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किं अगड-तडाग-दह नईओ वापी-पुक्खरिणी- दीहियागुंजालिया-सरा सरपंतियाओ सरसरपंतियाओबिलपंतियाओ नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं आरामुज्जाण काणणा वणा वणसंडा वणराईओ नगरं रायगिह ति पवुच्चइ? किं देवउल-सभा पवा थूभ खाइय-परिक्खाओ नगरं रायगिह ति पवुच्चइ? कि पागार-अट्टालग-चरियदार-गोपुरा नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं पासाय-घर-सरण-लेण-आवणा-नगरं-रायगिहं ति पवुच्चइ? किं सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह महापहा नगरं रायगिह ति पवुच्चइ? किं सगड-रह-जाण-जुग्ग-गिल्लि-थिल्लि-सीय संदमाणियाओ नगरं रायगिह ति पवुच्चइ? किं लोहो-लोहकडाह-कडुच्छया नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं भवणा नगरं रायगिह ति पवुच्चइ ? किं देवा-देवीओ मणुस्सा-मणुस्सीओ, तिरिक्खजोणिया, तिरिक्खजोणिणीओ नगरं रायगिह ति पवुच्चइ ? किं आसण-सयण-खंभ-भंड-सचित्ताचित्त-मीसयाई
दव्वाई नगरं रायगिह ति पवुच्चइ? उ. गोयमा ! पुढविं वि नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ जाव
सचित्ताचित्त-मीसयाइं दव्वाइं नगरं रायगिह ति पवुच्चइ। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
'पुढवी वि नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ जाव सचित्ताचित्त
मीसयाई दव्वाइं नगरं रायगिह ति पवुच्चइ?' उ. गोयमा ! पुढवी जीवाइ य, अजीवा इय नगरं रायगिह ति
पवुच्चइ जाव सचित्ताचित्त मीसयाई दव्वाइं जीवा इ य, अजीवा इय, नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ।
- द्रव्यानुयोग-(३)) क्या कूप, तडाग, द्रह, नदी, वापी, पुष्करिणी, दीर्घिका गुंजालिका, सरोवर, सरपंक्ति, सरसरपंक्ति और बिलपंक्ति राजगृह नगर कहलाते हैं ? क्या आराम, उद्यान, कानन, वन, वनखण्ड वनराजि राजगृह नगर कहलाते हैं? क्या देवकुल, सभा, प्रपा, स्तूप, खाई, परिखा राजगृह नगर कहलाते हैं? क्या प्राकार, अट्टालक, चरिका द्वार, गोपुर राजगृह नगर कहलाते हैं? क्या प्रासाद, घर, सरण (झोंपड़ा) लयन, आपण (दुकान) क्या राजगृह नगर कहलाते है? क्या शृंगाटक त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख, महापथ, पथ राजगृह नगर कहलाते हैं ? क्या शकट, रथ, यान, युग्य, गिल्ली, थिल्ली, शिविका स्यन्दमानिका राजगृह नगर कहालते हैं ? क्या डेगची, लोहे की कडाही, कुरछी आदि राजगृह नगर कहलाते हैं? क्या भवन, नगर राजगृह नगर कहलाते हैं ? क्या देव, देवियाँ, मनुष्य, मनुष्यनियाँ, तिर्यञ्च, तिर्यञ्चनियाँ राजगृह नगर कहलाते हैं। क्या आसन, शयन, खण्ड, भाण्ड एवं सचित्त, अचित्त, मिश्र,
द्रव्य राजगृह नगर कहलाते हैं ? उ. गौतम ! पृथ्वी भी राजगृह नगर कहलाती है यावत् सचित्त
अचित्त और मिश्र द्रव्य भी राजगृह नगर कहलाते हैं। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि'पृथ्वी भी राजगृह नगर कहलाती है यावत् सचित्त, अचित्त
और मिश्र द्रव्य भी राजगृह नगर कहलाता है ?' उ. गौतम ! पृथ्वी जीव (पिण्ड) भी है, अजीव (पिण्ड) भी है,
इसलिए यह राजगृह नगर कहलाती है यावत् सचित्त अचित्त और मिश्र द्रव्य भी जीव है और अजीव भी है इसलिए ये द्रव्य राजगृह नगर कहालते हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि'पृथ्वी भी राजगृह नगर कहलाती है यावत् सचित्त अचित्त और मिश्र द्रव्य भी राजगृह नगर कहलाते हैं।'
से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ'पुढवी वि नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ-जाव सचित्ताचित्त मीसयाई दव्वाइं नगरं रायगिह ति पवुच्चइ।'
-विया. स. ५, उ.९, सु.१-२ ५८. खीणभोगी छउमत्थाइ मणुस्सेसु भोगित्त परूवणंप. छउमत्थे णं भंते ! मणुस्से जे भविए अन्नयरेसु देवलोएसु
देवत्ताए उववज्जित्तए, से नूणं भंते ! से खीणभोगी नो पभू उट्ठाणेणं कम्मेणं बलेणं वीरिएणं पुरिसक्कारपरक्कमेणं विउलाई भोगभोगाइं भुजमाणे विहरित्तए, से
नूणं भंते ! एयमट्ठ एवं वयह? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे, पभू णं से उट्ठाणेण वि,
कम्मेण वि, बलेण वि, वीरियेण वि, पुरिसक्कारप्परक्कमेण वि, अन्नयराइं विपुलाइं भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए तम्हा भोगी, भोगे परिच्चायमाणे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवइ।
५८. क्षीण-भोगी छद्मस्थादि मनुष्यों में भोगित्व का प्ररूपणप्र. भन्ते ! ऐसा छद्मस्थ मनुष्य जो किसी देवलोक में देव रूप में
उत्पन्न होने वाला हो तो भन्ते ! वास्तव में (अन्त समय में) क्षीणभोगी होने से वह उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार पराक्रम के द्वारा विपुल भोगोपभोगों को भोगने में समर्थ नहीं
है ? भन्ते ! क्या आप इस अर्थ (बात) को इसी तरह कहते हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, क्योंकि वह उत्थान कर्म, बल,
वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम द्वारा किन्हीं विपुल भोगोपभोगों को भोगने में समर्थ है इसलिए वह भोगी है और भोगों का परित्याग करता हुआ महानिर्जरा और महापर्यवसान (अंत) वाला होता है।