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________________ ० कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ७१५ कट्टिदोडिदों दवक्तव्यबंधभेदमक्कुमा उपशांतकषायनागलि मेणारोहणावरोहणसूक्ष्मसांपरायनागलि मोहनीयमनेनुमं कट्टदे प्रारबद्धायुष्यंगे मरणमादोडे देवासंयतनागि विविधसप्तदशप्रकृति. स्थानमं कट्टिदोडेरडवक्तव्यंगळप्पुवितवक्तव्यबंधभेदंगळ मूरप्पु ३ ववर द्वितीयाविसमयंगळोळ सदृशप्रकृतिस्थानबंधमागुत्तं विरलवस्थितबंधंगळ मूरप्पुवु ३॥ इंतु मोहनीयक सामान्यविशेषभुजाकाराल्पतरावस्थितावक्तव्यमें ब चतुम्विघबंधंगळं पेळ्दनंतरं मोहनोयोग्यप्रकृतिस्थानंगळे नि- ५ ते दोडे पेळ्दपरु : दस णव अट्ठ य सत्त य छप्पण चत्तारि दोण्णि एक्कं च । उदयट्ठाणा मोहे णव चेव य होंति णियमेण ॥४७५॥ दश नवाष्ट च सप्त च षट् पंच चत्वारिद्वे एक चोदयस्थानानि मोहे नव चैव च भवंति . नियमेन ॥ दश नव अष्ट सप्त षट् पंच चतुः द्वि एकप्रकृतिसंख्यावच्छिन्नंगळप्पुवयस्थानंगळु मोहनीयदोळ नवस्थानंगळप्पुषु । संदृष्टि-१०।९।८।७।६।५।४।२।१॥ , अनंतरं मिथ्यादृष्टयादिगुणस्थानंगळोळु मोहनीयोदयप्रकृतिसंभवासंभवंगळनुदयस्थानंगळ्गे पेळ्दपरु। मिच्छं मिस्सं सगुणे वेदगसम्मेव होदि सम्मतं । एका कसायजादी वेददुजुगलाणमेकं च ॥४७६।। मिथ्यात्वं मिश्र स्वगुणे वेदकसम्यग्दृष्टावेव भवति । सम्यक्त्वं एका कषायजातिवेदद्वियुगलयोरेकं च ॥ मिथ्यात्वप्रकृतिय मिश्रप्रकृतियं तंतम्मगुणस्थानदोळे उदयिसुवधु । वेदकसम्यग्दृष्टिगळप्प असंयतादिचतुग्गुणस्थानवत्तिगळोळे सम्यक्त्वप्रकृतित्युदयमक्कुमिती पेळल्पट्टप्रकृतिगळ्गे २० तीत्येकः । स एव च यदि बद्धायुष्कः आरोहणेऽवरोहणे वा म्रियते तदा देवासंयतो भूत्वा द्विधा सप्तदशक बध्नातीति द्वी एवं त्रयो भवंति । अत्रापि तद्वितीयादिसमयेषु समबंधे त्रय एवावस्थिताश्च भवंति ॥४७४॥ एवं मोहनीयस्य सामान्यविशेषभुजाकारादिचतुर्धाबंधानुक्त्वा इदानीमुदयस्थानान्याह दशनवाष्टसप्तषट्पंचचतुद्वर्येकप्रकृतिसंख्यान्युदयस्थानानि मोहनीये नवैव भवंति ॥४७५।। मोहनीयोदयप्रकृतिषु मिथ्यात्वं मिश्रं च स्वस्वगुणस्थाने एवोदेति । सम्यक्त्वप्रकृतिः वेदकसम्यग्दृष्टावे- २५ संज्वलन लोभका बन्ध करनेपर एक अवक्तव्य बन्ध होता है। और बद्धायु सूक्ष्म साम्पराय चढते या उतरते हए मरण करे तो देव असंयत होकर दो प्रकारसे सतरह प्रकृतियोंका ब करता है, उसकी अपेक्षा दो अवक्तव्य हुए। इस प्रकार तीन अवक्तव्य बन्ध हैं। यहाँ भी द्वितीयादि समयमें समान प्रकृतियोंका बन्ध होनेपर तीन अवस्थित बन्ध सम्भव हैं ॥४७४।। ___ इस प्रकार मोहनीयके सामान्य विशेषरूप भुजाकार आदि चार प्रकारके बन्धोंको ३० कहकर अब मोहनीयके उदयस्थान कहते हैं दस, नौ, आठ, सात, छह, पाँच, चार, दो और एक प्रकृतिरूपसे नियमसे मोहनीयके नौ उदयस्थान होते हैं ।।४७५।। मोहनीयकी उदयप्रकृतियोंमें मिथ्यात्व और मिश्रका उदय अपने-अपने मिथ्यादृष्टि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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