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परिशिष्ट ३ गणितानुयोग)
एवं बलकूडा वि नंदणडवा ।
वक्खारपव्वयकूडाणं उच्चत्त आयाम विक्खंभ य परूवणंसूत्र ४५८ (ग)
सव्वेवि णं वक्खारपव्वयकूडा हरिहरिस्सहकूडवज्जा पंच-पंच जोयणसयाई उड्ढ उच्चत्तेणं, मूले पंच-पंच जोयणसयाई आयामवक्खंभेणं पण्णत्ता । -सम. सु. १०८ (६)
पू. २८९
चलकूडवज्जा नंदणकूडाणं उच्चत्तं आयाम विक्खभ य परूवणंसूत्र ४८३ (ख)
-सम. सु. ११३ (५-६)
सव्र्व्वेणि नंदणकूड़ा बलकुडबन्जा पंच पंच जोयणसयाई उड् उच्चत्तेणं, मूले पंच-पंच जोयणसयाइं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ता । -सम. सु. १०८ (७)
पृ. ३२३
सीता सीतोदा नईयाओ पवाय दिसा परूवणं
सूत्र ५८९ (ख)
चणायामा
निसहाओ णं वासहरपव्ययाओ तिमिछिद्दाओ सीतोदामहानदी चोवत्तरिं जोयणसयाई साहियाई उत्तराहि मुही पवहित्ता वइरामइयाए जिब्भियाए पण्णासजोयणविक्खंभाए वइरतले कुंडे महया घडमुहपवत्तिएणं मुत्तावलिहार संठाणसंठिएणं पवाएणं महया सद्देणं पवडइ । एवं सीता वि दक्खिणाभिमुही भाणियव्वा ।
-सम. सम. ७४, सु. २
पृ. ३२९
जंबुद्दीवे णवजोयणिय मच्छाणं पवेसणंसूत्र ६०५ (ख)
जंबुद्दीवे दीवे णवजोयणिया मच्छा पविंसिंसु वा पविसंति वा, पथिसिस्सति वा । -ठाणं अ. ९, सु. ६७२
पृ. ३४५
ओहेण वेलंधर णागरायाणं आवास पव्वयाणं परूवणंसूत्र ६४९ (ख)
जंबुददीयम्स णं दीवस बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ चउद्दिसि लवणसमुद्र वाघालीस बायालीस जोयणसहस्साई ओगाहेता, एत्थ णं चउण्हं वेलंधर णागराईणं चत्तारि आवासपव्वया पण्णत्ता, तं जहा
२. उदओभासे, ४. दगसीमे ।
१. गोधूमे,
३. संखे,
तत्य णं धत्तारि देवा महिद्रिया जान पलिओचमट्ठिईया परिवसंति, तं जहा
१. गोधूमे,
३. सखे,
२. सिवए,
४. मणोसिलाए।
- ठाणं अ. ४, सु. ३०२
२००१
इसी प्रकार नंदनकूटों को छोड़कर बलकूटों के लिए भी जानना चाहिए वक्षस्कार पर्वत के कूटों की ऊँचाई और लम्बाई-चौड़ाई का
प्ररूपण
हरिहरिस्सह कूटों को छोड़कर सभी वक्षस्कार पर्वतों के कूट पाँच सी-पाँच सौ योजन ऊँचे तथा मूल में पाँच सौ-पाँच सौ योजन लम्बेचौड़े कहे गए हैं।
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लकूट को छोड़कर नंदनकूटों की ऊँचाई और लम्बाई-चौड़ाई का
प्ररूपण
बलकूट को छोड़कर सभी नन्दनवन के कूट पाँच सौ-पाँच सौ योजन ऊँचे तथा मूल में पाँच सौ-पाँच सौ योजन लम्बे-चौड़े कहे गये हैं।
सीता-शीतोदा नदियों के प्रवाह दिशा का प्ररूपण
निषध वर्षधर पर्वत के तिगिंछिद्रह से शीतोदा महानदी कुछ अधिक चौहत्तर सौ योजन उत्तर दिशा की ओर बहकर चार योजन लम्बी और पचास योजन चौड़ी वज्ररत्नमय जिह्वा से विशाल घटमुख में प्रवेश करके मुक्तावलिहार के संस्थान से संस्थित प्रवाह से महान् शब्द करती हुई (तल वाले) कुंड में गिरती है।
इसी प्रकार सीता नदी का भी दक्षिणाभिमुखी बहकर कुंड में गिरने का कथन करना चाहिए।
जम्बूद्वीप में नौ योजन के मत्स्यों का प्रवेश
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में नौ योजन के मलयों ने प्रवेश किया था, करते हैं और करेंगे।
सामान्यतः वेलंधर नागराजों के आवास पर्वतों का प्ररूपण
जम्बूद्वीप द्वीप की बाहरी वेदिका के अन्तिम भाग से चारों दिशाओं में लवणसमुद्र में बयालीस बयालीस हजार योजन जाने पर वेलंधर नागराजों के चार आवास पर्वत कहे गए हैं, यथा
१. गोस्तूप,
२. उदकावभास, ४. दकसीम ।
३. शंख,
उनमें पत्योपम की स्थिति वाले चार महर्धिक देव रहते हैं, यथा
१. गोस्तूप, ३. शंख,
२. शिवक,
४. मनःशिलाक ।