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२०२३
परिशिष्ट : ३ गणितानुयोग
तए णं से खीरमेहे णामं महामेहे खिप्पामेव पतणतणाइस्सइ जाव खिप्पामेव जुग-मुसल-मुट्ठिप्पमाणमित्ताहिं धाराहिं ओघमेघ सत्तरत्तं वासं वासिस्सइ, जेणं भरहवासस्स भूमीए वण्णं गंध रसं फासं च जणइस्सइ। तसि च णं खीरमेहंसि सत्तरत्तं णिवतितंसि समाणंसि इत्थ णं घयमेहे णाम महामेहे पाउब्भविस्सइ। भरहप्पमाणमेत्ते आधामेणं,तदणुरूवं च णं विक्खंभबाहल्लेणं तए णं से घयमेहे महामेहे खिप्पामेव पतणतणाइस्सइ जाव वासं वासिस्सइ । जेणं भरहम्स वासस्स भूमीए सिणेहभावं जणइस्सइ। तंसि च णं घयमेहंसि सत्तरत्तं णिवतितंसि समाणंसि एत्थ णं अमयमेहे णामं महामेहे पाउब्भविस्सइ। भरहप्पमाणमित्तं आयामेणं तदणुरूवं च णं विक्खंभबाहल्लेणं, तए णं से अमयमेहे णामं महामेहे खिप्पामेव पतणतणाइस्सइ जाव वासं वासिस्सइ जेणं भरहे वासे रूक्ख गुच्छ-गुम्म-लय-वल्लि-तणपव्वग-हरिय-ओसहिं पवालंकुरमाईए तणवणस्सइकाइए जणइस्सइ। तंसि च णं अमयमेहंसि सत्तरत्तं णिवतितंसि समाणंसि एत्थ णं रसमेहे णाम महामेहे पाउब्भविस्सइ। भरहप्पमाणमेत्ते आयामेणं तदणुरूवं च विक्खंभबाहल्लेणं। तए णं से रसमेहे णामं महामेहे खिप्पामेव पतणतणाइस्सइ जाव वासं वासिस्सइ। जेणं तेसिं बहूणं रूक्ख-गुच्छ-गुम्म-लय-वल्लि-तण-पव्वगहरित-ओसहि-पवालंकुरमादीणं १. तित्त, २. कडुअ, ३. कसाय, ४. अंबिल, ५. महुरे पंचविहे रसविसेसे जणइस्सइ। तए णं भरहे वासे भविस्सइ परूढरूक्ख-गुच्छ-गुम्म-लयबल्लि-तण-पव्वग-हरिअ-ओसहिए उवचियतय पत्त पवालंकुर पुष्फ-फलसमुइए सुहोवभोगे या वि भविस्सइ।
महामेघ शीघ्र ही गर्जन करेगा यावत् शीघ्र ही युग-मूसल और मुष्टि परिमित धाराओं से सर्वत्र एक सदृश सात दिन-रात तक वर्षा करेगा। जिससे भरत क्षेत्र की भूमि में शुभ वर्ण, शुभ गन्ध, शुभ रस तथा शुभ स्पर्श उत्पन्न हो जायेंगे। उस क्षीरमेघ के सात दिन-रात बरस जाने पर घृतमेघ नामक महामेघ प्रकट होगा। वह लम्बाई चौड़ाई और विस्तार में भरत क्षेत्र जितना होगा। वह घृतमेघ नामक विशाल बादल शीघ्र ही गर्जन करेगा यावत् वर्षा करेगा। इस प्रकार वह भरत क्षेत्र की भूमि में स्नेहभाव स्निग्धता उत्पन्न करेगा। उस घृतमेघ के सात दिन-रात तक बरस जाने पर अमृतमेघ नामक महामेघ प्रकट होगा। वह लम्बाई चौड़ाई और विस्तार में भरत क्षेत्र जितना होगा। वह अमृतमेघ नामक विशाल बादल शीघ्र ही गर्जन करेगा यावत् वर्षा करेगा। इस प्रकार वह भरत क्षेत्र में वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, बेल, तृण, घास, पर्वग, गन्ने आदि हरित हरियाली दूब आदि औषधि जड़ी बूटी पत्ते तथा कोंपल आदि तृण वनस्पतियों को उत्पन्न