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२०२८
उ. गोयमा ! पंचसवच्छरिए णं जुगे दस अयणा, तीसं उऊ, सट्ठी मासा, एगे वीसुतरे पक्खसए, अङ्गारसतीसा अहोरत्तसया, चउप्पण्णं मुहुत्तसहस्सा णवसया पण्णत्ता ।
- जंबू. वक्ख. ७, सु. १८७
पृ: ७२८ रयणिकालस्स अभिवृष्टि तिहि परूवणं
सूत्र ५६ (ख)
सावण-सुद्ध-सत्तमीए में सूरिए सत्तावीसंगुलिय पोरिसिच्छायं णिव्यतइत्ता णं दिवसखेत्तं निवड्डेमाणे रयणिखेत्त अभिनिवड्देमाणे चारं चरइ ।
-सम. सम. २७, सु. ६
अलोक
पृ. ७३९
ईसिपमाराए पुढबीए अलोगस्स अंतरं पत्रवर्ण
सूत्र ९ (ख)
प. ईसिपव्भाराए णं भंते! पुढबीए अलोगस्स य केवइए अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ?
उ. गोयमा ! देसूणं जोयणं अवाहा अंतरे पण्णत्ते।
पृ. ७६० गणणाणुपुव्वी परूवणंसूत्र ९ (ख)
माप निरूपण
- विया. स. १४, उ. ८, सु. १७
प से किं तं गणणाणुपुव्वी ?
उ. गणणाणुपुव्वी - तिविहा पण्णत्ता, तं जहा
२. पच्छाणुपुवी,
१. पुच्चाणुपुब्बी,
३. अणाणुपुवी ।
प. १. से किं तं पुव्वाणुपुव्वी ?
उ. पुब्वागुपुच्चीएको दस सर्व सहस्स दससहरसाई सरसहस्स दससयसहस्साई कोडी दस कोडीओ कोडीसयं दसकोडिसयाई ।
सेतं पुव्वाणुपुवी ।
प. २. से किं तं पच्छाणुपुव्वी ?
उ. पच्छाणुपुवी - दसकोडिसयाई जाव एक्को ।
सेतं पच्छावी ।
प. ३. से किं तं अणाणुपुव्वी ?
उ. अणानुपूब्बी- एयाए चेव एगादियाए दसकोडिसयगच्छगयाए सेखीए अन्नमन्नमासो दुरुयूगो ।
सेतं अणाणुपुच्ची।
एगुत्तरियाए
द्रव्यानुयोग - (३)
उ. गौतम ! पंच संवत्सरिक युग में अयन दस, ऋतुएँ तीस, मास साठ, पक्ष एक सौ बीस अहोरात्र अठारह सौ तीस तथा मुहूर्त चौपन हजार नौ सौ कहे गये हैं।
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रजनीकाल की अभिवृद्धि तिथि का प्ररूपण
सूर्य श्रावण शुक्ला सप्तमी के दिन सत्ताईस अंगुल की पौरुषी छाया करके दिवस क्षेत्र की ओर लौटता हुआ और रजनी क्षेत्र की ओर बढ़ता हुआ संचरण करता है।
ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी से अलोक के अंतर का प्ररूपण
प्र. भंते ! ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी और अलोक का कितना अबाधा अन्तर कहा गया है ?
उ. गौतम ! ( इन दोनों का) अबाधा अन्तर देशोन योजन (एक योजन से कुछ कम) का कहा गया है।
गणनानुपूर्वी का प्ररूपण
प्र. गणनानुपूर्वी क्या है?
उ. गणनानुपूर्वी तीन प्रकार की कही गई है, यथा
१. पूर्वानुपूर्वी, २. पश्चानुपूर्वी, ३. अनानुपूर्वी ।
प्र. १ पूर्वानुपूर्वी क्या है ?
उ. पूर्वानुपूर्वी का स्वरूप इस प्रकार है-एक, दस, सौ, सहस्र, दस सहस्र, शतसहस्र, दस शतसहस्र, कोटि, दस कोटि, कोटिशत, दस कोटिशत, इस क्रम से गिनती करना ।
यह पूर्वानुपूर्वी है।
प्र. २. पश्चानुपूर्वी क्या है?
उ. पश्चानुपूर्वी का स्वरूप इस प्रकार है- विपरीत क्रम से दस अरब से लेकर एक पर्यन्त की गिनती करना ।
यह पश्चानुपूर्वी है।
प्र. ३. अनानुपूर्वी क्या है?
उ. अनानुपूर्वी का स्वरूप इस प्रकार है - इन्हीं को एक से लेकर दस अरब पर्यन्त की एक-एक वृद्धि वाली श्रेणी में स्थापित संख्या का परस्पर गुणा करने पर जो संख्या हो, उनमें से आदि और अन्त के दो रूपों को कम करने पर शेष रही संख्या अनानुपूर्वी है। यह अनानुपूर्वी है।