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________________ ५ १० २० ७०८ गो० कर्मकाण्डे युन प्रकृतिस्थामं कट्टुत्ति द्विभंगयुतत्रयोदशप्रकृतिस्थानमं कट्टुवागळु द्विभंगयुतनव प्रकृतिस्थानमं कट्टिबोर्डनितु भुजाकारंगळपुर्व दितु त्रैराशिकमं माडिमत्तमंते द्विभंगयुत सप्त दशप्रकृतिस्थानमुमं चतुभंगयुतैकविंशतिप्रकृतिस्थानमुमं षड्भंगयुतद्वाविंशतिप्रकृतिस्थान मुमं फलराशिगळं तु त्रैराशिक चतुष्टयदिदं - २५ प्रफइ लब्ध ९ | १३ | ९ ४ १ / २ /२ |२| अनुकरणंगमंते एकभंगयुतनव प्रकृतिस्थानमं कट्टुत्ति द्विभंगयुतसप्तदशप्रकृतिस्थानमं देवासंयतनागि कट्टिदोडेरड भुजाकारंगळप्पुवु । २ । अनिवृत्तिकरणं एकभंगयुतपंचप्रकृतिस्थान कट, टुत्तिद्दिदिपूर्ध्वकरणनागि एकभंगयुतनवप्रकृतिस्थानमं कट्टिदोडों तु भुजाकारमकुं । मत्तमायेकभंगयुत पंचप्रकृतिस्थानमं कट्टुत्ति देवासंयतनागि द्विभंगयुत सप्त दशप्रकृतिस्थान मं कट्टुमंतु पंचबंधक नर्त्तार्णदं भुजाकारभंगंगळ मूरप्पुवु । मतं चतुब्बंध कनेकभंगयुत पंचप्रकृति स्थान कट्टिदोडों भुजाकारमा चतुब्बंधकं देवासंयतनागि द्विभंगयुत सप्तदशप्रकृतिस्थानमं कट्टि - दोडेर भुजाकारंगलंतु चतुब्बंधकन तणिदं भुजाकारंगळ सूरवु । मत्तं त्रिप्रकृतिस्थान कटुतमनिवृत्तिकरणंचतुःप्रकृतिस्थानमं कट्टिदोडों दु भुजाकारमक्कु । मत्तं त्रिप्रकृतिस्थानबंधकं देवासय१५ तनागिद्विभंगयुत सप्तदशप्रकृतिस्थानमं कट्टिदोर्डरड भुजाकारंगळप्पुवंतु प्रकृतिस्थानबंधक ताण दं प्र फ | इ | लब्ध प्र फ इ ९ १७ ९ ४ ९ २१ ९ १ २ २ १ ४ २ लब्ध Я फ इ लब्ध ८ ९ २२ ९ १२ १ ६ २ बंद लब्ध भुजाकारंगळु इप्पत्ते दु २८ । अप्रमत्तसंयतनेकभंग युतनवप्रकृतिस्थानमं कट्टु - त्ति देवासंयतनागिद्विभंगयुत सप्तदशप्रकृतिस्थानमं कट्टिदोर्ड भुजाकारंगळ त्रैराशिक सिद्धंगळे रेड च द्वादशेति चतुर्विंशतिः । प्रमत्तसंयतद्विधानवकस्य देशसंयतद्विधात्रयोदशकेन चत्वारः, मिश्रा संयत द्विविधसप्तदशकेन चत्वारः, सासादने चतुर्विधैकविंशतिकेनाष्टो मिथ्यादृष्टिषडुविषद्वाविंशतिकेन द्वादशेत्यष्टाविंशतिः । अप्रमत्तकविधनवकस्य देवासंयतद्विभंगसप्तदशकेन द्वो । अपूर्वकरणनवकस्यापि तथैव द्वौ । अनिवृत्तिकरणैकभंगपंचकस्यापूर्वकरणैकभंगनवकेनैकः, देवासंयतद्विभंगसप्तदशकेन द्वौ चतुष्कस्यैकभंगपंचकेनैकः, देवासंयतद्वि प्रमत्तमें नौके बन्धके दो प्रकार हैं । वहाँसे देशसंयत में आवे तो वहां तेरह के बन्धके दो प्रकार हैं । अतः चार भुजाकार हुए। यदि मिश्र में या असंयतमें आवे तो वहीं सतरह के बन्धके दो प्रकार हैं । अतः चार भुजाकार हुए। सासादनमें आवे तो वहाँ इक्कीस के बन्धके चार प्रकार अतः आठ भुजाकार हुए। मिध्यादृष्टिमें आवे तो वहां बाईसके बन्धके छह प्रकार हैं । अतः बारह भुजाकार हुए । इस तरह सब अट्ठाईस हुए । अप्रमत्तमें बन्धका एक ही प्रकार है । वहाँ से मरकर असंयत देव हो तो वहाँ सतरहके बन्धके दो प्रकार हैं। अतः दो भुजाकार हुए। प्रमत्तमें आवे तो वहां नौका ही बन्ध होता है अत: भुजाकार नहीं है । अपूर्वकरणमें नौका बन्ध है । वहाँ भी इसी प्रकार दो ही भुजाकार हुए। Jain Education International निवृत्तिकरण के प्रथम भागमें पांच के बन्धका एक प्रकार है। वहांसे अपूर्वकरण में आवे ३० तो वहाँ नौके बन्धका एक प्रकार है अतः एक भुजाकार है । यदि मरकर असंयत देव हो तो For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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