Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
उपदेश सुनने आये। राजा कोणिक भी आया। आर्य सुधर्मा स्वामी ने धर्म देशना दी। सुनकर सब लोग जिधर से, जहाँ-जहाँ से आये थे, वापस लौट गये।
विवेचन - कोणिक (कूणिक) अंगदेश-चम्पानगरी का राजा था। वह भगवान महावीर स्वामी के अनुयायी मगधदेश-राजगृह नगर के नरेश श्रेणिक का पुत्र था। उसकी माता चेलना लिच्छिवी गणराज्य, वैशाली के अधिपति चेटक की पुत्री थी। कोणिक भगवान् महावीर स्वामी का परम भक्त था। यही कारण है कि उसने भगवान् महावीर स्वामी विषयक. समाचारों से, प्रवृत्तियों से स्वयं को अवगत कराने हेतु एक प्रवृत्ति-वादुक की नियुक्ति की थी, उसे सहयोग करने हेतु अनेक कर्मचारी भी रखे थे। उनकी सहायता से वह प्रवृत्ति वादुक राजा तक समाचार . पहुँचाता। जब राजा को भगवान् महावीर स्वामी के अपने यहाँ पदार्पण के समाचार मिलते तो वे हर्ष विभोर हो उठते तथा भगवान् को वन्दन करने, उनका उपदेश सुनने जाते। इससे भगवान् महावीर स्वामी के प्रति उनकी असीम श्रद्धा का परिचय मिलता है।
बौद्ध-साहित्य में अजातशत्रु के नाम से उनका उल्लेख है। वहां उसे बौद्ध धर्म का अनुयायी कहा गया है।
"अजातशत्रु जैन था या बौद्ध था", इस पर अनेक विद्वानों ने ऊहा-पोह किया है। सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. राधाकुमुद मुखर्जी ने उसे भगवान् महावीर स्वामी का अनुयायी बताया है।
पाश्चात्य इतिहासकार डॉ. स्मिथ के अनुसार अजातशत्रु का जैन धर्मानुयायी होना अधिक आधारयुक्त है। ___ मुनि श्री नगराजजी डी. लिट् ने अपनी पुस्तक “आगम और त्रिपिटकःएक अनुशीलन" में लिखा है - ___अजातशत्रु कूणिक का बुद्ध से साक्षात्कार केवल एक बार होता है, पर महावीर स्वामी से उसका साक्षात्कार अनेक बार होता है।
सूक्ष्म दृष्टि से विचार करने पर ऐसा संभव लगता है कि कूणिक पहले कुछ समय बौद्ध धर्म का अनुयायी रहा किंतु बाद में उसने जैन धर्म स्वीकार कर लिया और उसी पर स्थिर रहा। क्योंकि भगवान् महावीर स्वामी के निर्वाण के पश्चात् भी उसका जैनधर्म से निकटतम संपर्क
हिन्दू सभ्यता, पृष्ठ - १६०।
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