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द्रव्यानुयोग-(३)
१९१२ उ. गोयमा ! तिविहा जोगचलणा पन्नत्ता,तं जहा
१.मणोजोगचलणा, २.वइजोगचलणा,
३.कायजोगचलणा। प. १.से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
'ओरालियसरीरचलणा-ओरालियसरीरचलणा? उ. गोयमा ! जं णं जीवा ओरालियसरीरे वट्टमाणा
ओरालियसरीरप्पायोग्गाइं दव्वाइं ओरालिय-सरीरत्ताए परिणामेमाणा ओरालियसरीरचलणं चलिंसु वा, चलंति वा, चलिस्संति वा। से तेणठेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ 'ओरालिय
सरीरचलणा-ओरालियसरीरचलणा।' प. २. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ
'वेउव्वियसरीरचलणा, वेउव्वियसरीरचलणा? उ. गोयमा ! एवं चेव।
णवरं-वेउव्वियसरीरे वट्टमाणा।
एवं जाव कम्मगसरीरचलणा। प. ३. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
'सोइंदियचलणा, सोइंदियचलणा?' उ. गोयमा ! जं णं जीवा सोइंदिए वट्टमाणा
सोइंदियप्पायोग्गाई दव्वाइं सोइंदियत्ताए परिणामेमाणा सोइंदियचलणं चलिंसुवा, चलति वा, चलिस्संति वा।
उ. गौतम ! योगचलना तीन प्रकार की कही गई है, यथा१. मनोयोगचलना,
२. वचन योगचलना, ३. काययोगचलना। प्र. १.भन्ते ! औदारिकशरीर चलना को औदारिक शरीर चलना
क्यों कहा जाता है? उ. गौतम ! जीवों ने औदारिक शरीर में विद्यमान रहते हुए
औदारिक शरीर के योग्य द्रव्यों को औदारिकशरीर के रूप में परिणमाते हुए भूतकाल में औदारिक शरीर की चलना की थी, वर्तमान में चलना करते हैं और भविष्य में चलना करेंगे। इस कारण से गौतम ! औदारिक शरीर चलना को औदारिक
शरीर चलना कहा जाता है। प्र. २. भन्ते ! वैक्रियशरीर चलना को वैक्रियशरीर चलना क्यों
कहा जाता है? उ. गौतम ! पूर्ववत (औदारिक शरीर चलना के समान)
समग्र कथन करना चाहिए। विशेष-औदारिकशरीर के स्थान पर वैक्रिय शरीर में विद्यमान रहते हुए कहना चाहिए।
इसी प्रकार कार्मण शरीर चलना पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. ३. भन्ते ! श्रोत्रेन्द्रिय चलना को श्रोत्रेन्द्रिय चलना क्यों कहा
जाता है? उ. गौतम ! क्योंकि श्रोत्रेन्द्रिय को धारण करते हुए जीवों ने
श्रोत्रेन्द्रिय योग्य द्रव्यों को श्रोत्रेन्द्रिय रूप में परिणमाते हुए श्रोत्रेन्द्रिय चलना की थी, वर्तमान में करते हैं और भविष्य में करेंगे। इस प्रकार से गौतम ! श्रोत्रेन्द्रिय चलना को श्रोत्रेन्द्रिय चलना कहा जाता है।
इसी प्रकार स्पर्शेन्द्रिय चलना पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. ४. भन्ते ! मनोयोग चलना को मनोयोग चलना क्यों कहा
जाता है? उ. गौतम ! क्योंकि मनोयोग को धारण करते हुए जीवों ने
मनोयोग के योग्य द्रव्यों को मनोयोग रूप में परिणमाते हुए मनोयोग की चलना की थी, वर्तमान में चलना करते हैं और भविष्य में भी चलना करेंगे। इस कारण से गौतम! मनोयोग चलना को मनोयोग चलना कहा जाता है। इसी प्रकार वचनयोग चलना एवं काययोगचलना के सम्बन्ध
में भी जानना चाहिए। ५५. जीवों के भय हेतु का प्ररूपण
'हे आर्यों' श्रमण भगवान् महावीर ने गौतम आदि श्रमण
निर्ग्रन्थों को आमंत्रित कर इस प्रकार कहाप्र. 'हे आयुष्मान् श्रमणों ! जीव किससे भयभीत होते हैं ?' गौतम आदि श्रमण निर्ग्रन्थ भगवान् महावीर के निकट आए
और निकट आकर वन्दन नमस्कार किया, वंदन नमस्कार करके यह कहा
से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ'सोइंदियचलणा, सोइंदियचलणा।'
एवं जाव फासिंदियचलणा। प. ४,से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
'मणजोगचलणा, मणजोगचलणा।' उ. गोयमा ! जं णं जीवा मणजोए वट्टमाणा • मणजोगप्पायोग्गाई दव्वाई मणजोगत्ताए परिणामेमाणा मणचलणं चलिंसुवा, चलंति वा, चलिस्संति वा।
से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ'मणजोगचलणा-मणजोगचलणा' एवं वइजोगचलणा वि, एवं कायजोगचलणा वि।
-विया. स. १७, उ.३.सु.११-२१ ५५. जीवाणं भय हेउ परूवणं
अज्जोत्ति ! समणे भगवं महावीरे गोयमाई समणे णिग्गंथे
आमंतेत्ता एवं वयासीप. “किं भया पाणा? समणाउसो!'
गोयमाई समणा णिग्गंथा समणं भगवं महावीर उवसंकमंति, उवसंकमित्ता वंदंति, णमंसंति, वंदित्ता, णमंसित्ता एवं वयासी