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________________ ७१४ गो० कर्मकाण्डे मि मि मि अ दे प्र अ अनिव. अल्पतरो त्पन्नावस्थित २२२२२२१७/१७/१३ ९/९/५/४ ३ २ किडि अवस्थित "गळ १७५ १७१३ ९१३, ९ ९ ९, ५, ४ ३, २ १ १२१२ ६ ४ २ २ २ १ १ १ १ १ । अवरक्तअवरक्तव्यजावस्थित | इल्लि विशेषावक्तव्यंगळु मूरप्पुववे ते दोडे उपशमश्रेण्यवतरणदो पशांतकषायं क्रमविवं तम्मुंहूत्तकालं तन्न गुणस्थानयोळि१ तदनंतरसमयदोळ, सूक्ष्मसांपरायनागि तद्गुणस्थानकालमं. तम्मुहूर्त्तमात्रसमयंगळ क्रमदिदं कळिदनंतरसमयदोळनिवृत्तिकरणनागि तत्प्रथमसमयदोळ संज्वलनलोभमनोदने कट्टिदोडोंदवक्तव्यबंधविशेषमक्कुं १ मतमा उपशांतकषायनागलि मेणा रोहणावरोहणसूक्ष्मसांपरायनागलि प्राग्बद्धदेवायुष्यरुगळगे मरणमादोडे देवासंयतरागि द्विभंगयुत सप्तदशप्रकृतिस्थानमं कट्टिदोडिवेरडवक्तव्यबंधविशेषगळप्पुवंतवक्तव्यंगळ मूरप्पुववर द्वितीयादिसमयंगळोळ समबंधमादोडवस्थितंगळुमल्लि मूरप्पु ३ वेदितरियल्पडुवु दिदं मुंवण गाथासूत्रदिदं पेन्दपरु : भेदेण अवत्तव्वा ओदरमाणम्मि एक्कयं मरणे । दो चेव होंति एत्थवि तिण्णेव अवहिदा भंगा ॥४७४॥ भेदेनावक्तव्या अवतीय्यंमाणे एको मरणे द्वावेव भवतोऽत्रापि त्रय एवावस्थिता भंगाः॥ भेदेन विशेषदिदमवक्तव्यभंगंगळु मुंपेन्दंते उपशमश्रेण्यवरोहकोपशांतकषायं सूधमसांपरायनागि तद्गुणस्थानचरमसमयदोळु मोहनीयमनेनुमं कट्टदनिवृत्तिकरणनागि एकप्रकृतिस्थानमं ल्पतरशून्यं । एवमल्पतरबंधाः पंचचत्वारिंशत् । अवस्थितस्तु भुजाकाराल्पतरवक्ष्यमाणावक्तव्यानां द्वितीया१५ दिसमयेषु बंधे पंचसप्तत्यग्रशतं ॥४७३।। ते विशेषेणावक्तव्यास्तु सूक्ष्मसांपरायोऽस्तमोहबंधोऽवतरणेऽनिवृत्तिकरणो भूत्वा संज्वलनलोभं बध्ना wwwwwwwwww वहां मोहनीयका बन्ध नहीं है। अतः वहाँ अवक्तव्य बन्ध सम्भव है, अल्पतर नहीं। अतः शन्य है । इस प्रकार अल्पतर बन्ध पैतालीस हैं। एक सौ सत्ताईस भुजाकार, पैंतालीस अल्पतर कहे और तीन अवक्तव्य कहेंगे। इन २० सबमें पहले समयमें जितनी-जितनी प्रकृतियोंका बन्ध होता है उतनी-उतनी ही प्रकृतियोंका बन्ध द्वितीय समयमें जहाँ हो वहाँ अवस्थित बन्ध कहलाता है। अतः अवस्थित बन्ध एक सौ पिचहत्तर हैं ॥४७३॥ भंग विवक्षा होनेपर विशेषरूपसे अवक्तव्य बन्ध कहते हैं-- सूक्ष्म साम्परायमें मोहका बन्ध नहीं होता। वहाँसे उतरकर अनिवृत्तिकरणमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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