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२००९
परिशिष्ट : ३ गणितानुयोग
सोत्थियलेसाई, सोत्थियज्झयाई, सोत्थियसिंगाराई,
सोत्थियकूडाई, सोत्थियसिट्ठाई सोत्थियउत्तरवडिंसगाई? उ. हंता, गोयमा ! अत्थि। प. ते णं भंते ! विमाणा केमहालया पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जावइए णं सूरिए उदेइ जावइएणं य सूरिए अत्थमइ
एवइया तिण्णोवासंतराइं अत्थेगइयस्स देवस्स एक्के विक्कमे सिंया। से. णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए जाव दिव्वाए देवगइए वीइवयमाणे वीइवयमाणे जाव एगाहं वा दुयाहं वा उक्कोसेणं छम्मासा वीइवएज्जा, अत्थेगइया विमाणं वीइवएज्जा, अत्थेगइया विमाणं नो वीइवएज्जा, एमहालया णं गोयमा ! ते विमाणा पण्णत्ता।
प. अस्थि णं भंते ! विमाणाई अच्चीणि अच्चिरावत्ताई तहेव जाव
अच्चुत्तरवडिंसगाई? उ. हंता, गोयमा ! अथि। प. ते णं भंते ! विमाणा केमहालया पण्णत्ता? उ. गोयमा ! एवं जहा सोत्थियाईणि।
णवर-एवइयाई पंच उवासंतराइं अत्थेगइयस्स देवस्स एगे विक्कमे सिया।
सेसं तं चेव। प. अत्थि णं भंते ! विमाणाई कामाई कामावत्ताई जाव
कामुत्तरवडिंसगाइं? उ. हंता, अत्थि। प. ते णं भंते ! विमाणा केमहालया पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहा सोत्थियाईणि।
स्वस्तिकध्वज, स्वस्तिकशृंगार, स्वस्तिककूट, स्वस्तिकशिष्ट
और स्वस्तिकोत्तरावतंसक नाम वाले विमान हैं ? उ. हाँ, गौतम ! हैं। प्र. भंते ! वे विमान कितने बड़े कहे गए हैं? उ. गौतम ! जितनी दूरी से सूर्य उदित होता हुआ अस्त होता हुआ दिखाई देता है उतना एक अवकाशान्तर है ऐसे तीन अवकाशान्तरप्रमाण क्षेत्र किसी देव का एक विक्रम (पदन्यास) हो और वह देव उस उत्कृष्ट, त्वरित यावत् दिव्य देवगति से चलता हुआ यावत् एक दिन, दो दिन उत्कृष्ट छह मास तक चलता जाए तो किसी विमान का तो पार पा सकता है और किसी विमान का पार नहीं पा सकता है। हे गौतम !
इतने बड़े वे विमान कहे गये हैं। प्र. भंते ! क्या अर्चि, अर्चिरावर्त यावत् अर्चिरूत्तरावतंसक नाम
वाले विमान हैं ? उ. हाँ, गौतम ! हैं। प्र. भंते ! वे विमान कितने बड़े कहे गये हैं? उ. गौतम ! जैसा कथन स्वस्तिक आदि विमानों का किया है वैसा
ही यहाँ करना चाहिए। विशेष-यहाँ पाँच अवकाशान्तर प्रमाण-क्षेत्र किसी देव का एक पदन्यास (एक विक्रम) कहना चाहिए।
शेष सब कथन पूर्ववत् है। प्र. भंते ! क्या काम, कामावर्त यावत् कामोत्तरावतंसक नाम वाले
विमान हैं ? उ. हाँ, गौतम ! हैं। प्र. भंते ! वे विमान कितने बड़े कहे गए हैं? उ. गौतम ! जैसा कथन स्वस्तिकादि विमानों का किया है वैसा ही
यहाँ करना चाहिए। विशेष-यहाँ वैसे सात अवकाशान्तर प्रमाण-क्षेत्र किसी देव का विक्रम (पदन्यास) कहना चाहिए।
शेष सब कथन पूर्ववत् है। प्र. भंते ! क्या विजय, वैजयंत, जयंत और अपराजित नाम के
विमान हैं ? उ. हाँ, गौतम ! हैं। प्र. भंते ! वे विमान कितने बड़े कहे गए हैं ? उ. गौतम ! जितनी दूरी से सूर्य दिखाई देता है इत्यादि एक
अवकाशान्तर की तरह नौ अवकाशान्तर प्रमाण क्षेत्र किसी एक देव का एक पदन्यास कहना चाहिए। शेष कथन पूर्ववत् है यावत् किन्हीं विमानों के पार नहीं पहुँच सकता है। हे आयुष्मन् श्रमण ! इतने बड़े विमान कहे गये हैं।
णवरं-सत्त उवासंतराइं विक्कमे।
सेसं तहेव। प. अत्थि णं भंते ! विमाणाई विजयाई वेजयंताई जयंताई
अपराजियाई? उ. हंता, अत्थि। प. ते णं भंते ! विमाणा केमहालया पण्णत्ता? उ. गोयमा !जावइए सूरिए उदेह एवइयाई नव ओवासंतराइं,
सेसं तं चेव, जाव नो चेव णं ते विमाणे वीइवएज्जा एमहालयाणं विमाणा पण्णत्ता,समणाउसो !
-जीवा. पडि.३, सु. ९९
काल लोक पृ.६९१ कालाणुपुव्विस्स भेयप्पभेयासूत्र १ (ख)
प. से किं तं कालाणुपुब्बी?
कालानुपूर्वी के भेद-प्रभेद
प्र. कालानुपूर्वी का क्या स्वरूप है?