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१९९९
परिशिष्ट : ३ गणितानुयोग प. विज्जाहरसेढीणं भंते ! भूमीणं केरिसए आयारभावपडोयारे
पण्णत्ते? उ. गोयमा ! बहुसमरणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए
आलिंगपुक्खरेइ वा जाव णाणाविहपंचवण्णेहिं मणीहि, तणेहिं उवसोभिए, तं जहा-कित्तिमेहिं चेव, अकित्तिमेहिं चेव।
प्र. भंते ! विद्याधर श्रेणियों की भूमि का आकार स्वरूप कैसा कहा
गया है? उ. गौतम ! उनका भूमिभाग बड़ा समतल रमणीय कहा गया है।
वह मुरज के ऊपरी भाग के समान समतल है यावत् नाना प्रकार की मणियों तथा तृणों से सुशोभित है, यथा-कृत्रिम, अकृत्रिम। दक्षिणवर्ती विद्याधर श्रेणी में गगनवल्लभ आदि पचास विद्याधर नगर कहे गए हैं। उत्तरवर्ती विद्याधर श्रेणी में रथनूपुरचक्रवाल आदि साठ विद्याधर नगर कहे गए हैं। इस प्रकार दक्षिणवर्ती एवं उत्तरवर्ती विद्याधर श्रेणियों के कुल मिलाकर एक सौ दस नगरावास कहे गए हैं।
तत्थ णं दाहिणिल्लाए विज्जाहरसेढीए गगणवल्लभपामोक्खा पण्णासं विज्जाहरणगरावासा पण्णत्ता, उत्तरिल्लाए विज्जाहरसेढीए रहनेउरचक्कवालपामोक्खा सट्ठि विज्जाहरणगरावासा पण्णत्ता, एवामेव सपुव्वावरेणं दाहिणिल्लाए, उत्तरिल्लाए विज्जाहरसेढीए एगं दसुत्तर विज्जाहरणगरावाससयं भवंतीतिमक्खायं। ते विज्जाहरणगरा रिद्धस्थिमियसमिद्धा पमुइयजणजाणवया जाव पडिरूवा।
तेसु णं विज्जाहरणगरेसु विज्जाहररायाणो परिवसति महयाहिमवंतमलयमंदरमहिंदसारा।
रायवण्णओ भाणिअव्यो। प. विज्जाहरसेढीणं भंते ! मणुआणं केरिसए आयारभाव
पडोयारे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! ते णं मणुआ बहुसंघयणा, बहुसंठाणा, बहुउच्चत्त
पज्जवा, बहुआउपज्जवा, बहूई वासाइं आउं पालेंति, पालित्ता अप्पेगइया णिरयगामी, अप्पेगइया तिरियगामी, अप्पेगइया मणुयगामी, अप्पेगइया देवगामी, अप्पेगइया सिझंति, बुझंति मुच्चंति परिणिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। तासि णं विज्जाहरसेढीणं बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ वेअड्ढस्स पव्वयस्स उभओ पासिं दस-दस जोअणाई उड्ढे उप्पइत्ता एत्थ णं दुवे अभिओगसेढीओ पण्णत्ताओ। पाईणपडीणाययाओ, उदीणदाहिण वित्थिण्णाओ, दस-दस जोअणाई विक्खंभेणं, पव्वयसमियाओ आयामेणं, उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहिं वणसंडेहिं संपरिक्खित्ताओ वण्णओ दोण्ह वि पव्वयसमियाओ आयामेणं।
वे विद्याधर-नगर वैभवशाली सुरक्षित एवं समृद्ध हैं। वहाँ के निवासी तथा अन्य भागों से आये हुए व्यक्ति वहाँ आमोदप्रमोद के प्रचुर साधन होने से प्रसन्न रहते हैं यावत् अत्यंत दर्शनीय हैं। उन विद्याधर नगरों में विद्याधर राजा निवास करते हैं, वे महाहिमवान् पर्वत के सदृश महत्ता तथा मलय मेरू एवं महेन्द्र संज्ञक पर्वतों के सदृश प्रधानता या विशिष्टता लिए हुए हैं।
इत्यादि राजा का वर्णन करना चाहिए। प्र. भंते ! विद्याधर श्रेणियों के मनुष्यों का आकार स्वरूप कैसा
कहा गया है? उ. गौतम ! वहाँ के मनुष्यों का संहनन, संस्थान, ऊँचाई, आयु
अनेक प्रकार का है। वे बहुत वर्षों का आयुष्य भोगते हैं, भोगकर कई नरकगति में, कई तिर्यञ्चगति में, कई मनुष्यगति में और कई देवगति में जाते हैं। कई सिद्ध बुद्ध मुक्त परिनिर्वृत और सब दुःखों का अंत करते हैं। उन विद्याधर श्रेणियों के समतल भूमिभाग से वैताढ्य पर्वत के दोनों ओर दस-दस योजन ऊपर दो आभियोगिक श्रेणियाँ कही गई हैं। वे पूर्व पश्चिम में लम्बी तथा उत्तर दक्षिण में चौड़ी हैं। उनकी चौड़ाई दस-दस योजन तथा लम्बाई पर्वत जितनी है। वे दोनों श्रेणियाँ अपने दोनों ओर दो पद्मवरवेदिकाओं एवं दो वनखण्डों से परिवेष्टित हैं। लम्बाई में दोनों पर्वत जितनी हैं।
इनका वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए। प्र. भंते ! आभियोगिक श्रेणियों का आकार स्वरूप कैसा कहा
गया है? उ. गौतम ! उनका बड़ा समतल रमणीय भूमि भाग कहा गया है
यावत् मणियों एवं तृणों से उपशोभित है। मणियों के वर्ण यावत् तृणों के शब्दों का वर्णन करना चाहिए। उन आभियोगिक श्रेणियों पर बहुत से वाणव्यंतर देव-देवियाँ बैठते हैं, शयन करते हैं यावत् अपने पुण्य कर्मों के फल विशेष का अनुभव करते हुए विचरते हैं। उन आभियोगिक श्रेणियों में देवराज देवेन्द्र शक्र के सोम, यम, वरुण तथा वैश्रमणकायिक आभियोगिक देवों के बहुत से
प. आभिओगसेढीणं भंते ! केरिसए आयारभावपडोयारे
पण्णत्ते? उ. गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव तणेहि
उवसोभिए। वण्णाइं जाव तणाणं सद्दोत्ति। तासि णं आभिओगसेढीणं तत्थ देसे तहिं-तहिं बहवे वाणमंतरा देवा य देवीओ अ आसयंति, सयंति जाव फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणा विहरंति। तासु णं आभिओगसेढीसु सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो सोम जम वरूण वेसमणकाइआणं आभिओगाणं देवाणं बहवे