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६५४ १२८ (ख) तारा रूपों के चलित होने के हेतु ऊर्ध्वलोक
५ (ख) ऊर्ध्वलोक क्षेत्रानुपूर्वी का प्ररूपण ६ (ख) वैमानिक विमानों की संख्यादि का
प्ररूपण
७ (ख) कल्पोपपत्रक वैमानिक देवों के इन्द्र ८ (ख) सौधर्मकल्प की सुधर्मासभा में जिन अस्थियों की अवस्थिति
२८ (ख) सौधर्म ईशानादि कल्पों के नीचे गृहादिकों का अभाव
'बलाहकादिकों के भाव का प्ररूपण ७४(ख) स्वस्तिक आदि वैमानिक देव विमानों के आयाम - विष्कंभ और विशालता का प्ररूपण
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काललोक
१ (ख) कालानुपूर्वी के भेद-प्रभेद
१ (ग) नैगम-व्यवहारनयसम्मत
अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी
१ (घ) संग्रहनयसम्मत अनौपनिधिकी कालापूर्वी
१ (ङ) औपनिधिकी कालानुपूर्वी
६ (ख) चैत्र और आसोज मास में पौरुषी
छाया का प्रमाण
६ (ग) कार्तिक वदी सप्तमी को पीरुषी
छाया का प्रमाण
पृ. १७
लोगे तिष्णि मह महालया
सूत्र ३५ (ख)
पृ. ३४
लोग भेयाणं अप्पबहु
लोक
तओ महइ महालया पण्णत्ता, तं जहा
१. जंबुद्दीवए मंदरे मंदरेसु,
२. सयंभूरमणे समुद्दे समुद्देसु
३. बंभलोए कप्पे कप्पेसु ।
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१९५३
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१९६०
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- ठाणं अ. ३, सु. २०५
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सूत्र ६९ (ख)
प. एयस्स णं भंते! अहेलोगरस तिरिबलोगरस उड़ढलोगस्स य कयरे-कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा ?
उ. गोयमा ! १. सव्वत्थोवे तिरियलोए,
६९९
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७०७
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७१८
७२२
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७६०
७६०
१२ (ख) कर्म-अकर्मभूमियों में अवसर्पिणी
उत्सर्पिणीकाल के भाव अभाव का प्ररूपण १९६० १२ (ग) अवसर्पिणी उत्सर्पिणी के सुषमा सुषमा
कालमान का प्ररूपण
१२ (घ) भरत क्षेत्र में अवसर्पिणीकाल के छह आरों के आकार भाव स्वरूप का प्ररूपण १९६० १२ (ङ) भरत क्षेत्र में उत्सर्पिणीकाल के छह
आरों के आकार भाव स्वरूप का प्ररूपण १९६८
१९७१
२० (ख) क्षेत्रपल्योपम का स्वरूप
२० (ग) उदाहरण सहित व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम के स्वरूप का प्ररूपण
द्रव्यानुयोग - (३)
२० (घ) उदाहरण सहित सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम के
स्वरूप का प्ररूपण
अवशिष्ट पाठों का विषयानुक्रम से संकलन
(अंकित पृष्ठांक और सूत्रों के अनुसार पाठक अवलोकन करें)
४० (२) सूर्य के आवृत्तिकरणकाल का प्ररूपण ४७ (ख) उनतीस रात-दिन वाले मासों के नाम ४७ (ग) युग में आदि संवत्सर कौन और अयन आदि की संख्या का प्ररूपण
५६ (ख) रजनीकाल की अभिवृद्धि तथ
प्ररूपण
अलोक ९ (ख) ईषयान्भारा पृथ्वी से अलोक के अंतर का प्ररूपण माप निरूपण
९ (ख) ९ (ग)
गणनानुपूर्वी का प्ररूपण विस्तार से संख्यातादि गणना संख्या का प्ररूपण
लोक में तीन महान (विशाल) है
तीन (अपनी कोटि में सबसे बड़े कहे गए है, यथा
१. मंदर पर्वतों में जम्बूद्वीप का मंदर पर्वत,
२. समुद्रों में स्वयंभूरमण समुद्र,
३. कल्पों में ब्रह्मलोक कल्प ।
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१९७३
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लोक के भेदों का अल्पबहुत्व
प्र. भंते! अधोलोक, तिर्थकुलोक और ऊर्ध्वलोक में कौन किससे अल्प पावत् विशेषाधिक है?
उ. गौतम ! १. सबसे अल्प तिर्यक्लोक है।