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१८९८
जोइसियाणं सव्वेसिं अपज्जत्तगाणं।
प. भंते ! जइ वेमाणियदेवकम्मासीविसे किं कप्पोवग
वेमाणियदेवकम्मासीविसे, कप्पातीयवेमाणिय देवकम्मा
सीविसे? उ. गोयमा ! कप्पोवगवेमाणियदेवकम्मासीविसे, नो . कप्पातीयवेमाणियदेवकम्मासीविसे। प. भंते ! जइ कप्पोवगवेमाणियदेवकम्मासीविसे किं सोहम्म
कप्पोवगवेमाणियदेव कम्मासीविसे जाव अच्चुयकप्पोवग वेमाणियदेव कम्मासीविसे?
उ. गोयमा ! सोहम्मकप्पोवगवेमाणियदेवकम्मासीविसे वि
जाव सहस्सारकप्पोवगवेमाणियदेव कम्मासीविसे वि।
नो आणयकप्पोवग वेमाणियदेव कम्मासीविसे जाव नो
अच्चुयकप्पोवगवेमाणियदेवकम्मासीविसे। प. भंते ! जइ सोहम्मकप्पोवग वेमाणियदेव कम्मासीविसे किं
पज्जत्तसोहम्मकप्पोवगवेमाणिय देव कम्मासीविसे, अपज्जत्तसोहम्म कप्पोवगवेमाणियदेवकम्मासीविसे?
उ. गोयमा ! नो पज्जत्तसोहम्मकप्पोवगवेमाणिय देव
कम्मासीविसे, अपज्जत्तसोहम्मकप्पोवगवेमाणिय देवकम्मासीविसे। एवं जाव नो पज्जत्तसहस्सारकप्पोवगवेमाणिय देव कम्मासीविसे, अपज्जत्तसहस्सार कप्पोवग वेमाणियदेव कम्मासीविसे।
-विया.स.८, उ.२,स.१-१९ ९. तिविहाइड्ढी भेयप्पभेय परूवणं
तिविहा इड्ढी पण्णत्ता,तं जहा१. देविड्ढी,
२. राइड्ढी, ३. गणिड्ढी। (१) देविड्ढी तिविहा पण्णत्ता,तं जहा१. विमाणिड्ढी, २. विगुव्वणिड्ढी, ३.परियारणिड्ढी। अहवा देविड्ढी तिविहा पण्णत्ता,तं जहा१. सचित्ता, २. अचित्ता, ३. मीसिया। (२) राइड्ढी तिविहा पण्णत्ता,तं जहा१.रण्णो अइयाणिड्ढी, २. रण्णो णिज्जाणिड्ढी, ३. रण्णो बलवाहणकोस कोट्ठागारिड्ढी। अहवा राइड्ढी तिविहा पण्णत्ता,तं जहा१. सचित्ता, २. अचित्ता, ३. मीसिया। (३) गणिड्ढी तिविहा पण्णत्ता,तं जहा१. णाणिड्ढी, २. दंसणिड्ढी, ३. चरित्तड्डी। अहवा गणिड्ढी तिविहा पण्णत्ता,तं जहा१. सचित्ता, २. अचित्ता, ३. मीसिया।
-ठाणं.अ.३, उ.४, सु.२१४
द्रव्यानुयोग-(३) इसी प्रकार सभी ज्योतिष्कदेव भी अपर्याप्तावस्था में कर्म
आशीविष होते हैं। प्र. भंते ! यदि वैमानिकदेव कर्म आशीविष हैं तो क्या
कल्पोपपन्नक वैमानिक देव कर्म आशीविष है या कल्पातीत
वैमानिक देव कर्म आशीविष है? उ. गौतम ! कल्पोपपन्नक वैमानिक देव कर्म आशीविष होता है
किन्तु कल्पातीत वैमानिक देव कर्म आशीविष नहीं होता है। प्र. भंते ! यदि कल्पोपपन्नक वैमानिक देव कर्म आशीविष होता
है तो क्या सौधर्म कल्पोपपन्नक वैमानिक देव कर्म आशीविष होता है यावत् अच्युत कल्पोपपन्नक वैमानिक देव कर्म
आशीविष होता है। उ. गौतम ! सौधर्म कल्पोपपन्नक वैमानिक देव भी कर्म आशीविष
होता है यावत् सहस्रार कल्पोपपन्नक वैमानिक देव भी कर्म आशीविष होता है। परन्तु आनत यावत् अच्युत कल्पोपपन्नक वैमानिक देव कर्म
आशीविष नहीं होता है। प्र. भंते ! यदि सौधर्मकल्पोपपन्नक वैमानिक देव कर्म आशीविष
है तो क्या पर्याप्त सौधर्मकल्पोपपत्रक वैमानिक देव कर्म आशीविष होता है या अपर्याप्त सौधर्मकल्पोपपन्नक वैमानिक
देव कर्म आशीविष होता है? उ. गौतम ! पर्याप्त सौधर्म कल्पोपपन्नक वैमानिक देव कर्म
आशीविष नहीं होता है, परन्तु अपर्याप्त सौधर्म कल्पोपपन्नक वैमानिक देव कर्म आशीविष होता है। इसी प्रकार यावत् पर्याप्त सहनार कल्पोपपन्नक वैमानिक देव कर्म आशीविष नहीं होता है किन्तु अपर्याप्त सहसार
कल्पोपपत्रक वैमानिक देव कर्म आशीविष होता है। ९. तीन प्रकार की ऋद्धि के भेद-प्रभेदों का प्ररूपण
ऋद्धि तीन प्रकार की कही गई है, यथा१. देवताओं की ऋद्धि, २. राजाओं की ऋद्धि, ३. आचार्यों की ऋद्धि। (१) देवताओं की ऋद्धि तीन प्रकार की कही गई है, यथा१. विमान ऋद्धि, २. वैक्रिय ऋद्धि, ३. परिचारणा ऋद्धि। अथवा देवताओं की ऋद्धि तीन प्रकार की कही गई है, यथा१. सचित्त, २. अचित्त, ३. मिश्र। (२) राजाओं की ऋद्धि तीन प्रकार की कही गई है, यथा- . १. अतियान ऋद्धि,
२. निर्याण ऋद्धि, ३. सेना, वाहन, कोष और कोष्ठागार की ऋद्धि, अथवा राजाओं की ऋद्धि तीन प्रकार की कही गई है, यथा१. सचित्त, २. अचित्त, ३. मिश्र। (३) गणी की ऋद्धि तीन प्रकार की कही गई है, यथा१. ज्ञान की ऋद्धि २. दर्शन की ऋद्धि, ३. चारित्र की ऋद्धि। अथवा गणी की ऋद्धि तीन प्रकार की कही गई है, यथा१. सचित्त, २. अचित्त, ३. मिश्र।