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उ. गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे भविस्सइ से जहाणामए
आलिंगपुक्खरेइ वा, मुइंगपुक्खरेइ वा जाव णाणामणिपंचवण्णेहिं कित्तिमेहिं चेव, अकित्तिमेहिं चेव।
प. तीसे णं भंते ! समाए मणुआणं केरिसए आयारभावपडोयारे
भविस्सइ? उ. गोयमा ! समाए मणुआणं छव्विहं संघयणं, छव्विहे संठाणे,
बहूईओ रयणीओ उड्ढं उच्चत्तेणं जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं साइरेगं वाससयं आउअं पालेहिंति, पालेत्ता अप्पेगइआ णिरयगामी, अप्पेगइआ तिरियगामी, अप्पेगइआ मणुयगामी, अप्पेगइआ देवगामी ण सिझंति।
द्रव्यानुयोग-(३) उ. गौतम ! मुरज तथा मृदंग के ऊपरी भाग जैसा उसका
भूमिभाग बहुत समतल तथा रमणीय होगा यावत् अनेक प्रकार की कृत्रिम एवं अकृत्रिम पाँच वर्ण की मणियों से
उपशोभित होगा। प्र. भंते ! उस समय के मनुष्यों का आकार भाव स्वरूप कैसा
होगा? उ. गौतम ! उन मनुष्यों का छह प्रकार का संहनन एवं छह प्रकार
का संस्थान होगा। उनकी ऊँचाई अनेक प्रकार के हाथों की होगी। उनका जघन्य अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट कुछ अधिक सौ वर्ष का आयुष्य होगा और आयुष्य को भोगकर उनमें से कई नरक गति में, कई तिर्यञ्च गति में, कई मनुष्य गति में और
कई देव गति में उत्पन्न होंगे, किन्तु सिद्ध नहीं होंगे। ३. हे आयुष्मन् श्रमण ! उस आरे के इक्कीस हजार वर्ष प्रमाण
काल व्यतीत हो जाने पर उत्सर्पिणी काल का दुषम-सुषमा नामक तृतीय आरा आरंभ होगा। उसमें अनन्त वर्ण पर्याय
आदि क्रमशः परिवर्द्धित होते जायेंगे। प्र. भंते ! उस काल में भरत क्षेत्र का आकार भावस्वरूप कैसा
होगा? उ. गौतम ! वह मुरज या मृदंग के ऊपरी भाग के समान उसका
भूमिभाग बड़ा समतल एवं रमणीय होगा। वह नानाविध
कृत्रिम तथा अकृत्रिम पंचरंगी मणियों से उपशोभित होगा। प्र. भंते ! उन मनुष्यों का आकार भावस्वरूप कैसा होगा?
३. तीसे णं समाए एक्कवीसाए वाससहस्सेहिं काले वीइक्कते
अणंतेहिं वण्णपज्जवेहिं जाव परिवड्ढेमाणे-परिवड्ढेमाणे एत्थ णं दुस्समसुसमा णाम समा काले पडिवज्जिस्सइ,
समणाउसो! प. तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए
आयारभावपडोयारे भविस्सइ? . उ. गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे भविस्सइ, से जहाणामए
आलिंगपुक्वरेइ वा, मुइंगपुक्खरेइ वा जाव
णाणामणिपंचवण्णेहिं कित्तिमेहिं चेव, अकित्तिमेहिं चेव। प. तेसि णं भंते ! मणुआणं केरिसए आयारभावपडोयारे
भविस्सइ? गोयमा ! तेसि णं मणुआणं छविहे संघयणे, छव्विहे संठाणे बहूइ धणूइं उड्ढं उच्चत्तेणं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडीआउअं पालिहिंति, पालेत्ता, अप्पेगइआ णिरयगामी, अप्पेगइआ तिरियगामी, अप्पेगइआ मणुयगामी, अप्पेगइआ देवगामी, अप्पेगइआ सिझंति, बुझंति, मुच्चंति, परिणिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति।
उ. गौतम ! उन मनुष्यों का छह प्रकार का संहनन तथा छह प्रकार
संस्थान होगा। उनके शरीर की ऊँचाई अनेक धनुष परिमाण होगी। उनका आयु जघन्य अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट पूर्व कोटि का होगा। आयु भोगकर उनमें से कई नरक गति में, कई तिर्यञ्च गति में, कई मनुष्य गति में और कई देव गति में जायेंगे। कई सिद्ध, बुद्ध, मुक्त एवं परिनिर्वृत्त होंगे तथा समस्त दुःखों का अन्त करेंगे। उस काल में तीन वंश उत्पन्न होंगे, यथा-१.तीर्थकर वंश, २.चक्रवती वंश,३. दशार वंश। उस काल में तेईस तीर्थकर, ग्यारह चक्रवर्ती, नौ बलदेव तथा नौ वासुदेव उत्पन्न होंगे।
तीसे णं समाए तओ वंसा समुप्पज्जिस्संति, तं जहा१. तित्थगरवंसे, २. चक्कवट्टिवंसे, ३. दसारवंसे। तीसे णं समाए तेवीसं तित्थगरा, एक्कारस चक्कवट्टि, णव बलदेवा, णव
वासुदेवा समुप्पज्जिस्संति। ४. तीसे णं समाए सागरोवमकोडाकोडीए बायालीसाए
वाससहस्सेहिं ऊणिआए काले वीइक्वंते अणतेहिं वण्णपज्जवेहिं जाव अणंतगुणपरिवुड्ढी परिवड्ढेमाणेपरिवड्ढेमाणे एत्थ णं सुसमदूसमा णामं समा काले पडिवज्जिस्सइ, समणाउसो! सा णं समा तिहा विभजिस्सइ तं जहा-१. पढमे तिभागे,
२. मज्झिमे तिभागे,३. पच्छिमे तिभागे। प. तीसे णं भंते ! समाए पढमे तिभाए भरहस्स वासस्स केरिसए
आयारभावपडोयारे भविस्सइ? उ. गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे भविस्सइ।
मणुआणं जाव ओसप्पिणीए पच्छिमे तिभागे वत्तव्वया सा भाणिअव्वा कुलगरवज्जा उसमसामिवज्जा।
४. हे आयुष्मन् श्रमण ! उस आरे के बयालीस हजार वर्ष कम
एक सागरोपम कोडाकोडी काल व्यतीत हो जाने पर उत्सर्पिणी काल का सुषम दुषमा नामक चतुर्थ आरा प्रारम्भ होगा। उसमें अनन्त वर्ण पर्याय आदि की क्रम से उत्तरोत्तर अनन्तगुण वृद्धि होती जायेगी। वह काल तीन भागों में विभक्त होगा, यथा-१. प्रथम विभाग,
२. मध्यम त्रिभाग, तथा ३. अन्तिम त्रिभाग। प्र. भंते ! उस काल के प्रथम विभाग में भरत क्षेत्र का आकार
भावस्वरूप कैसा होगा? उ. गौतम ! उसका भूमिभाग बहुत समतल तथा रमणीय होगा।
अवसर्पिणी काल के सुषम-दुषमा आरे के अन्तिम तृतीयांश में जैसे मनुष्यों का वर्णन किया गया है वैसा ही यहाँ करना चाहिए।