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"गब्धगए समाणे जीवे अल्येगइए उववज्जेज्जा अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा। विया. १, उ. ७, सु. १९-२० ६. गर्भ वक्षमाणस्स जीवस्स सिय सदियं ससरीर उब्यत्ति परूवणं
प. जीवे णं भंते ! गब्धं वक्कमाणे किं सईदिए वक्कमइ, अणिदिए वक्कमइ ?
उ. गोयमा ! सिय सइदिए चक्कम सिय अनिदिए वक्कमइ ।
प. से केणट्ठेणं भंते! एवं बुच्चइ
"गब्भं वक्कमाणे जीवे सिय सइंदिए वक्कमइ, सिय अणिदिए वक्कमइ ?"
उ. गोयमा ! दव्विंदियाई पडुच्च अणिदिए वक्कमइ, भाविंदियाइं पडुच्च सइंदिए वक्कमइ ।
से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ
"गमं वक्कमाणे जीवे सिय सईदिए वक्कमइ, सिय अणिदिए वक्कमड़।"
प. जीवे णं भंते! गब्धं वक्तमाणे किं ससरीरी चक्रमड, असरीरी वक्कमइ ?
उ. गोयमा सिय ससरीरी वक्रम, सिय असरीरी वक्कमइ ।
प. से केणट्ठेणं भंते ! एवं बुच्चइ
"गमं चकमाणे जीवे सिय ससरीरी वक्कमड़, सिय असरीरी बक्कम ?"
उ. गोयमा ! ओरालिय- वेउब्बिय आहारयाई पडुच्च असरीरी वक्कमइ, तेयाकम्माई पडुच्च ससरीरी वक्कमइ ।
से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ
"गब्भं वक्कमाणे जीवे सिय ससरीरी वक्कमइ सिय असरीरी वक्कमड़।" - विया. स. १, उ. ७, सु. १०-११
७. गमं वक्कमाणे जीवरस बण्णा परूवणं
प. जीवे णं भंते । गब्र्भ वक्कंमाणे कतिवण्णं कतिगंध कतिरसं कतिफासं परिणामं परिणमइ ?
उ. गोयमा ! पंचवण्णं दुगंधं पंचरसं अट्ठफासं परिणामं परिणमइ । १ -विया. स. १२, उ. ५, सु. ३६
८. दगगब्भस्स पगारा समयं च परूवणं
चत्तारि दगगन्धा पण्णत्ता तं जहा
"
१. उस्सा, २. महिया, ३. सीता, ४. उसिणा ।
चत्तारि दगगब्भा पण्णत्ता, तं जहा
१. हेमगा,
२. अब्मसंथडा, ३. सीओसिणा,
१. विया. स. २०, उ. ३, सु. २
४. पंचरूविया।
द्रव्यानुयोग - ( ३ )
"कोई गर्भस्थ जीव देवलोक में उत्पन्न होता है और कोई जीव उत्पन्न नहीं होता है।"
६. गर्भ में उत्पन्न होते हुए जीव के सइन्द्रिय-सशरीर उत्पत्ति का
प्ररूपण
प्र. भंते! गर्भ में उत्पन्न होता हुआ जीव क्या इन्द्रियसहित उत्पन्न होता है या इन्द्रियरहित उत्पन्न होता है ?
उ. गौतम ! इन्द्रियसहित भी उत्पन्न होता है और इन्द्रियरहित भी उत्पन्न होता है।
प्र. भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
"गर्भ में उत्पन्न होता हुआ जीव इन्द्रियसहित भी उत्पन्न होता है और इन्द्रियरहित भी उत्पन्न होता है?"
उ. गौतम! द्रव्येन्द्रियों की अपेक्षा वह बिना इन्द्रियों का उत्पन्न होता है और भावेन्द्रियों की अपेक्षा इन्द्रियों सहित उत्पन्न होता है।
इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि
"गर्भ में उत्पन्न होता हुआ जीव इन्द्रियसहित भी उत्पन्न होता है और इन्द्रियरहित भी उत्पन्न होता है।"
प्र. भंते! गर्भ में उत्पन्न होता हुआ जीव क्या शरीर सहित उत्पन्न होता है या शरीर रहित उत्पन्न होता है ?
उ. गौतम ! वह शरीर सहित भी उत्पन्न होता है और शरीररहित भी उत्पन्न होता है।
प्र. भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
"गर्भ में उत्पन्न होता हुआ जीव शरीरसहित भी उत्पन्न होता है और शरीररहित भी उत्पन्न होता है ?"
उ. गौतम ! औदारिक, वैक्रिय और आहारक शरीरों की अपेक्षा शरीररहित उत्पन्न होता है तथा तेजस और कार्मण शरीरों की अपेक्षा शरीरसहित उत्पन्न होता है।
इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि
"गर्भ में उत्पन्न होता हुआ जीव शरीरसहित भी उत्पन्न होता है और शरीररहित भी उत्पन्न होता है।"
७. गर्भ में उत्पन्न होते हुए जीव के वर्णादि का प्ररूपण
प्र. भंते! गर्भ में उत्पन्न होता हुआ जीव कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श परिणाम से परिणमित होता है ?
उ. गौतम ! वह जीव पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस और आठ स्पर्श परिणाम से परिणमित होता है।
८. उदक गर्भ के प्रकार और समय का प्ररूपण
उदक गर्भ चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. ओस, २. मिहिका (कोहरा), ३. अतिशीत, ४. अतिउष्ण ।
उदक गर्भ चार प्रकार के कहे गए हैं,
१. हिमपात,
२. अभ्रसंस्तृत - आकाश का बादलों से ढंका रहना,
३. अतिशीतोष्ण,
४. पंचरूपिका ।
( १. गर्जन, २. विद्युत, ३ . जल, ४. वात तथा ५. बादलों के संयुक्त योग से।)
यथा