Book Title: Dravyanuyoga Part 3
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 555
________________ २०१० उ. कालाणुपुव्वी दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १.ओवणिहिया य, २.अणोवणिहिया य। तत्थ णं जा सा ओवणिहिया सा ठप्पा। तत्थ णं जा सा अणोवणिहिया सा दुविहा पण्णत्ता,तं जहा१.णेगम-ववहाराणं, २.संगहस्स य। -अणु.सु. १८०-१८२ णेगम-ववहारनय सम्मया अणोवणिहिया कालाणुपुव्वीसूत्र १ (ग) प. से किं तंणेगम-ववहाराणं अणोवणिहिया कालाणुपुवी? द्रव्यानुयोग-(३) उ. कालानुपूर्वी दो प्रकार की कही गई है, यथा १. औपनिधिकी, २. अनौपनिधिकी। इनमें से औपनिधिकी कालानुपूर्वी अविवेचनीय है। अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी दो प्रकार की कही गई है, यथा१. नैगम व्यवहारनयसम्मत, २. संग्रहनयसम्मत। नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी उ. णेगम-ववहाराणं अणोवणिहिया कालाणुपुव्वी-पंचविहा पण्णत्ता,तं जहा१.अट्ठपयपरूवणया, २.भंगसमुक्कित्तणया, ३.भंगोवदंसणया, ४.समोयारे, ५. अणुगमे। प. से किं तं णेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया? उ. णेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया तिसमयट्ठिईए आणुपुव्वी जाव दससमयट्ठिईए आणुपुव्वी, संखेज्जसमयट्ठिईए आणुपुव्वी, असंखेज्जसमयट्ठिईए आणुपुव्वी, एगसमयट्ठिईए अणाणुपुव्वी, दुसमयट्ठिईए अवत्तव्वए, तिसमयट्ठिईयाओ आणुपुव्वीओ जाव असंखेज्जसमयट्ठिईयाओ आणुपुव्वीओ। एगसमयट्टिईयाओ अणाणुपुब्बीओ, दुसमयट्ठिईयाइं अवत्तव्वयाई। से तंणेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया। प. एयाए णं णेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणयाए किं पओयणं? प्र. नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी का क्या स्वरूप है? उ. नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी पाँच प्रकार की कही गई है, यथा१. अर्थपदप्ररूपणता, २. भंगसमुत्कीर्तनता, ३: भंगोपदर्शनता, ४. समवतार, ५. अनुगम। प्र. नैगम-व्यवहारनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता का क्या स्वरूप है? उ. नैगम-व्यवहारनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता का स्वरूप इस प्रकार हैतीन समय की स्थिति वाला द्रव्य आनुपूर्वी है यावत् दस समय की स्थिति वाला द्रव्य आनुपूर्वी है, संख्यात समय की स्थिति वाला द्रव्य आनुपूर्वी है, असंख्यात समय की स्थिति वाला द्रव्य आनुपूर्वी है, एक समय की स्थिति वाला द्रव्य अनानुपूर्वी है, दो समय की स्थिति वाला द्रव्य अवक्तव्य है, तीन समय की स्थिति वाले द्रव्य आनुपूर्वी हैं यावत् असंख्यात समय की स्थिति वाले द्रव्य आनुपूर्वी हैं, एक समय की स्थिति वाले द्रव्य अनानुपूर्वी हैं, दो समय की स्थिति वाले द्रव्य अवक्तव्य हैं, यह नैगम-व्यवहारनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता का स्वरूप है। प्र. इस नैगम-व्यवहारनयसम्मत अर्थपदप्ररूपण का क्या प्रयोजन है? उ. इस नैगम-व्यवहारनयसम्मत अर्थपदप्ररूपण के द्वारा भंगसमुत्कीर्तनता की जाती है। प्र. नैगम-व्यहारनयसम्मत भंगसमुत्कीर्तनता का क्या स्वरूप है ? उ. नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगसमुत्कीर्तनता का स्वरूप इस प्रकार हैआनुपूर्वी है, अनानुपूर्वी है, अवक्तव्य है। इसी प्रकार द्रव्यानुपूर्वीवत् कालानुपूर्वी के भी २६ भंग जानना चाहिए। यह नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगसमुत्कीर्तनता का स्वरूप है। प्र. इस नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगसमुत्कीर्तनता का क्या प्रयोजन है? उ. इस नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगसमुत्कीर्तनता से भंगोपदर्शनता की जाती है। उ. एयाए णं णेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणयाए भंगसमुक्कित्तणया कज्जइ। प. से किं तंणेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया? उ. णेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया अत्थि आणुपुल्वी, अस्थि अणाणुपुब्बी, अस्थि अवत्तव्वए। एवं दव्वाणुपुव्वीगमेणं कालाणुपुब्बीए वि ते चेव छब्बीसं भंगा भाणियव्वा। से तं णेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया। प. एयाए णं णेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणयाए किं पओयणं? उ. एयाए णं णेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणयाए भंगोवदंसणया कज्जइ।

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