Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० कर्मकाण्डे
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त्पन्नावस्थित २२२२२२१७/१७/१३ ९/९/५/४ ३ २
किडि अवस्थित "गळ १७५
१७१३ ९१३, ९ ९ ९, ५, ४ ३, २
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१२१२ ६ ४ २ २ २ १ १ १ १ १ । अवरक्तअवरक्तव्यजावस्थित | इल्लि विशेषावक्तव्यंगळु मूरप्पुववे ते दोडे उपशमश्रेण्यवतरणदो पशांतकषायं क्रमविवं तम्मुंहूत्तकालं तन्न गुणस्थानयोळि१ तदनंतरसमयदोळ, सूक्ष्मसांपरायनागि तद्गुणस्थानकालमं. तम्मुहूर्त्तमात्रसमयंगळ क्रमदिदं कळिदनंतरसमयदोळनिवृत्तिकरणनागि तत्प्रथमसमयदोळ संज्वलनलोभमनोदने कट्टिदोडोंदवक्तव्यबंधविशेषमक्कुं १ मतमा उपशांतकषायनागलि मेणा
रोहणावरोहणसूक्ष्मसांपरायनागलि प्राग्बद्धदेवायुष्यरुगळगे मरणमादोडे देवासंयतरागि द्विभंगयुत सप्तदशप्रकृतिस्थानमं कट्टिदोडिवेरडवक्तव्यबंधविशेषगळप्पुवंतवक्तव्यंगळ मूरप्पुववर द्वितीयादिसमयंगळोळ समबंधमादोडवस्थितंगळुमल्लि मूरप्पु ३ वेदितरियल्पडुवु दिदं मुंवण गाथासूत्रदिदं पेन्दपरु :
भेदेण अवत्तव्वा ओदरमाणम्मि एक्कयं मरणे ।
दो चेव होंति एत्थवि तिण्णेव अवहिदा भंगा ॥४७४॥ भेदेनावक्तव्या अवतीय्यंमाणे एको मरणे द्वावेव भवतोऽत्रापि त्रय एवावस्थिता भंगाः॥
भेदेन विशेषदिदमवक्तव्यभंगंगळु मुंपेन्दंते उपशमश्रेण्यवरोहकोपशांतकषायं सूधमसांपरायनागि तद्गुणस्थानचरमसमयदोळु मोहनीयमनेनुमं कट्टदनिवृत्तिकरणनागि एकप्रकृतिस्थानमं
ल्पतरशून्यं । एवमल्पतरबंधाः पंचचत्वारिंशत् । अवस्थितस्तु भुजाकाराल्पतरवक्ष्यमाणावक्तव्यानां द्वितीया१५ दिसमयेषु बंधे पंचसप्तत्यग्रशतं ॥४७३।।
ते विशेषेणावक्तव्यास्तु सूक्ष्मसांपरायोऽस्तमोहबंधोऽवतरणेऽनिवृत्तिकरणो भूत्वा संज्वलनलोभं बध्ना
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वहां मोहनीयका बन्ध नहीं है। अतः वहाँ अवक्तव्य बन्ध सम्भव है, अल्पतर नहीं। अतः शन्य है । इस प्रकार अल्पतर बन्ध पैतालीस हैं।
एक सौ सत्ताईस भुजाकार, पैंतालीस अल्पतर कहे और तीन अवक्तव्य कहेंगे। इन २० सबमें पहले समयमें जितनी-जितनी प्रकृतियोंका बन्ध होता है उतनी-उतनी ही प्रकृतियोंका
बन्ध द्वितीय समयमें जहाँ हो वहाँ अवस्थित बन्ध कहलाता है। अतः अवस्थित बन्ध एक सौ पिचहत्तर हैं ॥४७३॥
भंग विवक्षा होनेपर विशेषरूपसे अवक्तव्य बन्ध कहते हैं-- सूक्ष्म साम्परायमें मोहका बन्ध नहीं होता। वहाँसे उतरकर अनिवृत्तिकरणमें
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