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परिशिष्ट: ३ गणितानुयोग
२०११
प. से किं तंणेगम-ववहाराणं भंगोवदसणया? उ. णेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया
१.तिसमयट्टिईए आणुपुव्वी, २. एगसमयट्टिईए अणाणुपुब्बी, ३. दुसमयट्टिईए अवत्तव्वए, ४. तिसमयट्टिईयाओ आणुपुव्वीओ, ५.एगसमयट्टिईयाओ अणाणुपुब्बीओ, ६. दुसमयट्टिईयाइं अवत्तव्वयाई। एवं दव्वाणुपुव्वीगमेणं ते चेव छव्वीसं भंगा भाणियब्वा।
प्र. नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगोपदर्शनता का क्या स्वरूप है? उ. नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगोपदर्शनता का स्वरूप इस
प्रकार है१. तीन समय की स्थिति वाला द्रव्य आनुपूर्वी है, २. एक समय की स्थिति वाला द्रव्य अनानुपूर्वी है, ३. दो समय की स्थिति वाला द्रव्य अवक्तव्य है। ४. तीन समय की स्थिति वाले द्रव्य आनुपूर्वी हैं। ५. एक समय की स्थिति वाले द्रव्य अनानुपूर्वी हैं। ६. दो समय की स्थिति वाले द्रव्य अवक्तव्य हैं। इस प्रकार द्रव्यानुपूर्वी के समान यहाँ भी छब्बीस भंग जानने चाहिए।
यह नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगोपदर्शनता का स्वरूप है। प्र. नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वी द्रव्यों का कहाँ समवतार
होता है? उ. तीनों स्व-स्व स्थान में समवतरित जानने चाहिए।
यह समवतार का स्वरूप है। प्र. अनुगम का क्या स्वरूप है? उ. अनुगम नौ प्रकार का कहा गया है, यथा
१. सतपदप्ररूपणता, २. द्रव्यप्रमाण, ३. क्षेत्र, ४. स्पर्शना, ५. काल, ६. अन्तर,७. भाग, ८. भाव,९. अल्पबहुत्व।
से तंणेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया। प. णेगम-ववहाराणं आणुपुव्वीदव्वाइं कहिं समोयरंति?
उ. तिण्णि वि सट्ठाणे-सट्ठाणे समोयरंति त्ति भाणियव्वं ।
से तं समोयारे। प. से किं तं अणुगमे? उ. अणुगमे-णवविहे पण्णते, तं जहा
१.संतपयपरूवणया, २. दव्वपमाणं, ३. च खेत्त, ४. फुसणा य, ५. कालो, ६. य अंतरं, ७. भाग, ८. भाव, ९. अप्पाबहुं -चेव॥१०॥ प. णेगम-ववहाराणं आणुपुव्वीदव्वाइं किं अस्थि णत्थि ? उ. नियमा तिण्णि वि अस्थि। प. णेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाइं किं संखेज्जाई असंखेज्जाई • अणंताई? उ. तिण्णि वि नो संखेज्जाइं, असंखेज्जाई, नो अणंताई। प. णेगम-ववहाराणं आणुपुब्बीदव्वाइं लोगस्स किं संखेज्जइभागे
होज्जा, असंखेज्जइभागे होज्जा, संखेज्जेसु वा भागेसु होज्जा,
असंखेज्जेसु वा भागेसु होज्जा, सव्वलोए होज्जा? उ. एगदव्यं पडुच्च लोगस्स संखेज्जइभागे वा होज्जा,
असंखेज्जइभागे वा होज्जा, संखेज्जेसु वा भागेसु होज्जा, असंखेज्जेसु वा भागेसु होज्जा, देसूणे वा लोए होज्जा। नाणादव्वाई पडुच्च नियमा सव्वलोए होज्जा। एवं अणाणुपुब्बी अवत्तव्वयदव्वाणि भाणियव्वाणि जहा णेगम ववहाराणं खेत्ताणुपुव्बीए एवं फुसणा वि भाणियब्वा।
प्र. नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वी द्रव्य हैं या नहीं हैं ? उ. नियमतः ये तीनों द्रव्य हैं। प्र. नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वी आदि द्रव्य संख्यात हैं,
असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? उ. तीनों द्रव्य संख्यात और अनन्त नहीं हैं, परन्तु असंख्यात हैं। प्र. नैगम और व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वी द्रव्य क्या लोक के
संख्यातवें भाग में, असंख्यातवें भाग में. संख्यातवें भागों में.
असंख्यातवें भागों में या सम्पूर्ण लोक में रहते हैं ? उ. एक द्रव्य की अपेक्षा लोक के संख्यातवें भाग में, असंख्यातवें
भाग में, संख्यात भागों में, असंख्यात भागों में या देशऊन (कुछ कम) लोक में रहते हैं। अनेक द्रव्यों की अपेक्षा निश्चित रूप से सम्पूर्ण लोक में रहते हैं। जिस प्रकार नैगम और व्यवहारनय की अपेक्षा क्षेत्रानुपूर्वी का कथन किया है, इसी प्रकार अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों के लिए भी कहना चाहिए।
इसी प्रकार स्पर्शना के लिए भी जानना चाहिए। प्र.१. नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वी द्रव्य कितने काल तक
रहते हैं? उ. एक आनुपूर्वी द्रव्य की अपेक्षा जघन्य स्थिति तीन समय की
उत्कृष्ट स्थिति असंख्यात काल की है।
अनेक आनुपूर्वी द्रव्यों की अपेक्षा स्थिति सर्वकालिक है। प्र.२. नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनानुपूर्वी द्रव्य कितने काल तक
रहते हैं?
प.१. णेगम-ववहाराणं आणुपुव्वीदव्वाई कालओ केवचिरं होइ ?
उ. एगं दव्वं पडुच्च-जहण्णेणं तिण्णि समया, उक्कोसेणं
असंखेजंकालं।
नाणादव्वाइं पडुच्च सव्वद्धा। प.२. णेगम-ववहाराणं अणाणुपुव्वीदव्वाइं कालओ केवचिरं होइ?