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प्रकीर्णक
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४. अव्वोच्छित्ति नयदिट्ठया पावट्ठाण विरमण णामाणि
१. एगे पाणाइवाय-वेरमणे, २. एगे मुसावाय-वेरमणे, ३. एगे अदिण्णादाण-वेरमणे, ४. एगे मेहुण-वेरमणे, ५. एगे परिग्गह-वेरमणे, ६. एगे कोह-विवेगे, ७. एगे माण-विवेगे, ८. एगे माया-विवेगे,
९. एगे लोभ-विवेगे, १०. एगे पेज्ज-विवेगे, ११. एगे दोस-विवेगे, १२. एगे कलह-विवेगे, १३. एगे अब्भक्खाण-विवेगे, १४. एगे पेसुण्ण-विवेगे, १५. एगे परपरिवाय-विवेगे, १६. एगे अरइरई-विवेगे, १७. एगे मायामोस-विवेगे,
१८. एगे मिच्छादसणसल्ल-विवेगे। -ठाणं.अ.१, सु.३९ (२) ५. गुणप्पमाणस्स दुविहत्तं. प. से किं तं गुणप्पमाणे? उ. गुणप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा१. जीवगुणप्पमाणे, २. अजीवगुणप्पमाणे य।
अणु.सु.४२८ ६. भाव संखा सरूव परूवणं
प. से किं तं भावसंखा? उ. जे इमे जीवा संखगइनामगोत्ताई कम्माइंवेदेति। .
४. द्रव्यार्थिक नय दृष्टि से अठारह पापस्थान विरमण के नाम
१. प्राणातिपात-विरमण एक है, २. मृषावाद-विरमण एक है, ३. अदत्तादान-विरमण एक है, ४. मैथुन-विरमण एक है, ५. परिग्रह-विरमण एक है, ६. क्रोध-विवेक एक है, ७. मान-विवेक एक है, ८. माया-विवेक एक है, ९. लोभ-विवेक एक है, १०. प्रेय (प्रेम-राग) विवेक एक है, ११. द्वेष-विवेक एक है, १२. कलह-विवेक एक है, १३. अभ्याख्यान-विवेक एक है, १४. पैशुन्य-विवेक एक है, १५. परपरिवाद-विवेक एक है, १६. अरति-रति-विवेक एक है, १७. मायामृषा-विवेक एक है,
१८. मिथ्यादर्शनशल्य-विवेक एक है। ५. गुणप्रमाण के दो प्रकार
प्र. गुणप्रमाण क्या है? उ. गुणप्रमाण दो प्रकार का कहा गया है, यथा
१. जीवगुणप्रमाण, २. अजीवगुणप्रमाण। ६. भाव शंख के स्वरूप का प्ररूपण
प्र. भाव शंख का क्या स्वरूप है? उ. इस लोक में जो जीव शंखगतिनाम-गोत्र कर्मादिकों का वेदन
कर रहे हैं वे भाव शंख हैं।
यह भाव शंख है। ७. चौवीसदंडकों में सामान्य से दंड संख्या का प्ररूपण
दण्ड दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. अर्थदण्ड,
२. अनर्थदण्ड। दं.१. नैरयिकों में दो प्रकार के दण्ड कहे गए हैं, यथा१. अर्थदण्ड, अनर्थदण्ड। दं. २-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त चौवीस दण्डकों (जीव
भेदों) में दो दो दण्ड जानने चाहिए। ८. आशीविष भेदों का विस्तार से प्ररूपण
प्र. भंते ! आशीविष कितने प्रकार के कहे गए हैं ? उ. गौतम ! आशीविष दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. जाति आशीविष, २ कर्म आशीविष। चार प्रकार के जाति-आशीविष (दाढों में विष वाले) कहे गए हैं,यथा१. जाति-आशीविष वृश्चिक (बिच्छु),
से तंभावसंखा।
अणु.,सु.५२० ७. चउवीसदंडएसु ओहेण दंडसंखा परूवणं
दो दंडा पण्णत्ता,तं जहा१. अट्ठादंडे य,
२.अणट्ठादंडे या दं.१.णेरइयाणं दो दंडा पण्णत्ता,तं जहा१. अट्ठादंडे य,
२.अणट्ठादंडे य। दं.२-२४ एवं चउवीसदंडओ जाव वेमाणियाणं।
__-ठाणं. अ.२,उ.२, सु.५८ ८. आसीविसभेयाणं वित्थरओ परूवणं
प. कइविहा णं भंते ! आसीविसा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! दुविहा आसीविसा पन्नत्ता,तं जहा
१. जातिआसीविसा य, २. कम्मआसीविसा य। चत्तारि जातिआसीविसा पण्णत्ता,तं जहा
१. विच्छुय जातिआसीविसे,