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२०३२
अभवसिद्धिया वि तेत्तिया चेव। तेण पर अजहण्णमणुक्कोसयाई ठाणाई जाव उक्कोसयं
जुत्ताणतयं ण पावइ। प. उक्कोसयं जुत्ताणतयं केत्तिय होइ? उ. जहण्णएणं जुत्ताणतएणं अभवसिद्धिया गुणिया
अण्णमण्णब्मासो रूवूणो उक्कोसयं जुत्ताणतय होइ।
अहवा जहण्णय अणंताणतयं रूवूणं उक्कोसयं जुत्ताणतय होइ।
द्रव्यानुयोग-(३) अभवसिद्धिक जीव भी इतने ही होते हैं। उसके पश्चात् उत्कृष्ट युक्तानन्त के स्थान के पूर्व तक
अजघन्योत्कृष्ट युक्तानन्त के स्थान हैं। प्र. उत्कृष्ट युक्तानन्त कितने प्रमाण में होता है? उ. जघन्य युक्तानन्त राशि के साथ अभवसिद्धिक राशि का
परस्पर अभ्यास रूप गुणाकार करके प्राप्त संख्या में से एक न्यून करने पर उत्कृष्ट युक्तानन्त की संख्या होती है। अथवा जघन्य अनन्तान्त में एक न्यून करने पर उत्कृष्ट
युक्तानन्त होता है। प्र. जघन्य अनन्तानन्त कितने प्रमाण में होता है? उ. जघन्य युक्तानन्त के साथ अभवसिद्धिक जीवों को परस्पर
अभ्यास रूप से गुणित करने पर प्राप्त पूर्ण संख्या जघन्य अनन्तानन्त का प्रमाण है। अथवा उत्कृष्ट युक्तानन्त में एक प्रक्षेप करने से जघन्य अनन्तानन्त होता है। तत्पश्चात् सभी स्थान अजघन्योत्कृष्ट अनन्तानन्त के होते हैं। यह गणनासंख्या का स्वरूप है।
प. जहण्णयं अणंताणतयं केत्तियं होइ? उ. जहण्णएणं जुत्ताणंतएणं अभवसिद्धिया गुणिया
अण्णमण्णब्भासो पडिपुण्णो जहण्णय अणंताणतय होइ।
अहवा उक्कोसए जुत्ताणंतए रूवं पक्खित्तं जहण्णयं अणंताणतयं होइ। तेण परं अजहण्णमणुक्कोसयाइं ठाणाई। से तंगणणासंखा।
-अणु.सु.४९७-५१९