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२०२२
ससगा, चित्तगा, चिल्ललगा, ओसण्णं मंसाहारा, मच्छाहारा, सोद्दाहारा, कुणिमाहारा कालमासे कालं किच्चा कहि गच्छहिंति, कहिं उववज्जिहिंति ?
उ. गोयमा ! ओसण्णं परगतिरिक्खजोणिएसु उववज्जिहिति । प. ते णं भंते! ढंका, कंका, पीलगा, मग्गुगा, सिही ओसण्णं मंसाहारा, मच्छाहारा खोद्दाहारा, कुणिमाहारा कालमासे काल किच्चा कहिं गच्छहिति कहिं उपजिरिति ?
उ. गोयमा ! ओसरणं णरगतिरिक्खजोगिएसु गण्डिर्हिति उववज्जिर्हिति । - जंबू. वक्ख. २, सु. ४४-४६ भर वासे उस्सप्पिणी कालस्स छण्हंआरकाणं आयारभावपडोयार परूवणं
सूत्र १२ (ङ)
१. तीसे णं समाए इक्वीसाइ वाससहस्सेहिं काले पीडकते आगमिस्साइ उस्सप्पिणीए सायबहुलपडिए बालवकरणंसि अभीइणक्खत्ते चोद्दसपढमसमये अणतेहिं वण्णपज्जवेहिं जाव अनंतगुण परविढीए परिवड्ढेमाणे- परिवड्ढेमाणे एत्थ णं दूसमदूसमा णामं समा काले पडिवज्जिस्सइ, समणाउसो !
प. तीसे णं भंते! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आयाभावपडोयारे भविस्सइ ?
उ. गोयमा ! काले भविस्सइ, हाहाभूए, भंभाभूए एवं सो चेव दूसमसमावेदओ अब्बो
२. तीसे णं समाए एक्कवीसाए वाससहस्सेहिं काले विइक्कते अणतेहिं वण्णपज्जवेहिं जाव अनंतगुणपरिवुड्ढीए परिवड्ढेमाणे परिवड्ढेमाणे एत्थ णं दूसमादूसमा णामं समा काले पडिवज्जिस्सइ, समणाउसो !
तेणं कालेणं तेणं समएणं पुक्खलसंवट्टए णामं महामेहे पाउब्भविस्सइ भरहप्पमाणमित्ते आयामेणं तदणुरूवं चणं विक्संभबाहल्ल्लेणं । तए पां से पुक्खलसंवट्टए महामेहखिप्यामेव पतण तणाइस्सइ, खिप्पामेव पतणतणाइत्ता खिप्पामेव पविज्जुआइस्सइ खिप्पामेव पविज्जुआइत्ता खिप्पामेव जुग-मुसलमुद्दिष्यमाणमित्ताहिं धाराहिं ओघमेघ सत्तरतं वास वासिस्साइ, तेणं भरहस्त वासस्स भूमिभाग इंगालभूअ मुम्मुरभूअं छारिअभूअं तत्त कवेल्लुगभूअं तत्तसमजोइभूअं गिव्वाविस्सइति ।
तंसि च णं पुक्षलयसि महामेहसि सत्तरतं पिवतितसि समाणंसि एत्थ णं खीरमेहे णामं महामेहे पाउब्भविस्सइ, भरहष्यमाणमेते आयामेणं, सदगुरू व णं विक्खभवाहल्लेां ।
१. विया. स. ७, उ. ६, सु. ३५-३७
उ.
प्र.
गौतम ! वे प्रायः नरकगति और तिर्यञ्चगति में उत्पन्न होंगे। भंते ! ढंक (काक विशेष) कंक कठफोडा पीलक मद्गुक जल काकशिखी मयूर जो प्रायः माँसाहारी मत्स्याहारी क्षुद्राहारी तथा कुणिमाहारी होंगे वे आयुष्य समाप्त होने पर मरकर कहाँ जायेंगे, कहाँ उत्पन्न होंगे ?
उ. गौतम ! वे प्रायः नरकगति और तिर्यञ्चगति में जायेंगे।
द्रव्यानुयोग - (३)
खरगोश, चीतल तथा चिल्लक जो प्रायः माँसाहारी मत्स्याहारी, क्षुद्राहारी तथा कुणिमाहारी होंगे वे आयुष्य समाप्त होने पर मरकर कहाँ जायेंगे, कहाँ उत्पन्न होंगे ?
भरत क्षेत्र में उत्सर्पिणी काल के छह आरों के आकार भाव स्वरूप का प्ररूपण
१.
आयुष्मन् श्रमण ! उस अवसर्पिणी काल के छठे आरे के इक्कीस हजार वर्ष व्यतीत हो जाने पर श्रावण मास कृष्ण पक्ष प्रतिपदा के दिन बालव नामक करण में चन्द्रमा के साथ अभिजित् नक्षत्र का योग होने पर चतुर्दशविध काल के प्रथम समय में आगामी उत्सर्पिणी काल का दुषमदुषमा नामक प्रथम आरा प्रारम्भ होगा। उसमें अनन्त वर्ण पर्यायादि अनन्तगुण परिवृद्धि के क्रम से परिवर्द्धित होते जायेंगे।
प्र. भंते! उस काल में भरत क्षेत्र का आकार स्वरूप कैसा होगा ?
उ. गौतम ! उस समय अवसर्पिणी काल के दुषमदुषमा नामक छट्ठे आरे के समान हाहाकारमय चीत्कारमय स्थिति होगी।
२. हे आयुष्मन् श्रमण ! उस काल के उत्सर्पिणी के प्रथम आरक दुःषम दुषमा के इक्कीस हजार वर्ष व्यतीत हो जाने पर उसका दुषमा नामक द्वितीय आरा प्रारम्भ होगा। उसमें अनन्त वर्णपर्यायादि अनन्त गुण परिवृद्धि के क्रम से परिवर्तित होते जायेंगे।
उस काल और उस समय उत्सर्पिणी काल के दुःषमा नामक दूसरे आरे के प्रारम्भ में भरत क्षेत्र प्रमाण आयाम विष्कम्भ बाल्य वाला पुष्कर संवर्तक नामक महामेघ प्रादुर्भूत होगा । यह पुष्कर संवर्तक महामेव शीघ्र ही गर्जन करेगा, गर्जन कर शीघ्र ही विद्युत से युक्त होगा, उसमें बिजलियों चमकने लगेंगी, विद्युतयुक्त शीघ्र ही वह युग मूसल और मुष्टि परिमित कोटि धाराओं से सात दिन-रात तक सर्वत्र एक जैसा बरसेगा जिससे वह भरत क्षेत्र के अंगारमय मुर्मुरमय, क्षारमय तप्त कटाह सदृश सब ओर से परितृप्त तथा दहकते भूमिभाग को शीतल करेगा।
यो सात दिन-रात तक पुष्कर संवर्तक महामेघ के बरस जाने पर क्षीरमेघ नामक महामेघ प्रकट होगा। वह लम्बाई चौड़ाई तथा विस्तार में भरत क्षेत्र जितना होगा। वह क्षीरमेघ नामक