेकभंग युतनवप्रकृतिस्थानमं कट्टु - त्ति देवासंयतनागिद्विभंगयुत सप्तदशप्रकृतिस्थानमं कट्टिदोर्ड भुजाकारंगळ त्रैराशिक सिद्धंगळे रेड
च द्वादशेति चतुर्विंशतिः । प्रमत्तसंयतद्विधानवकस्य देशसंयतद्विधात्रयोदशकेन चत्वारः, मिश्रा संयत द्विविधसप्तदशकेन चत्वारः, सासादने चतुर्विधैकविंशतिकेनाष्टो मिथ्यादृष्टिषडुविषद्वाविंशतिकेन द्वादशेत्यष्टाविंशतिः । अप्रमत्तकविधनवकस्य देवासंयतद्विभंगसप्तदशकेन द्वो । अपूर्वकरणनवकस्यापि तथैव द्वौ । अनिवृत्तिकरणैकभंगपंचकस्यापूर्वकरणैकभंगनवकेनैकः, देवासंयतद्विभंगसप्तदशकेन द्वौ चतुष्कस्यैकभंगपंचकेनैकः, देवासंयतद्वि
प्रमत्तमें नौके बन्धके दो प्रकार हैं । वहाँसे देशसंयत में आवे तो वहां तेरह के बन्धके दो प्रकार हैं । अतः चार भुजाकार हुए। यदि मिश्र में या असंयतमें आवे तो वहीं सतरह के बन्धके दो प्रकार हैं । अतः चार भुजाकार हुए। सासादनमें आवे तो वहाँ इक्कीस के बन्धके चार प्रकार अतः आठ भुजाकार हुए। मिध्यादृष्टिमें आवे तो वहां बाईसके बन्धके छह प्रकार हैं । अतः बारह भुजाकार हुए । इस तरह सब अट्ठाईस हुए ।
अप्रमत्तमें बन्धका एक ही प्रकार है । वहाँ से मरकर असंयत देव हो तो वहाँ सतरहके बन्धके दो प्रकार हैं। अतः दो भुजाकार हुए। प्रमत्तमें आवे तो वहां नौका ही बन्ध होता है अत: भुजाकार नहीं है । अपूर्वकरणमें नौका बन्ध है । वहाँ भी इसी प्रकार दो ही भुजाकार हुए।
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निवृत्तिकरण के प्रथम भागमें पांच के बन्धका एक प्रकार है। वहांसे अपूर्वकरण में आवे ३० तो वहाँ नौके बन्धका एक प्रकार है अतः एक भुजाकार है । यदि मरकर असंयत देव हो तो
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