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२०२०
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तेणं भरहे वासे गामागर-नगर- खेडकब्बड-मडंब - दोणमुहपट्टणासमयं जणवयं चउपयगवेलए सहपरे पक्खिसंये गामारण्णप्पयारणिरए तसे अ पाणे, बहुप्पयारे रूक्खगुच्छ - गुम्म-लय- वल्लि पवालंकुरमादीए तणवणस्सइकाइए ओसीओ अ विद्धसेहिति पब्चयगिरिडोंगरूत्यलभट्टिमादीए अवेअगिरिवजे विरावेहिति सलिल-बिल-विसमगतणिन्पुण्याणि अ गंगासिंधुवज्जाई समीकरेहिति ।
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प. तीसे णं भंते ! समाए भरहस्त वासस्स भूमीए केरिसए आयारभाव पडोयारे भविस्सइ ?
उ. गोयमा ! भूमी भविस्सइ इंगालभूआ, मुम्मुरभूआ, छारिअभूआ तत्तकवेल्लु अभूआ तत्तसमजो भूआ धूलिबहुला, रेणुबहुला, पंकबहुला, पणवबहुला, चलणिबहुला,
उ. गोयमा ! मणुआ भविस्संति दुरूवा, दुव्वण्णा, दुगंधा, दुरसा, दुफासा अणिड्डा अकंता, अधिआ असुभा, अमपुत्रा,
अमणामा ।
हीणारा, दीणस्सरा, अणिस्सरा, अकेतस्सरा, अप्पि अस्सरा, अमणामस्सरा, अमणुष्णसरा अणादेज्जवयणपच्चायाता, णिल्लज्जा, कूड-कवड- कलहबंध-र-निरया मज्जायातिकमपहाणा, अकजगिच्या, गुरूणि ओगविणयरहिआ य विकलरूवा, परूढ णह केसगंसु.रोपण काला खरफरूस समावण्णा, फुङ्गसिरा,
यता उपलब्जी हुन्छ सावि एकविशी धावतस्मानि
यः विद्यालयात पालव ५२४ लोर, मंसु-रोमा काला," रुसमा फुडासम् कविलपलिअकेसा, बहुण्हारूणिसंपिणद्धदुद्दंसणिज्जरूवा, संकुडिअ वलीतरंग परिवेढिअंगमंगा, जरापरिण यव्वथेरगणरा, पविरलपरिसडिअदंतसेढी, उब्भडघडमुहा, विसमणयणवंकणासा, वंकवलीविगयभेसणुमुहा, दुद्द
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द्रव्यानुयोग - (३)
जिससे भरत क्षेत्र के ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्बट, मडम्ब, द्रोणमुख, पट्टन आश्रम निवासी मनुष्यों, गाय आदि चौपाये प्राणियों खेचर पक्षियों, गाँवों और वनों में रहने वाले द्वीन्द्रियादि सों और प्राणियों तथा अनेक प्रकार के वृक्षों, नवमालिका आदि गुल्मों अशोकलता आदि लताओं, वालुक्य आदि गुच्छों, बेलों, पत्तों, अंकुर इत्यादि बादर वनस्पतिकायिक औषधियों का ये विध्वंस कर देंगे, वैताढ्य आदि शाश्वत पर्वतों के अतिरिक्त अन्य पर्वतों, वैभार आदि क्रीड़ापर्वतों, चित्रकूट आदि डूंगरों, पथरीले टीलों, धूलवर्जित भूमि पठारों को तहस-नहस कर डालेंगे। गंगा और सिन्धु महानदी के अतिरिक्त शेष जल के स्रोतों, झरनों, विषमगर्तउबड़-खाबड़ गड्ढों, निम्न उन्नत नीचे ऊँचे जलीय स्थानों को समान कर देंगे अर्थात् उनका नामोनिशान मिटा देंगे।
प्र. भंते! उस काल में भरत क्षेत्र की भूमि का आकार स्वरूप कैसा होगा ?
उ. गौतम ! उस समय भूमि अंगारों जैसी, अग्निकणों जैसी, गर्म राख जैसी, तपे हुए कवेलु जैसी, सर्वत्र एक जैसी तप्त ज्वालामय होगी। उसमें धूलि रेणु वालुका पंक कीचड़ पतला कीट -चलते समय जिसमें पैर डूब जाए ऐसे प्रचुर कीचड़ की ७. ततवा होउ । (प्रश्वी पर चलने-फिरने वलि प्राणिया का उर्स अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अशुभ, अमनोज्ञ तथा अमनोहर होगा।
उनका स्वर हीन, दीन, अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अमनोगम्य और अमनोज्ञ होगा। उनका वचन अनादेय अशोभन होगा। वे निर्लज्ज होंगे, कूट, कपट, कलह, बन्ध तथा वैर भाव में निरत होंगे। मर्यादाएँ लाँघने में तत्पर रहेंगे। अकार्य करने में सदा उद्यत होंगे, गुरुजनों की आज्ञा पालन और विनय से रहित होंगे, उनका विकराल रूप होगा। बढ़े हुए नख, केश तथा दाढ़ी मूँछ युक्त काले, कठोर स्पर्शयुक्त, गहरी रेखाओं या सलवटों होगा या कई है त मस्तक युक्त धुएँ से वर्ण माले तथा सफेद लॉन जात होंगे गरुजनों की आज्ञा पालन और विनय से हिद होंगे, उनका विशल रूप होगा। बढ़े हुए नख, करी तथा
पारव्याप्त
कठार स्वरा
के कारण फटे हुए से मस्तक युक्त धुए से वर्ण वाले तथा 'सफेद' केशों से युक्त, अत्यधिक नाड़ियों से परिबद्ध होने से दुर्दर्शनीय रूप से युक्त, देह में पास-पास पड़ी झुर्रियों की तरंगों से परिव्याप्त अंगयुक्त, जरा जर्जर बूढों से सदृश प्रविरल दूर-दूर प्ररूद्ध तथा परिशारित परिपातितदन्त श्रेणीयुक्त, घड़े के विकृत न तक-रेदी नासिका खरोंची हुई देहयुक्त, ऊँट आदि की चाल के समान अशुभ वालयुक्त, विषमसन्धिबन्धनयुक्त अययावस्थित अस्थियुक्त,
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चालयुक्त, विषमसन्धि बन्धनयुक्त, अयथावस्थित अस्थियुक्त,