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परिशिष्ट ३ चरणानुयोग
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विगिचमाणीए वा विसोहेमाणीए या अन्नवरे पसुजाइए वा पक्खिजाइए वा अन्नयरं इंदियजायं परामुसेज्जा, तं च निग्गंथी साइज्जेज्जा हत्थकम्म पडिसेवणपत्ता आवज्जइ मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्धाइयं ।
निग्गंधीए ये राओ वा विपाले या उच्चार वा पासवर्ण वा विगिचमाणीए या अनबरे पसुजाइए वा पविखजाइए वा अन्नपरंसि सोयसि ओगाहेज्जा तं च निग्गंधी साइज्जेज्जा मेहुणपडिसेवणपत्ता आवज चाउम्मासियं परिहाराणं अणुग्धाइये।
- कप्प. उ. ५, सु. १३-१४
भाग १, पृ. ५९२ मुखाभित्तिरायाणं जत्तागयाणं आहार गणस्स पायच्छिलं
सूत्र ९८७ (क)
जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुद्दियाणं मुद्धाभिसित्ताणं अण्णयरं उववूहणीयं समीहियं पेहाए तीसे परिसाए अणुट्टियाए अभिण्णाए अवोच्छिण्णाए जो तमण्णं पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ । (तं सेचमाणे आवज चाउम्मासियं परिहारद्वाणं अगुन्धाइयं) - नि. उ. ९, सु. ११
भाग १, पृ. ६६२ परवत्थेणोच्छिण्णाणं तणपीढगाइण अहिट्टिज्जस्स पायच्छित्तंसू. १४३ (ख)
जे भिक्खू १. तणपीडन वा २ पलालपीगं वा ३. छगणपीढगं वा ४. वेत्तपीढगं वा, ५. कट्ठपीढगं वा परवत्थेणोच्छण्णं अहिट्ठेइ, अहितं वा साइज्जइ ।
(तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घाइयं)
भाग २, पृ. ५७
सामायारी आणुपुब्बी
सूत्र १४९
प. से किं तं सामायारी आणुपुब्बी ?
उ. सामायारी आणुपुव्वी-तिविहा पण्णत्ता, तं जहा
१. पुव्वाणुपुवी, २. पच्छाणुपुव्वी, ३. अणाणुपुवी ।
प. १. से किं तं पुव्वाणुपुव्वी ?
- नि. उ. १२, सु. ६
व. पुव्याणुपुब्बी-१ इच्छा, २. मिच्छा ३. तहजारो, ४. आवसिया, ५. य निसीहिया, ६. आपुच्छणा, ७. य पडिपुच्छा, ८. छंदणा य, ९. निमंतणा, १०. उवसंपया य काले सामायारी भवे दसविहा ॥१६ ॥
सेतं पुव्वाणुपु ।
प. २. से किं तं पच्छाणुपुव्वी ?
उ. पच्छाणुपुव्वी - उवसंपया जाव इच्छा।
सेतं पच्छाणुपुवी ।
प. ३. से किं तं अणाणुपुथ्वी ?
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करते या शुद्धि करते समय किसी पशु-पक्षी से उसकी किसी इन्द्रिय का स्पर्श हो जाए और उस स्पर्श का वह मैथुनभाव से अनुमोदन करे तो हस्तकर्म दोष लगता है अतः वह अनुद्घातिक मासिक प्रायश्चित्त की पात्र होती है।
यदि किसी निर्ग्रन्थी के रात्रि में या विकाल में मल-मूत्र का परित्याग करते या शुद्धि करते समय कोई पशु-पक्षी निर्ग्रन्थी के किसी श्रोत का अवगाहन करे और उसका वह मैथुनभाव से अनुमोदन करे तो उसे मैथुन सेवन का दोष लगता है। अतः वह अनुद्घातिक चातुर्मासिक प्रायश्चित्त की पात्र होती है।
यात्रागत राजा का आहार ग्रहण करने का प्रायश्चित्त
जो भिक्षु शुद्धवंशज मूर्द्धाभिषिक्त क्षत्रिय राजा को कहीं पर भोजन दिया जा रहा हो तो उसे देखकर उस राज-परिषद् के उठने से पूर्व तथा सबके चले जाने से पूर्व वहाँ से आहार ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त आता है)
पर वस्त्र से आच्छादित तृणपीठकादिकों पर बैठने का प्रायश्चित
जो भिक्षु गृहस्थ के वस्त्र से ढके हुए, १. घास के पीढ़े पर, २. पराल के पीढ़े पर, ३ . गोबर के पीढ़े पर, ४. बेंत के पीढ़े पर, ५. काष्ठ केपीढ़े पर बैठता है या बैठने वाले का अनुमोदन करता है। (उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।
समाचारी-आनुपूर्वी
प्र. समाचारी आनुपूर्वी क्या है ?
उ. समाचारी आनुपूर्वी तीन प्रकार की कही गई है, यथा
प्र.
उ.
१. पूर्वानुपूर्वी, २. पश्चानुपूर्वी, ३. अनानुपूर्वी ।
१. पूर्वानुपूर्वी क्या है ?
पूर्वानुपूर्वी इस प्रकार है, यथा-१ इच्छाकार २. मिथ्याकार, ३. तथाकार, ४. आवश्यकी, ५. नैषेधिकी, ६. आप्रच्छना,
७. प्रतिप्रच्छना, ८. छंदना, ९ निमंत्रणा, १० उपसंपद् । यह
दस प्रकार की समाचारी है।
यह पूर्वानुपूर्वी है।
२. पश्चानुपूर्वी क्या है ?
प्र.
उ. उपसंपद् से इच्छाकार पर्यन्त व्युत्क्रम से कथन करने को पश्चानुपूर्वी कहते हैं।
यह पश्चानुपूर्वी है।
प्र. २. अनानुपूर्वी क्या है?