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प्रकीर्णक
१८९७
उ. गोयमा ! नो एगिंदिय-बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदिय
तिरिक्खजोणियकम्मासीविसे, पंचिंदिय तिरिक्खजोणिय
कम्मासीविसे। प. भंते ! जइ पंचिंदियतिरिक्खजोणियकम्मासीविसे किं , सम्मुच्छिम पंचेंदियतिरिक्खजोणियकम्मासीविसे
गब्भवक्वंतियपंचिंदियतिरिक्खजोणियकम्मासीविसे? उ. गोयमा ! एवं जहा वेउव्वियसरीरस्स भेओ जाव'
पज्जत्तसंखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतिय पंचिंदिय तिरिक्खजोणियकम्मासीविसे नो अपज्जत्तासंखेज्जवासाउय गब्भवक्कंतिय पंचिंदियतिरिक्खजोणिय कम्मासीविसे।
प. जइ भंते ! मणुस्सकम्मासीविसे किं सम्मच्छिममणुस्स
कम्मासीविसे गब्भवक्कंतियमणुस्स कम्मासीविसे? उ. गोयमा ! णो सम्मुच्छिममणुस्सकम्मासीविसे,
गब्भवक्कंतियमणुस्सकम्मासीविसे, एवं जहा वेउव्वियसरीरं जाव पज्जत्तसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणुस्सकम्मासीविसे, नो अपज्जत संखेज्ज वासाउय कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणुस्स कम्मासीविसे।
प. भंते ! जइ देवकम्मासीविसे किं भवणवासी
देवकम्मासीविसे जाव वेमाणियदेव कम्मासीविसे?
उ. गौतम ! एकेन्द्रिय-द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय
तिर्यञ्चयोनिक कर्म आशीविष नहीं है, किन्तु पंचेन्द्रिय
तिर्यञ्चयोनिक कर्म आशीविष है। प्र. भंते ! यदि पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक कर्म आशीविष है तो क्या
सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक कर्म आशीविष है या
गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक कर्म आशीविष है? उ. गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के इक्कीसवें शरीरपद में वैक्रिय शरीर के
सम्बन्ध में जिस प्रकार कहा है उसी प्रकार कहना चाहिए यावत् पर्याप्त संख्यातवर्ष की आयुष्य वाला गर्भज कर्मभूमिज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक कर्म आशीविष होता है, परन्तु अपर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुष्य वाला गर्भज कर्मभूमिज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक कर्म आशीविष नहीं होता है। प्र. भंते ! यदि मनुष्य कर्म आशीविष है, तो क्या सम्मूर्छिम मनुष्य
कर्म आशीविष है या गर्भज मनुष्य कर्म आशीविष है ? उ. गौतम ! सम्मूर्छिम मनुष्य कर्म आशीविष नहीं होता है, किन्तु
गर्भज मनुष्य कर्म आशीविष होता है। इसी प्रकार जैसे प्रज्ञापनासूत्र के इक्कीसवें शरीरपद में वैक्रियशरीर के सम्बन्ध में जीव भेद कहे गए हैं उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए यावत् पर्याप्त संख्यात वर्ष के आयुष्य वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य कर्मआशीविष होता है, परन्तु अपर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले कर्मभूमिज गर्भज
मनुष्य कर्म आशीविष नहीं होता है। प्र. भंते ! यदि देव कर्म आशीविष होता है तो क्या भवनवासी देव
कर्म आशीविष होता है यावत् वैमानिक देव कर्म आशीविष
होता है? उ. गौतम ! भवनवासी देव भी कर्म आशीविष होता है
यावत् वैमानिक देव भी कर्म आशीविष होता है। उ. भंते ! यदि भवनवासी देव कर्म आशीविष होता है तो क्या
असुरकुमार भवनवासी देव कर्म आशीविष होता है यावत्
स्तनितकुमार भवनवासी देव कर्म आशीविष होता है? उ. गौतम ! असुरकुमार भवनवासी देव भी कर्म आशीविष होता
है यावत् स्तनितकुमार भवनवासी देव भी कर्म आशीविष
होता है। प्र. भंते ! यदि असुरकुमार भवनवासी देव कर्म आशीविष है तो
क्या पर्याप्त असुरकुमार भवनवासी देव कर्म आशीविष है या
अपर्याप्त असुरकुमार भवनवासीदेव कर्म आशीविष है ? उ. गौतम ! पर्याप्त असुरकुमार भवनवासी देव कर्म आशीविष
नहीं है, परन्तु अपर्याप्त असुरकुमार भवनवासी देव कर्म आशीविष है।
इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. भंते ! यदि वाणव्यन्तरदेव कर्म आशीविष है तो क्या पिशाच
वाणव्यन्तरदेव कर्म आशीविष है यावत् गन्धर्व वाणव्यन्तरदेव कर्म आशीविष है? गौतम ! वै पिशाचादि सर्व वाणव्यन्तरदेव अपर्याप्तावस्था में कर्म आशीविष हैं।
उ. गोयमा ! भवणवासिदेवकम्मासीविसे वि जाव वेमाणिय
देवकम्मासीविसे वि। प. भंते ! जइ भवणवासिदेवकम्मासीविसे किं असुरकुमार
भवणवासिदेवकम्मासीविसे जाव थणियकुमार
भवणवासिदेवकम्मासीविसे? उ. गोयमा ! असुरकुमार भवणवासिदेवकम्मासीविसे वि
जाव थणियकुमार भवणवासिदेव कम्मासीविसे वि।
प. भंते ! जइ असुरकुमारभवणवासिदेवकम्मासीविसे किं
पज्जत्तअसुरकुमारभवणवासिदेवकम्मासीविसे,
अपज्जत्तअसुरकुमारभवणवासिदेवकम्मासीविसे? उ. गोयमा ! नो पज्जत्तअसुरकुमार भवणवासिदेव
कम्मासीविसे, अपज्जत्तअसुरकुमार भवणवासिदेवकम्मासीविसे।
एवं जाव थणियकुमाराणं। प. भंते ! जइ वाणमंतरदेवकम्मासीविसे किं पिसाय
वाणमंतरदेवकम्मासीविसे जाव गंधव्ववाण
मंतरदेवकम्मासीविसे। उ. गोयमा ! एवं सव्वेसि पि अपज्जत्तगाणं।
१. (पण्ण.प.२१, सु. १५१८) शरीर अध्ययन में देखें।