करेगा। उस अमृतमेघ के इस प्रकार सात दिन-रात बरस जाने पर रसमेघ नामक महामेघ प्रकट होगा। वह लम्बाई चौड़ाई और विस्तार में भरत क्षेत्र जितना होगा। फिर वह रसमेघ नामक विशाल बादल शीघ्र ही गर्जन करेगा यावत् वर्षा करेगा। जिससे उन वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, बेल, तृण, पर्वग, हरियाली, औषधि, पत्ते और कोंपल आदि में १. तिक्त, २. कटुक, ३. कषाय,४. अम्ल तथा ५. मधुर इन पाँच प्रकार के रसों को उत्पन्न करेगा। तब भरत क्षेत्र में वृक्ष गुच्छ, गुल्म, लता, बेल, तृण, पर्वग, हरियाली, औषधि, पत्ते तथा कोंपल आदि उगेंगे। उनकी त्वचा छाल, पत्र, प्रवाल, पल्लव, अंकुर, पुष्प, फल ये सब परिपुष्ट होंगे और सुखपूर्वक सेवन करने योग्य होंगे। तब वे बिलवासी मनुष्य देखते हैं कि भरत क्षेत्र में वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, बेल, तृण, पर्वग, हरियाली औषधि ये सब उत्पन्न हो गये हैं। छाल, पत्र, प्रवाल, पल्लव, अंकुर, पुष्प तथा फल परिपुष्ट एवं सुखोपभोग्य हो गये हैं, ऐसा देखकर वे बिलों से निकलेंगे और निकलकर हर्षित एवं प्रसन्न होते हुए एक-दूसरे को पुकारेंगे, पुकारकर कहेंगे"हे देवानुप्रियों ! भरत क्षेत्र में वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, बेल, तृण, पर्वग, हरियाली, औषधि ये सब उत्पन्न हो गये हैं। तथा छाल, पत्र, प्रवाल, पल्लव, अंकुर, पुष्प, फल ये सब परिपुष्ट एवं सुखोपभोग्य हो गये हैं। अतः हे देवानुप्रियों ! आज से जो कोई अशुभ मांसादिमूलक आहार करेगा उसकी छाया भी वर्जनीय होगी।" इस प्रकार से विचार करके मर्यादा की व्यवस्था करेंगे और व्यवस्था करके भरत क्षेत्र में सुखशान्ति
का अनुभव करते हुए रहेंगे। प्र. भंते ! उस समय (उत्सर्पिणी काल के दुःषमा नामक द्वितीय
आरक में) भरत क्षेत्र का आकार भावस्वरूप कैसा होगा?
तए णं से मणुआ भरहे वासे परूढरूक्व-गुच्छगुम्म-लय-वल्लि-तण-पव्वय-हरिअ-ओसहिअं-उवचितय-पत्तपवाल-पल्लवंकुर-पुष्फ-फल-समुइअं सुहोवभोगं जायं जायं चावि पासहिंति पासित्ता बिलहितो णिद्धाइस्संति, णिद्धाइत्ता हद्वतुट्ठा अण्णमण्णं सद्दाविसति, सद्दावित्ता एवं वदिस्संति
जाए णं देवाणुप्पिआ ! भरहे वासे परूढरूक्ख गुच्छ-गुम्मलय-वल्लि-तण-पव्यय-हरिय-ओसहिए-उवचिय-तय-पत्तपवाल-पल्लवंकुर-पुष्फ-फल-समुइए सुहोवभोगे तं जे णं देवाणुप्पिआ ! अम्हे केइ अज्जप्पभिइ असुभं कुणिमं आहार आहारिस्सइ से णं अणेगाहिं छायाहिं वज्जणिज्जेत्ति कट्ट संठिई ठवेस्संति, ठवेत्ता भरहे वासे सुहंसुहेणं अभिरममाणा अभिरममाणा विहरिस्संति।
प. तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए
आयारभावपडोयारे भविस्सइ?