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परिशिष्ट : ३ चरणानुयोग
एगंतसो मे पावे कम्मे कज्जइ। ५. ममं च णं सम्म सहमाणस्स खममाणस्स तितिक्खमाणस्स अहियासेमाणस्स किं मण्णे कज्जइ? एगंतसो मे णिज्जरा कज्जइ। इच्चेएहिं पंचेंहिं ठाणेहिं छउमत्थे उदिण्णे परिसहोवसग्गे सम्म सहेज्जा जाव अहियासेज्जा। पंचहि ठाणेहिं केवली उदिण्णे परिसहोवसग्गे सम्मं सहेज्जा खमेज्जा तितिक्वेज्जा अहियासेज्जा,तं जहा१.खित्तचित्ते खलु अयं पुरिसे तेण मे एस पुरिसे अक्कोसइ वा तहेव जाव अवहरइवा। २. दित्तचित्ते खलु अयं पुरिसे तेण मे एस पुरिसे अक्कोसइ वा जाव अवहरइवा। ३. जक्खाइटे खलु अयं पुरिसे तेण मे एस पुरिसे अक्कोसइ वा जाव अवहरइ वा। ४. ममं च णं तब्भववेयणिज्जे कम्मे उदिण्णे भवइ तेण मे एस पुरिसे अक्कोसइ वा जाव अवहरइवा। ५. ममं च णं सम्म सहमाणं खममाणं तितिक्वेमाणं अहियासेमाणं पासित्ता वहवे अण्णे छउमत्था समणा णिग्गंथा उदिण्णे परीसहोवसग्गे एवं सम्मं सहिस्संति खमिस्संति तितिक्खस्संति अहियासिम्सति।
२०३७ मेरे एकान्त पापकर्म का संचय होगा। ५. यदि मैं सम्यक् प्रकार से सहन करूँगा, क्षान्ति रलूँगा, तितिक्षा रलूँगा और उनसे प्रभावित नहीं होऊँगा तो मुझे क्या होगा? निश्चित रूप से मेरे कर्मों की निर्जरा होगी। इन पाँच स्थानों से छद्मस्थ उत्पन्न परीषहों तथा उपसर्गों को सम्यक् प्रकार से सहता है यावत् प्रभावित नहीं होता है। पाँच स्थानों से केवली उत्पन्न परीषहों और उपसर्गों को सम्यक् प्रकार से सहता है यावत् प्रभावित नहीं होता है, यथा१. यह पुरुष विक्षिप्तचित्त वाला है, इसलिए यह मुझ पर आक्रोश करता है उसी प्रकार यावत् अपहरण करता है। २. यह पुरुष उन्मत्त है, इसलिए यह मुझ पर आक्रोश करता है यावत् अपहरण करता है। ३. यह पुरुष यक्षाविष्ट है, इसलिए यह मुझ पर आक्रोश करता है यावत् अपहरण करता है। ४. इस भव में वेदनीय कर्म का उदय हो गया है, इसलिए यह पुरुष मुझ पर आक्रोश करता है यावत् अपहरण करता है। ५. मुझे सम्यक् प्रकार से परीषहों को सहन करते, क्षान्ति रखते, तितिक्षा रखते और प्रभावित नहीं होते हुए देखकर अन्य छद्मस्थ श्रमण-निर्ग्रन्थ परीषहों और उपसर्गों के उदित होने पर उन्हें सम्यक् प्रकार से सहन करेंगे, क्षान्ति रखेंगे, तितिक्षा रखेंगे और उनसे प्रभावित नहीं होंगे। इन पाँच स्थानों से केवली उत्पन्न परीषहों तथा उपसर्गों को सम्यक् प्रकार से सहता है यावत् उनसे प्रभावित नहीं होता है।
केवलिप्रज्ञप्त धर्मादि के लाभ हेतुओं का प्ररूपण
इच्चेएहिं पंचेंहि ठाणेहिं केवली उदिण्णे परीसहोवसग्गे सम्म सहेज्जा, खमेज्जा, तितिक्खेज्जा अहियासेज्जा।
-ठाणं अ.५, उ.१,सु.४०९ भाग २, पृ. ४११ केवली पण्णत्त धम्माइ लाभ हेउ परूवणंसूत्र ८२४
दोहिं ठाणेहिं आया केवली पण्णत्त धम्म लभेज्ज सवणयाए, तं जहा१.सोच्च चेव, २. अभिसमेच्च चेव। दोहिं टाणेहिं आया केवलं बोहिं बुज्झेज्जा,तं जहा१. सोच्च चेव, २. अभिसमेच्च चेव। दोहि ठाणेहिं आया केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइज्जा,तं जहा१.सोच्च चेव, २. अभिसमेच्च चेव। दोहि ठाणेहिं आया केवलं बंभचेरवासमावसेज्जा, तं जहा
इन दो स्थानों से आत्मा विशुद्ध केवलिप्रज्ञप्त धर्म को सुन पाता है, यथा१. सुनने से
२.जानने से। इन दो स्थानों से आत्मा विशुद्ध बोधि का अनुभव करता है, यथा१. सुनने से, २.जानने से। इन दो स्थानों से आत्मा मुंडित हो गृह त्याग कर विशुद्ध अणगारता में प्रव्रजित होता है, यथा१. सुनने से, २. जानने से। इन दो स्थानों से आत्मा विशुद्ध ब्रह्मचर्यवास को प्राप्त करता है, यथा१. सुनने से, २.जानने से। इन दो स्थानों से आत्मा विशुद्ध संयम को अंगीकार करता है, यथा१. सुनने से, २.जानने से। इन दो स्थानों से आत्मा विशुद्ध संवर के द्वारा संवृत होता है, यथा१.सुनने से,
२.जानने से।
१.सोच्च चेव, २. अभिसमेच्च चेव। दोहिं टाणेहिं आया केवलं संजमेणं संजमेज्जा, तं जहा१. सोच्च चेव, २. अभिसमेच्च चेव। दोहि ठाणेहिं आया केवलं संवरेणं संवरेज्जा, तं जहा१.सोच्च चेव, २. अभिसमेच्च चेव।
-ठाणं अ.२, उ.१,सु.५५