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प्रकीर्णक
८. धम्मे य अट्ठमे वुत्ते
९. काहीति य
१०. कर्तति य ॥
४७. दुसम सुसम -काल सक्खणं
दसहिं ठाणेहिं ओगाढं दुस्समं जाणेज्जा, तं जहा
१. अकाले वरिसइ
२. काले ण वरिसइ.
३. असाहू पुज्जति,
४. साहू ण पुज्जति,
५. गुरुसु जणो मिच्छं पडिवन्नो,
६. अमणुण्णा सद्दा,
७. अमणुण्णा रुवा,
८. अमणुण्णा गंधा,
९. अमणुण्णा रसा,
१०. अमणुण्णा फासा)
दसहिं ठाणेहिं ओगाढं सुसमं जाणेज्जा, तं जहा
१. अकाले न वरिस,
२. काले वरिसइ,
३. असाहू ण पुज्जति,
४. साहू पुज्जति,
५. गुरूसु जणो सम्मं पडिवन्नो १
६. मणुण्णा सद्दा,
७. मणुण्णा रुवा,
८. मणुण्णा गंधा,
९. मणुण्णा रसा
१०. मणुण्णा फासा ।
४८. दसविह बल परूवणं
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दसविहे बले पण्णत्ते तं जहा१. सोइंदिय बले,
३. धाणिदिय बले
५. फासिंदिय बले,
७. दंसणवले, ९. तवबले,
४९. सत्थस्स दस पगारा
दसविहे सत्ये पण्णत्ते, तं जहा
- ठाणं. अ. १०, सु. ७४५
१. सत्यमग्गी
३. लो.
५-६ . खारमंबिलं, ७. दुप्पउत्तो मणो, ९. काओ,
- ठाणं. अ. १०, सु. ७६५
२. चक्खिदिय बले, ४. रसेंदिय बले,
६. णाणवले, ८. चरितवले
१०. पीरिय
-ठाण. अ. १०, सु. ७४०
२. विसं, ४. सिणेहो,
८. वाया,
१०. भावो य अविरई ॥
८. धर्म दान-संयमी को देना,
९. करिष्यतिदान भविष्य में सहयोग करेगा इसलिए देना,
१०. कृतमितिदान-पूर्व में सहयोग किया इसलिए उसे देना ।
४७. दुःश्रम और सुषमकाल का लक्षण
दस स्थानों से दुःषमकाल की अवस्थिति जानी जाती है, यथा१. अकाल में वर्षा होती है,
२. समय परे वर्षा नहीं होती है,
३. असाधुओं की प्रतिष्ठा होती है,
४. साधुओं की प्रतिष्ठा नहीं होती है,
५. गुरुजनों के प्रति अविनयपूर्ण व्यवहार होता है,
६. अमनोज शब्द होते हैं,
७. अमनोज्ञ रूप होते हैं,
८. अमनोज गंध होते हैं.
९. अमनोज्ञ रस होते हैं,
१०. अमनोज्ञ स्पर्श होते हैं।
दस स्थानों से सुषमाकाल की अवस्थिति जानी जाती है, यथा
१. अकाल में वर्षा नहीं होती है,
२. समय पर वर्षा होती है,
३. असाधुओं की प्रतिष्ठा नहीं होती है,
४. साधुओं की प्रतिष्ठा होती है,
५. गुरुजनों के प्रति सम्यक् व्यवहार होता है,
६. शब्द मनोज्ञ होते हैं,.
७. रूप मनोज्ञ होते हैं,
८. गंध मनोज्ञ होते हैं,
९. रस मनोश होते हैं,
१०. स्पर्श मनोज्ञ होते हैं।
४८. दस प्रकार के बलों का प्ररूपण
दस प्रकार का बल (सामर्थ्य) कहा गया है, १. श्रोत्रेन्द्रियबल,
३. प्राणेन्द्रियवल,
५. स्पर्शेन्द्रियबल,
७. दर्शनबल, ९. तपोबल
४९. दस प्रकार के शस्त्रों का प्ररूपण
३. लवण,
५. क्षार, (सोडा आदि)
७. दुष्प्रयुक्त मन,
९. दुष्प्रयुक्त काया,
१९०९
यथा
२. चक्षुइन्द्रियबल,
४. जिकेन्द्रियल
१०. वीर्यबल
दस प्रकार का शस्त्र कहा गया है, यथा१. अग्नि,
६. ज्ञानबल,
८. चारित्रबल,
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२. विष,
४. स्नेह (चिकनाई)
६. अम्ल (खटाई) तथा
८. दुष्प्रयुक्त वचन,
१०. भाव से अविरति ।
- ठाणं. अ. १०, सु. ७४३
१. ठाणं. अ. ७, सु. ५५९ में सात कारणों में इनके पश्चात् दुस्सम में 'मणो दुहया, वइ दुहया' और सुस्सम में 'मणोसुहया, वइ सुहया' ये दो-दो पद हैं।