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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका बंदलब्ध द्वादशभुजाकारबंधंगळप्पु १२ । असंयतसम्यग्दृष्टि एकप्रकार भंगयुत सप्तदश प्रकृतिस्थान कटुत्तलु चतुब्भंगयुतैकविंशतिप्रकृतिस्थानमं कट्टुत्तिरलु द्विभंगयुत सप्तदशप्रकृतिस्थानमं कट्टुवागळे नितु एकविंशतिप्रकृतिस्थानबंधभुजाकार बंधंगळदपुवेंदु त्रैराशिकमं माडुत्तिरलु - बंदलब्धं भुजाकारंग एंटु । मत्तमा सप्तदश प्रकृतिस्थानमं कट्टुत्तलसंयतं प्रफ इ १७ २१ | १७ १ ४ २ षड्भंगयुतद्वाविंशतिप्रकृतिस्थानमं कट्टुवागळ द्विभंगयुत सप्तदशप्रकृतिस्थानमं कट्टुत्तलेनि ५ द्वाविंशतिप्रकृतिस्थानभुज (कारंगलं माळकुम दितिदो दु त्रैराशिकमं माडि । प्र |फ|इ १७ | २२ | १७ | १ | ६ | २ । बंद लब्धं भुजाकारंगळु पर्नरड १२ वंत संयतन सप्तदशप्रकृतिस्थानदत्तण भुजाका रंगळिप्पत्तप्पुवु २० ।' देशसंयतं एक भंगयुत त्रयोदश प्रकृतिस्थानमं कट्टुत्तलु द्विभंगयुत सप्तदश प्रकृतिस्थानमन संयतनागि मेणु मिश्रनागि मेणु देवासंयतनागि कट्टुवातं द्विभंगयुतत्रयोदश प्रकृतिस्थानम कट्टिबोर्डनितु भुजाकारंगळपुर्व दितु त्रैराशिकमं माडि मत्तमंत चतुर्भगयुतैकविंशतिप्रकृतिस्थान - १० षड्गतद्वाविंशतिप्रकृतिस्थानमुमं फलराशिगळं माडितु त्रैराशिकत्रितयमं माडि - - ७०७ Я फ इ लब्ध प्र फ इ लब्ध प्र फ १३ १७ १३ ४ १३ २१ १३ ८ १३ २२ १ २ २ १ ४ २ १ ६ २ लब्धत्रभुजाकर विशेषंगळु त्रयोदशप्रकृतिस्थानदत्तणदमिप्पत्तनात्कप्पवु २४ । प्रमत्तसंयतं एकभंग इ | लब्ध १३ १२ सम्यग्मिथ्यादृष्टिबंधयोग्यद्विधासप्तदशकस्य मिथ्यादृष्टिषोढाद्वाविंशतिकेन द्वादश । असंयतद्विधासप्तदशकस्य सासादनच तुकविंशतिकेनाष्टी मिध्यादृष्टिषोढाद्वाविंशतिकेन च द्वादशेति विंशतिः । देशसंयतद्विधात्रयोदशकस्य मिश्रा संयत देवासंयतानां द्विधासप्तदशंकेन चत्वारः । सासादन चतुर्वेकविंशतिकेन चाष्टौ मिध्यादृष्टिषोढा विंशतिकेन १५ Jain Education International दो भंग होते हैं । मिश्र से मिथ्यादृष्टि में आता है । अतः मिध्यादृष्टि के बाईसके बन्धमें छह भंगों की अपेक्षा भुजाकार २x६ = बारह होते हैं । असंयत में सतरह के बन्धके दो प्रकार हैं । वहाँसे सासादन में आनेपर वहाँ इक्कीसके बन्धके चार प्रकार होनेसे उनकी अपेक्षा आठ भुजाकार होते हैं। यदि सासादनसे मिध्यादृष्टिमें आवे तो वहां बाईसके बन्धके छह प्रकार होनेसे उनकी अपेक्षा बारह भुजाकार होते हैं । इस प्रकार बीस हुए । २० देशसंयत में तेरह का बन्ध दो प्रकारसे होता है। वहाँसे मिश्र में या असंयतमें या मरकर असंयत देव हो तो वहाँ सतरह के बन्धके दो प्रकार होनेसे उनकी अपेक्षा चार भुजाकार हैं । यदि सासादनमें आवे तो वहाँ इक्कीसके बन्धके चार प्रकार हैं, उनकी अपेक्षा आठ भुजाकार हुए। मिथ्यादृष्टिमें आवे तो वहां बाईसके बन्धके छह प्रकार हैं, उनकी अपेक्षा बारह भुजाकार हुए। इस प्रकार सब चौबीस भुजाकार हुए । १. असंयतं मित्रगुणस्थानमं पोद्दिदोडे अवस्थितमल्लदे भुजाकारबंध मिल्ल ॥ For Private & Personal Use Only २५ www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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