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२०३०
से जहानामए पल्ले सिया, एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसयसहस्साई सोलस य सहस्साई दोण्णि य सत्तावीसे जोयणसए, तिण्णि य कोसे अट्ठावीसं च धणुसयं तेरस य अंगुलाई अद्धंगुलं च किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते। से णं पल्ले सिद्धत्थयाणं भरिए। तओ णं तेहिं सिद्धत्थएहिं दीव-समुद्दाणं उद्धारे घेप्पइ।
__ द्रव्यानुयोग-(३) ] जैसे कि एक लाख योजन लम्बा-चौड़ा और तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन, तीन कोस, एक सौ अट्ठाईस धनुष एवं साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक परिधि वाला कोई एक पल्य कहा गया है।
एगे दीवे एगे समुद्दे एवं पक्खिप्पमाणेहिं जावइया णं दीव-समुद्दा तेहिं सिद्धत्थएहिं अप्फुण्णा एस णं एवइए खेत्ते पल्ले आइटे। से णं पल्ले सिद्धत्थयाणं भरिए। तओ णं तेहिं सिद्धत्थएहिं दीव-समुद्दाणं उद्धारे घेप्पइ।
एगे दीवे एगे समुद्दे एवं पक्खिप्पमाणेहिं जावइया णं दीव-समुद्दा तेहिं सिद्धत्थएहिं अप्फुण्णा एस णं एवइए खेत्ते पल्ले पढमा सलागा,
एवइयाणं सलागाणं असंलप्पा लोगा भरिया तहा वि उक्कोसयं संखेज्जयं ण पावइ।
प. जहा को दिर्सेतो? उ. से जहानामए मंचे सिया आमलगाणं भरिए, तत्थ णं एगे
आमलए पक्वित्ते से माए, अण्णे वि पक्खित्ते से वि माए, अन्ने विपक्खित्ते से वि माए एवं पक्खिप्पमाणे पक्खिप्पमाणे होही से आमलए जम्मि पक्खित्ते से मंचए भरिज्जिहिइ जे वि तत्थ आमलए न माहिइ।
इस पल्य को सरसों के दानों से भर दिया जाए। उन सरसों के दानों को गिनकर द्वीप और समुद्रों का प्रमाण निकाला जाता है। अर्थात् एक सर्षप को द्वीप में और एक को समुद्र में प्रक्षेप करते-करते उन सर्षप दानों से जितने द्वीप-समुद्र स्पृष्ट हो जाए उतने क्षेत्र का एक अन्य अनवस्थित पल्य कल्पित किया जाए। उस पल्य को सरसों के दानों से भर दिया जाए। तदनन्तर उन सरसों के दानों से द्वीप-समुद्रों की संख्या का प्रमाण निकाला जाता है। अर्थात् अनुक्रम से एक द्वीप में और एक समुद्र में इस तरह प्रक्षेप करते-करते जितने द्वीप समुद्र उन सरसों के दानों से स्पृष्ट हो जाएँ, उनके समाप्त होने पर एक दाना शलाका पल्य में डाल दिया जाए। इस प्रकार के शलाका रूप पल्य में भरे हुए सरसों के दानों से अकथनीय द्वीप-समुद्र भरे तब भी उत्कृष्ट संख्या का स्थान
प्राप्त नहीं होता है। प्र. इसका क्या दृष्टान्त है? उ. जैसे कोई एक मंच हो और वह आँवलों से पूरित हो, तदनन्तर
एक आँवला डाला तो वह भी समा गया, दूसरा डाला तो वह भी समा गया, तीसरा डाला तो वह भी समा गया, इस प्रकार प्रक्षेप करते-करते अन्त में एक आँवला ऐसा होता है कि जिसके प्रक्षेप में मंच परिपूर्ण भर जाता है। उसके बाद आँवला डाला जाए तो वह नहीं समाता है। इसी प्रकार उत्कृष्ट संख्यात संख्या में एक का प्रक्षेप करने से जघन्य परीताअसंख्यात होता है। तदनन्तर जहाँ तक उत्कृष्ट परीताअसंख्यात स्थान प्राप्त नहीं
होता है वहाँ तक अजघन्य-अनुत्कृष्ट के स्थान हैं। प्र. उत्कृष्ट परीताअसंख्यात का कितना प्रमाण है ? उ. जघन्य परीताअसंख्यात राशि को जघन्य परीताअसंख्यात
राशि से परस्पर अभ्यास गुणित करके उसमें एक कम करने पर उत्कृष्ट परीताअसंख्यात का प्रमाण होता है। अथवा एक न्यून जघन्य युक्ताअसंख्यात उत्कृष्ट
परीताअसंख्यात का प्रमाण है। प्र. जघन्य युक्ताअसंख्यात का कितना प्रमाण है ? उ. जघन्य परीताअसंख्यात राशि का जघन्य परीताअसंख्यात
राशि से अन्योन्य अभ्यास करने पर प्राप्त परिपूर्ण संख्या जघन्य युक्ताअसंख्यात का प्रमाण होता है। अथवा उत्कृष्ट परीताअसंख्यात के प्रमाण में एक का प्रक्षेप करने से जघन्य युक्ताअसंख्यात होता है।
एवामेव उक्कोसए संखेज्जए रूवं पक्वित्तं जहण्णयं परित्तासंखेज्जयं भवइ। तेण परं अजहण्णमणुक्कोसयाई ठाणाई जाव उक्कोसयं
परित्तासंखेज्जयं ण पावइ। प. उक्कोसयं परित्तासंखेज्जयं केत्तियं होइ? उ. जहण्णयं परित्तासंखेज्जयं जहण्णयपरित्ता संखेज्जयमेत्ताणं
रासीणं अण्णमण्णब्भासो रूवूणो उक्कोसयं परित्तासंखेज्जयं होइ। अहवा जहन्नयं जुत्तासंखेज्जयं रूवूणं उक्कोसयं परित्तामंखेज्जयं होइ। प. जहण्णयं जुत्तासंखेज्जयं केत्तियं होइ ? उ. जहण्णयं परित्तासंखेज्जयं जहण्णयपरित्तासंखेज्जयमेत्ताणं
रासीणं अण्णमण्णब्भासो पडिपुण्णो जहण्णयं जुत्तासंखेज्जयं हवइ। अहवा उक्कोसए परित्तासंखेज्जए रूवं पक्वित्तं जहण्णयं जुत्तासंखेज्जयं होइ।