Book Title: Dravyanuyoga Part 3
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 566
________________ - २०२१) परिशिष्ट : ३ गणितानुयोग कुसंघयणकुप्पमाणकुसंठिआ, कुरुवा कुट्ठाणासणकुसेज्जकुभोइणो, असुइणो अणेगवाहिपीलि-अंगमंगा खलंतविब्भलगई णिरूच्छाहा, सत्तपरि-वज्जियाविगयचेट्ठा नट्ठतेआ, अभिक्खणं सीउण्हखरफरूसवाय विज्झडिअमलिणपंसुर ओगुंडिअंगमंगा, बहुकोह-माण-माया-लोभा, बहुमोहा, असुभदुक्खभागी, ओसण्णं धम्मसण्णसम्मत्तपरिब्भट्ठा। उक्कोसेणं रयणिप्पमाणमेत्ता, सोलसवीसइवास-परमाउसो, बहुपुत्तणत्तुपरियालपणयबहुला, गंगासिंधुओ महाणईओ वेअड्ढं च पव्वये नीसाए बावत्तरि णिगोअबीअं बीअमेत्ता बिलवासिणो मणुआ भविस्संति। प. तेणं भंते मणुआ किमाहारिस्संति? उ. गोयमा ! तेणं कालेणं ते णं समएणं गंगासिंधुओ महाणईओ रहपहमित्तवित्थराओ अक्खसोअप्पमाणमेत्तं जलं वोज्झिहिंति। सेवि अणं जले बहुमच्छकच्छभाइण्णे णो चेव णं आउबहुले भविस्सइ। पौष्टिक भोजनरहित, शक्तिहीन, कुत्सित संहनन, कुत्सित परिमाण, कुत्सित संस्थान एवं कुत्सित रूप युक्त, कुत्सित आश्रय, कुत्सित आसन, कुत्सित शय्या तथा कुत्सित भोजनसेवी, अशुचि अपवित्र अथवा अश्रुति श्रुत-शास्त्र ज्ञान वर्जित अनेक व्याधियों से पीड़ित, स्वलित विह्वल गति युक्त लड़खड़ाकर चलने वाले, उत्साहरहित सत्वहीन निश्चेष्ट, नष्टतेज तेजोविहीन निरन्तर शीत उष्ण तीक्ष्ण कठोर वायु से व्याप्त शरीरयुक्त, मलिन धूलि से आवृत देहयुक्त, बहु क्रोधी अहंकारी मायावी लोभी तथा मोहमय अशुभ कार्यों के परिमाणस्वरूप अत्यधिक दुःखी प्रायः धर्मसंज्ञा धार्मिक श्रद्धा तथा सम्यक्त्व से परिभ्रष्ट होंगे। उत्कृष्टतः उनके शरीर की ऊँचाई एक हाथ की होगी, उनका अधिकतम आयुष्य स्त्रियों का सोलह वर्ष तथा पुरुषों का बीस वर्ष का होगा। अपने बहुपुत्र पौत्रमय परिवार में उनका बड़ा प्रेम मोह होगा। वे गंगा महानदी, सिन्धु महानदी के तट तथा वैताढ्य पर्वत के समीपवर्ती बिलों में रहेंगे। वे बिलवासी मनुष्य संख्या में बहत्तर होंगे। जो भविष्य में मानव जाति के विस्तार के लिए बीजरूप होंगे। प्र. भंते ! वे मनुष्य क्या आहार करेंगे? उ. गौतम ! उस काल और उस समय में गंगा महानदी और सिन्धु महानदी ये दो नदियाँ रहेंगी। जिनका रथ चलने के लिए अपेक्षित पथ जितना मात्र उनका विस्तार होगा। उनमें रथ के चक्र के छेद की गहराई जितना गहरा जल रहेगा। उनमें अनेक मत्स्य तथा कच्छप कछुए रहेंगे। उस जल में सजातीय अकाय के जीव नहीं होंगे। वे मनुष्य सूर्योदय के समय तथा सूर्यास्त के समय अपने बिलों से तेजी से दौड़कर निकलेंगे। बिलों से निकलकर मछलियों और कछुओं को पकड़ेंगे और उनको किनारे पर लायेंगे। किनारे लाकर रात में शीत द्वारा तथा दिन में आतप द्वारा उनको पकायेंगे, सुखायेंगे, इस प्रकार वे अतिसरस खाद्य को पचाने में असमर्थ अपनी जठराग्नि के अनुरूप उन्हें आहार योग्य बना लेंगे। इस आहार वृत्ति द्वारा वे इक्कीस हजार वर्ष पर्यन्त अपना निर्वाह करेंगे। प्र. भंते ! वे मनुष्य जो निःशील-शीलरहित, आचाररहित, निव्रत-महाव्रत अणुव्रतरहित, निर्गुण-उत्तरगुणरहित, निर्मर्याद-कुल आदि की मर्यादाओं से रहित, प्रत्याख्यानत्याग पौषध व उपवास से रहित होंगे। वे प्रायः माँसभोजी, मत्स्यभोजी, यत्र-तत्र अवशिष्ट क्षुद्र तुच्छ धान्यादिक भोजी, कुणिपभोजी-वसा या चर्बी आदि दुर्गन्धित पदार्थ भोजी होंगे। वे मनुष्य आयुष्य समाप्त होने पर मरकर कहाँ जायेंगे, कहाँ उत्पन्न होंगे? 'उ. गौतम ! वे प्रायः नरकगति और तिर्यञ्चगति में उत्पन्न होंगे। प्र. भंते ! तत्कालवर्ती सिंह, बाघ, भेड़िए, रीछ, तरक्ष, चीते, गेंडे शरभ-अष्टापद,श्रृंगाल, बिलाव, कुत्ते,जंगली कुत्ते या सूअर, तए णं ते मणुआ सूरूग्गमणुमुहुत्तसि अ सूरत्थमणूमुहत्तंसि अ बिलेहिंतो णिद्धाइस्संति, विलेहिंतो णिद्धाइत्ता मच्छकच्छभे थलाई गाहेहिति, मच्छकच्छभे थलाई गाहेत्ता सीआतवतत्तेहिं मच्छकच्छभेहिं इक्कवीसं वाससहस्साई वित्तिं कप्पेमाणा विहरिस्संति। प. ते णं भंते ! मणुआ णिस्सीला णिव्वया, णिग्गुणा, णिम्मेरा, णिप्पच्चक्वाणपोसहोववासा, ओसण्णं मंसाहारा, मच्छाहारा, खुड्डाहारा, कुणिमाहारा कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिंति, कहिं उववज्जिहिति? उ. गोयमा ! ओसण्णं णरगतिरिक्खजोणिएसु उववज्जिहिंति। प. तीसे णं भंते ! समाए सीहा, वग्धा, विगा, दीविआ, अच्छा, तरस्सा, परस्परा, सरभ, सियालबिरालसुणगा, कोलसुणगा, १. विया.स.७.उ.६,सु.३१-३३ २. विया.स.७,उ.६,सु.३४

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