Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
उद्बोधन से उनकी पत्नियों के मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया। प्रभव चोर को भी प्रतिबोध प्राप्त हुआ। उसने अपने पाँच सौ साथियों को भी प्रतिबोधित किया। जंबू के माता-पिता भी इस घटना से अत्यंत प्रभावित हुए। संसार से विरक्त हुए। आठों पत्नियों, प्रभव सहित पाँच सो चोरों एवं अपने तथा पत्नियों के माता-पिता आदि कुल पाँच सो सत्ताईस व्यक्तियों के साथ जंबू प्रव्रजित हुए।
सोलह वर्ष की आयु में उन्होंने दीक्षा ग्रहण की। बीस वर्ष तक साधु पद में रहे इस प्रकार छत्तीस वर्ष की आयु में वे आचार्य पद पर आसीन हुए। उसके बाद चवालीस वर्ष तक आचार्य पद में रहे। इस प्रकार चौसठ वर्ष श्रमण पर्याय में रहे। उसमें दीक्षा के बाद बीस वर्ष तक . छद्मस्थ अवस्था में रहे। चवालीस वर्ष केवली पर्याय में रहे। सर्वायु अस्सी वर्ष की पूर्ण करके मोक्ष में पधारे। - आर्य जंबू के पश्चात् धैर्यता, गंभीरता एवं विशिष्ट संहनन, प्रतिभा एवं उच्चतम परिणामों के अभाव से केवलज्ञान की परंपरा का विच्छेद हो गया। यहाँ से चतुर्दश पूर्वधरों-श्रुतकेवलियों की परम्परा का आरम्भ हुआ। प्रभव, शय्यंभव, यशोभद्र, संभूतविजय और भद्रबाहु श्रुतकेवली हुए। स्थूलभद्र मूलपाठ की दृष्टि से चतुर्दश पूर्वो, अर्थ की दृष्टि से दस पूर्वो के धारक थे। .
- तए णं से अज्जजंबू णामे अणगारे जायसड्ढे, जायसंसए, जायकोउहल्ले, संजायसड्ढे, संजायसंसए, संजायकोउहल्ले, उप्पण्णसड्ढे, उपण्णसंसए, उप्पण्णकोउहल्ले, समुप्पण्णसड्ढे, समुप्पण्णसंसए, समुष्यण्णकोउहल्ले, उट्ठाए उढेइ। उट्ठाए उद्वित्ता जेणामेव अज्जसुहम्मे थेरे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अज्जसुहम्मे थेरे तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता अज्जसुहम्मस्स थेरस्स णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे पंजलिउडे विणएणं पज्जुवासमाणे एवं वयासी।
शब्दार्थ - जायसड्ढे - श्रद्धापूर्वक उत्पन्न इच्छा से युक्त, जायसंसए - अनिरूपित अर्थ के प्रति उत्पन्न संशय पूर्ण जिज्ञासा युक्त, जायकोउहल्ले - जिज्ञासा योग्य अर्थ के प्रति कुतूहल-विशेष उत्सुकतायुक्त, संजायसड्ढे - पुनः उभरे हुए श्रद्धा भाव के साथ विशेष इच्छायुक्त,
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