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परिशिष्ट :३ गणितानुयोग
२००५
उत्तरायणगत सूर्य की मंडलांतर गति का प्ररूपण
उत्तरायण में गया हुआ सूर्य चौवीस अंगुल वाली पौरुषी छाया करके कर्क संक्रांति के दिन सर्वाभ्यंतर मंडल से दूसरे मंडल में जाता है।
चन्द्र और सूर्य का परस्पर अंतर आदि का प्ररूपण
पृ.५५७ उत्तरायणगय सूरस्स मंडलांतर गई परूवणंसूत्र ५५६ (ख)
उत्तरायणगए णं सूरिए चउवीसंगुलियं पोरिसिछायं णिव्वत्तइत्ता णं णियट्टइत्ति।
-सम. सम.२४, सु.५ पृ.५६२ चंद सूराणं परोप्परं अंतराई परूवणंसूत्र ५६ (ख)
चंदाओ सूरस्स य सूरा चंदस्स अंतरं होइ। पन्नास सहस्साई तुजोयणाणं अणूणाई ॥२७॥ सूरस्स य सूरस्स य ससिणो ससिणो य अंतर होइ। वहियाओ मणुस्सनगस्स जोयणाणं सयसहस्सं ॥२८॥ सूरतरिया चंदा चंदतरिया य दिणयरा दित्ता। चित्तंतरलेसागा सुहलेसा मंदलेसा य? ॥२९॥
-जीवा. पडि. ३, सु. ११७ पृ.५६८ चंद सूराणं तावक्खेत्तस्स वुढिहाणी हेऊ परूवणंसूत्र ६१ (ख)
तेसिं पविसंताणं तावक्खेत्तं तु वए नियमा। तेणेव कमेण पुणो परिहायई निक्खमंताणं ॥१४॥
-जीवा. पडि.३, सु. १७७(३)
मानुषोत्तर पर्वत के बाहर चन्द्र से सूर्य का और सूर्य से चन्द्र का अन्तर पचास-पचास हजार योजन का है। तथा सूर्य से सूर्य का और चन्द्र से चन्द्र का अन्तर एक लाख योजन का है। चन्द्र का प्रकाश सूर्य से और सूर्य का प्रकाश चन्द्र से अंतरित होता है। इसलिए परस्पर प्रकाश को अंतरित होने से चन्द्र सूर्य की प्रभा सुहावनी व सुखरूप लगती है।
चन्द्र सूर्यों के तापक्षेत्र की वृद्धि हानि के हेतु का प्ररूपण
सर्वबाह्यमण्डल से आभ्यन्तरमण्डल में प्रवेश करते हुए सूर्य और चन्द्रमा का तापक्षेत्र प्रतिदिन नियमतः आयाम की अपेक्षा बढ़ता जाता है और जिस क्रम से वह बढ़ता है उसी क्रम से सर्वाभ्यन्तरमण्डल से बाहर निकलने वाले सूर्य और चन्द्रमा का
तापक्षेत्र क्रमशः घटता जाता है। जम्बूद्वीप के सूर्यों के सूर्य द्वीपों का प्रस्तपण
पृ.५७९ जंबुद्दीवस्स सूराणं सूरदीवाणं परूवणंसूत्र ६८ (ख) प. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवगाणं सूराणं सूरदीवा णाम दीवा
पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं
लवणसमुदं बारसजोयणसहस्साई ओगाहित्ता।
प्र. भंते ! जम्बूद्वीप के सूर्यों के सूर्यद्वीप नामक द्वीप कहाँ कहे
गए हैं? उ. गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत के पश्चिम में लवणसमुद्र में
बारह हजार योजन आगे जाने पर जम्बूद्वीप के सूर्यों के
सूर्यद्वीप हैं।
तं चेव उच्चत्तं, आयामविक्खंभेणं, परिक्खेवो, वेदिया, वनसंडो, भूमिभागा जाव आसयंति, पासायवडेंसगाणं तं चेय पमाणं मणिपेढिया सीहासणा सपरिवारा।
अट्टो उप्पलाई सूरप्पभाई सूरा एत्थ देवा जाव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पच्चत्थिमेणं अण्णम्मि जंबुद्दीवे दीवे।
उनका उच्चत्व, आयाम-विष्कंभ, परिधि, वेदिका, बनखंड, भूमिभाग यावत् देव देवियों का बैठना-उठना, प्रसादावतंसक, उनका प्रमाण, मणिपीठिका, सपरिवार सिंहासन आदि का वर्णन चन्द्रद्वीप की तरह कहना चाहिए। (भंते ! सूर्यद्वीप क्यों कहलाते हैं) (गौतम !) उन द्वीपों की बावड़ियों आदि में सूर्य के समान वर्ण और आकृति वाले बहुत सारे उत्पल आदि कमल हैं, इसलिए वे सूर्यद्वीप कहलाते हैं यावत् इनकी राजधानियाँ अपने-अपने द्वीपों से पश्चिम में अन्य जम्बूद्वीप में हैं।
१. सूरिय.पा. १९, सु. १००